नज़रिया:

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मर्द और मर्दिया नजरिया, स्‍त्री के दिमाग से बहुत खौफ़ज़दा रहते हैं. इसलिए वे उसे तुरंत महज शरीर और एक इस्‍तेमाल की जाने वाली चीज में समेट देते हैं.

उन्‍हें लगता है कि कामयाबी की सीढ़ी पर वे तो अपने बुद्धि बल पर चढ़े हैं.

दूसरी तरफ लड़कियां, अगर आगे बढ़ पाने में कामयाब हो गई हैं तो वे अपने ‘स्‍त्री’ होने की वजह से बढ़ी हैं.

इस मर्दिया नजरिए से आधुनिक भारत के हमारे लीडर भी आज़ाद नहीं हैं. बल्कि कहना तो ये चाहिए कि वे ऐसे ख्‍यालों को बढ़ावा देने और मजबूत करने में मददगार बन रहे हैं.

मर्द राजनेता हों या फिर मर्दिया नज़र वालीं तमाम महिला लीडर, ये सब स्‍त्री को शरीर से आगे नहीं देख पाते हैं. इसलिए उनके मुंह से गाहे-ब-गाहे ऐसे बोल निकल ही पड़ते हैं, जो स्‍त्री को नीची नज़र से देखने वाले होते हैं.

सबसे दिलचस्‍प हैं कि ऐसे बोल कई महिला लीडर्स को अटपटे भी नहीं लगते. क्‍योंकि इनका चश्‍मा भी मर्दिया ही है.

ताज़ा मामला, दो बड़े नेताओं शरद यादव और विनय कटियार और इनके बोल के पैरोकारी में खड़े लीडरों का है.

 

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जनता दल (युनाइटेड) के बड़े कद्दावर नेता शरद यादव ने स्‍त्री को वोट से तौला. फिर वोट की इज्‍जत को स्‍त्री की इज्‍जत से कई गुणा आगे ले गए.

सवाल कई हैं

सवाल है, जब शरद यादव ‘स्‍त्री की इज्‍जत’ कह रहे हैं, तो वे किस तरह की ‘इज्‍जत’ की बात कर रहे हैं?

वे स्‍त्री की किस ‘इज्‍जत’ को वोट से तौल रहे हैं? यह भी सवाल है कि शरद यादव को वोट की महिमा और अहमियत बताने के लिए उदाहरण की शक्‍ल में ‘स्‍त्री की इज्‍जत’ ही क्‍यों मिली?

यह तुलना कहीं से भी स्‍त्री का सम्‍मान बढ़ाने वाली नहीं है. स्‍त्री का सम्‍मान, इंसानी हुकूक के दायरे में आता है. वह भी उतनी ही सम्‍मान की हक़दार, भागीदार, साझेदार है, जितना कि कोई मर्द. फिर ‘मर्द की इज्‍जत’ से तुलना क्‍यों नहीं की गई? और तो और स्‍त्री के रूप में इंसान के इज्‍जत की कीमत, वोट की कीमत से कम कैसे हो गई?

खैर, ‘स्‍त्री की इज्‍जत’ बड़ी बहस का विषय है.

हालांकि, स्‍त्री नाम के जीव से शरद यादव पहले भी उलझते रहे हैं. हां, ताज़ा बयान यही बता रहा है कि इस जीव से वे अब तक सामंजस्‍य नहीं बैठा पाए हैं.

वैसे, सामंजस्‍य तो विनय कटियार भी नहीं बैठा पाए हैं. भारतीय जनता पार्टी के पुराने नेता विनय कटियार मानते हैं कि महिला नेता की ‘सुंदरता’ बहुत काम की है.

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पढ़ें- शरद यादव ने कब कब की महिलाओं पर टिप्पणी

ट्विटर पर शरद यादव की छीछालेदर

वे प्रियंका गांधी के उत्‍तर प्रदेश में चुनाव में सक्रिय भागीदारी की ख़बर को महज ‘सुंदरता’ के नज़रिए से देखते हैं. इसीलिए वे प्रियंका के बारे कहते हैं कि वे खूबसूरत नहीं हैं. यही नहीं, वे प्रियंका के मुक़ाबले अपनी पार्टी की महिला लीडरों की सुंदरता का बखान भी करते हैं.

विनय कटियार के मुताबिक़, उनसे बहुत ज्‍यादा, बहुत सी सुंदर महिलाएं उनकी पार्टी में हैं. उनकी बात का लब्‍बोलुबाब है कि ये महिला लीडर पार्टी के लिए ‘अपनी सुंदरता’ के बल पर भीड़ इकट्ठा करती हैं.

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ज्‍यादातर भारतीय मर्द राजनेता स्‍त्री को इसी रूप में देख पाते हैं.

वे उसे बुद्धिवाली प्राणी के रूप में मानने को राजी नहीं हैं. इसलिए विनय कटियार पिछले कई चुनावों से अमेठी-रायबरेली में प्रियंका गांधी की राजनीतिक मेहनत को देख ही नहीं पाते.

विनय कटियार के लिए यह महज़ विरोधी पार्टी की किसी नेता का मसला का नहीं है. लगता है, वे तो हर महिला लीडर के बारे में ऐसा सोचते हैं. तब ही तो वे अपनी पार्टी की महिला लीडर को ‘सुंदरता’ के मुकाबले में खड़ा करने को तैयार हैं. क्‍योंकि ज्‍यादातर मर्द नेताओं के लिए महिलाएं अभी भी ‘सजावटी चीज’ हैं.

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Image captionसवाल है कि क्या हमारे ‘नेता’ अभी भी महिलाओं को ‘सजावटी चीज’ मानते हैं?

किसी की दिमागी काबिलियत को न मानना हो तो उसे किसी और पहचान में समेट दें, यह मर्दाना राजनीति का काफी पुराना हथियार है.

विनय कटियार की मर्दाना राजनीति यह मानती है कि प्रियंका गांधी या दूसरी महिला लीडर इसलिए कामयाब नहीं हैं कि उनकी सोच, बुद्धि या सियासी समझ या रणनीति अच्‍छी है, बल्कि इसलिए कामयाब होती हैं क्‍योंकि वे ‘स्‍त्री’ हैं और स्‍त्री का काम लुभाना है. तो इनकी सोच यह कहती है कि वे लुभाने के लिए अपनी सुंदरता और अपने स्‍त्री होने का लाभ उठाती हैं.

इस सोच में एक साथ कई चीजें हैं. एक इंसान का स्‍त्री होना. स्‍त्री का राजनेता होना. स्‍त्री का खूबसरत होना. स्‍त्री का इस्‍तेमाल की चीज में बदल जाना.

कुछ और सवाल…

वैसे, विनय कटियार जिस खूबसूरती की बात कर रहे हैं, उसका पैमाना क्‍या है? उनका पैमाना क्‍या है? सुंदर क्‍या है? चमड़ी का रंग? नैन-नक्‍श? लम्‍बाई-चौड़ाई? ये पैमाना किनका बनाया है?

क्‍या सुंदरता का एक ही पैमाना है? क्‍या खूबसूरती का आखिरी सच यही पैमाना है? क्‍या यह पैमाना सभी स्‍त्री के सम्‍मान के मुताबिक़ है?

यह पैमाना, इस मुल्‍क की महिलाओं की बड़ी आबादी को ‘सुंदरता’ के दायरे से बाहर रखने वाला है. यह स्‍त्री विरोधी ही नहीं बल्कि सुंदरता का इंसान विरोधी पैमाना है.

इसमें कुछ ख़ास तरह के लोगों की शारीरिक बनावट, रंग-रूप को ही श्रेष्‍ठ बताने का अहसास है. श्रेष्‍ठता का यह पैमाना भी ख़ास तरह की मर्दाना सोच की उपज है. यह सोच, स्‍त्री को शरीर में ही समेट देती है. वह शरीर भी उसका नहीं है. इसलिए उसका पैमाना भी उसका नहीं है.

कौन सी बात ज्‍यादा स्‍त्री के सम्‍मान के ख़िलाफ है, ये कहना मुश्किल है. हां, इतना तय है कि दोनों बड़े लीडरों की बात में स्‍त्री, मर्द के रूप में इंसान जैसी नहीं है.

इन दोनों नेताओं से न ये लफ्ज़ अनजाने में निकले हैं और न ही ये नजरिया अचानक जाहिर हुआ है.

इनके जैसे अनेकों ने वक्‍त-वक्‍त पर ऐसा ही ख़्याल ज़ाहिर किया है. इसीलिए स्‍त्री के बारे में दिमाग में बसे कूड़े की सफाई के लिए राजनेताओं की लम्‍बी ट्रेनिंग की जरूरत है.

ख़ासतौर पर विधानमंडलों और संसद के सदस्‍यों के लिए ऐसी ट्रेनिंग को जरूरी बना देना चाहिए. शायद वे स्‍त्री को दिमाग वाला इंसान मानना शुरू कर दें. तब ही वे जब किसी महिला के बारे में बात करेंगे तो उसके शरीर और अंगों को ध्‍यान में नहीं रखेंगे.

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http://www.bbc.com/hindi/india-38753680