कर्नाटक
लिंगे गौड़ा का शव उनके खेत से बरामद हुआ

कर्नाटक के मांड्या ज़िले के होसुरु गांव के 60 वर्षीय लिंगे गौड़ा अपनी 17 गुंटा ज़मीन पर गन्ने की खेती करते थे. पास ही स्थित गुड़ बनाने वाली एक फैक्टरी को वो गन्ना सप्लाई करते थे.

उनके ऊपर 1.7 लाख रुपए का कर्ज़ था जिसे उगाहने के लिए एक दिन पहले ही रिकवरी एजेंट उनसे मिलने आए थे.

इसके कुछ देर बाद उन्होंने अपने गन्ने के खेत में आग लगा दी और खुद आत्महत्या कर ली. परिवार के सदस्यों ने बाद में अधिकारियों को बताया कि गौड़ा इस बात से परेशान थे कि फैक्टरी गन्ने का मूल्य सिर्फ 750 रुपए प्रति टन ही दे रही थी.

मांड्या के उपायुक्त एम एन अजय नागभूषण ने बीबीसी को बताया कि गन्ने की ये कीमत जानने के बाद वे घर आए. परेशान गौड़ा की परिवार के सदस्यों से कुछ बहस हुई और अगले दिन उनका जला हुआ शव बरामद हुआ.

गन्ना किसानों की उलझन

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लिंगे गौड़ा का शोक संतप्त परिवार

गुरवार को उत्तरी कर्नाटक में दो और गन्ना किसानों ने पेस्टीसाइड खाकर आत्महत्या करने की कोशिश की.

बुधवार को कलाबुरागी ज़िले में रतन सिंह किशन सिंह पागा ने आत्मह्या कर ली. उनके ऊपर कर्ज़दाताओं का 12 लाख रुपए बक़ाया था.

कर्नाटक में चीनी उद्योग में आए संकट से अब गन्ना किसान प्रभावित होने लगे हैं. इन किसानों को चीनी फैक्टरियां भुगतान नहीं कर रहीं हैं या देर से कर रही हैं, जिसके कारण किसान मुश्किल में हैं.

कर्नाटक के चीनी मंत्री महादेव प्रसाद ने बताया, “जब केंद्र सरकार ने 2014-15 का फेयर रेम्युनरेटिव प्राइस घोषित किया था तब चीनी का बाज़ार भाव 34 रुपए प्रति किलो था. अब ये 19-20 रुपए प्रति किलो हो गया है. कर्नाटक की चीनी फैक्टरियों में चीनी का भंडार बढ़ गया है क्योंकि इसका कोई ग्राहक ही नहीं है. किसान इससे सबसे बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. फैक्टरियों पर अभी किसानों के कुल 22,00 करोड़ रुपए बकाया है.”

उन्होंने कहा, “कर्नाटक की चीनी फैक्टरियों ने पिछले साल पचास लाख टन चीनी का उत्पादन किया. करीब दस लाख टन का उपभोग तो स्थानीय तौर पर हो जाता है. जो बच गई है उसे बेचा नहीं जा सका है क्योंकि महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में उत्पादित अतिरिक्त चीनी को अन्य राज्यों में बेच दिया जाता है. यहां हम बेहतर कीमत की उम्मीद नहीं कर सकते.”

कृषि से इतर गतिविधियां

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लेकिन किसानों के बढ़ते दबाव के बाद कर्नाटक के चीनी बोर्ड ने फैसला किया है कि वह चीनी के भंडार की नीलामी करेगा. इससे जो भी राशि मिलेगी उससे किसानों की बकाया राशि का भुगतान किया जाएगा. केंद्र सरकार से चीनी पर सब्सिडी देने की भी बात चल रही है.

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज़ के प्रोफेसर नरेंद्र पाणि का कहना है, “नकद फसलों का एक चक्र होता है. जब कीमतें गिरती हैं तो किसान उसे उगाना बंद कर देते हैं. इससे और निराशा बढ़ती है. इस संकट को कृषि तक सीमित रह कर हल नहीं किया जा सकता. यहां एक ऐसी रणनीति की ज़रूरत है जिसके ज़रिए किसानों को कृषि से इतर गतिविधियों में भी लगाया जाए ताकि वे सम्मान से गुज़ारा कर सकें.”

http://www.bbc.com/hindi/india/2015/06/150626_karnataka_farmer_suicide_ps?ocid=socialflow_twitter