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तत्काल SIT गठित करें – नर्मदा बचाओ आन्दोलन

नर्मदा घाटी के सरदार सरोवर विस्थापितों के पुनर्वास में हर प्रकार का, हर कार्य में भ्रष्टाचार नर्मदा बचाओ आंदोलन ने उजागर किया।  २००२ से २००५ और अधिकतेजी के साथ २००७ तक चला फर्जीवाडा तथा २००४ के CAG- भारत के महालेखाकार की रिपोर्ट में भी आलेखित पुनर्वास स्थलों के निर्माण कार्य में भ्रष्टाचार आखिर७ सालों की जांच के आधार पर न्या. श्रवणशंकर झा की रिपोर्ट में विस्तृत ब्यौरे एवं विश्लेषण के साथ सही बताया है। झा आयोग की रिपोर्ट, जो विधानसभा के पटलपर रखी जाने के बाद सार्वजनिक दायरे में आ गई, तथा जिसपर कार्यवाही करना, सर्वोच्च अदालत के ३०.३.२०१६ के आदेश के अनुसार मध्य प्रदेश शासन व नर्मदाघाटी विकास प्राधिकरण का फर्ज बनता है; वह बताती है कि हजारों किसान व भूमीहीन मजदूर क्यों, कैसे और किस से फंसाए गए है। इससे नर्मदा घाटी विकासप्राधिकरण, राज्य शासन और उन्ही के आधार पर नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण का दावा कि सरदार सरोवर के सभी विस्थापितों का, जमीन या आजीविका (भूमिहीनोंके लिए), पुनर्वास स्थल पर घरप्लॉट, नागरी सुविधाओं के साथ पुनर्वास हो चुका है, झूठ साबित हुआ है।

आयोग की रिपोर्ट पर राज्य शासन भी कोई गंभीर टिप्पणी या कार्यवाही करना टाल रही है, क्योंकि आयोग के निष्कर्ष से नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण,राजस्व, रजिस्ट्री विभाग, बॅंकों के भी अधिकारी, विशेषतः भुगतान करने वाले (याने तहसीलों के पुनर्वास अधिकारी) और दलालों के बीच का गठजोड़ जिम्मेदार है,जिनके कारण बडे पैमाने पर फर्जी रजिस्ट्रियॉं बन सकी है। पुनर्वास स्थलों के (८८ पुनर्वसाहटों पर किये गये ८०० से अधिक निर्माण कार्यों में) भ्रष्टाचार के लिए नर्मदाघाटी विकास प्राधिकरण के ४० इंजीनियर अधिकारियों को ही झा आयोग ने दोषी माना है और घरप्लॉटों का पुनर्आबंटन तथा अपात्रों को मुआवजे के लिए भी नर्मदाघाटी विकास प्राधिकरण के भुगतान अधिकारी सीधे दोषी माने गए है।

इस रिपोर्ट को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय, जिसने ही आयोग का गठन २००८ में किया था और खुद रिपोर्ट पर आगे की कार्यवाही निर्देशित करेगा यह कहांथा (आदेश १६.२.२०१६) उसे सर्वोच्च अदालत से ‘स्टे’ करवा कर राज्य शासन के हाथ रिपोर्ट आया और ३०.३.२०१६ के आदेश से सर्वोच्च अदालत ने मध्य प्रदेशसरकार को ‘कार्यवाही अहवाल’ प्रस्तुत करने को कहांं। हायकोर्ट में आयोग की रिपोर्ट पर सुनवाई और आदेश रुकने से खुश हुई राज्य शासन ने स्वयं ‘शासकीयसंकल्प’ बनाया जो कि कार्यवाही पर सुझाव देनेवाली टिप्पणी है। इसी के आधार पर नर्मदा विकास विभाग, राज्य शासन की ओर से ५ अगस्त, २०१६ को एक आदेशनिकाल कर क्या और कौन, किस के खिलाफ कार्यवाही होगी या जांच होगी, यह शासन से प्रस्तावित है। उच्च न्यायालय और सर्वोच्च अदालत में यह पेश किया गयाहै।

आयोग की रिपोर्ट के विस्तृत विश्लेषण पर आधारित विरोधी कार्यवाही का प्रस्ताव

मध्य प्रदेश शासन ने इस ‘संकल्प’ के द्वारा झा आयोग की जांच, निष्कर्ष और रिपोर्ट को ही ठुकराने की कोशिश क्या, साजिश रची है। शासन चाहता है किआयोग ने घोटाले के लिए दोषी ठहराये (कम से कम प्रशमदर्शनी जिम्मेदार) भूअर्जन-पुनर्वास अधिकारी, जिन्हें शासन ने पिछले १०-१५ सालों से पदों पर बरकराररखा, उन्हीं के द्वारा फर्जी विक्रय पत्रों के क्रेता याने सरदार सरोवर प्रभावित, विक्रेता (जिनमें से बहुतांश फंसाए गए हैं, विक्री का जिन्हें पता तक नहीं चला…) औरदलाल (२०६ की सूची झा आयोग की रिपोर्ट में है, जिनमें कई पटवारी, भूअर्जन अधिकारी और जुडे कर्मचारी, और अधिवक्ता भी शामिल हैं) इनके खिलाफ कार्यवाहीकरना तय किया है। २००७-२००८ में दाखिल किये ३८८ (इस वक्त २९२) और अन्य ७०५ अपराधिक प्रकरण याने करीबन १००० FIRs दाखिल करने की शासन कीमनीषा है। आरोपियों को फिर्यादी बनाने का इससे अच्छा उदाहरण क्या कोई हो सकता है?

फर्जी विक्रय पत्रों में जिन पटवारियों का नाम है, जिन्होंने आयोग के अनुसार दलालों की ही भूमिका निभाई है, उनकी मात्र संभागायुक्त, इंदौर से फिर से जांचकरने के बाद ही कार्यवाही करना प्रस्तुत है जब कि भूअर्जन कर्मचारियों पर कार्यवाही के बारे में तो कोई बात इस आदेश में नहीं है। जाहिर है कि फर्जी विक्रय पत्रों केमुद्दे पर नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण खुद को और मुख्य सचिव, मुख्यमंत्री तक उन्हीं को बचाना चाहते है।

पुनर्वास स्थलों पर निर्माण कार्य में करोड़ों के ठेके दिये गये लेकिन नियोजन और निगरानी नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के वरिष्ठ अधिकारियों से नहींहुई; भूगर्भीय जांच तथा हर बिल्डिंग निर्माण का डिझाइन तक नहीं बनाना, पानी का टेस्टिंग नहीं करना, वसाहटों में कानूनन जरूरी संख्या/मात्रा में नागरी सुविधाएंउपलब्ध नहीं करना, बिना संपूर्ण जांच के ठेकेदारों को भुगतान के लिए ४० इंजीनियरों के अलावा, CAG रिपोर्ट ने भी तो कई अधिकारियों को, कर्मचारियों को भी दोषीपकडा था (२००४) तो फिर नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण केवल ट्रान्सफार्मर खरीदने के मुद्दें पर केवल मध्य प्रदेश विद्युत वितरण कंपनी को ही जांच टीम के दायरेमें लाना तथा उस जांच टीम में भी मध्य प्रदेश विद्युत वितरण कंपनी और नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के वरिष्ठ अधिकारी ही होना क्या सही है या बेतुका है?

पुनर्वास स्थलों के पुनर्निर्माण या सुधार की सिफारिश तो शासन ने मंजूर की है तो फिर आज की स्थिति में पुनर्वास स्थल, जैसे कईयों के बारे में शुंगलू कमिटी ने(केंद्र से नियुक्त, भूतपूर्व CAG की अध्यक्षता में) भी निर्णय यही दिया था, विस्थापितों के लिए स्थलांतर एवं पुनर्वास क् लायक नहीं है, यह भी शासन को माननाचाहिए या नहीं? इसी कारण तथा पुनर्वास स्थलों के पास वैकल्पिक खेतजमीन, पात्र विस्थापितों को देने के लिए उपलब्ध नहीं होने से और जमीन के बदले नगदपॅकेज देने से फर्जी विक्रय पत्र हुए हैं, यह कहकर पुनर्वास स्थल बहुतांश खाली पड़े हैं, यह आयोग ने स्पष्ट रूप से बताया है। फिर भी पुनर्वास में ‘० बॅलन्स’ और बांधपूरा कर के गेट्स बंद करने की मंजूरी देनेवाली मध्य प्रदेश शासन व नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण झूठे शपथपत्रों के लिए भी तो दोषी है!

घरप्लॉट आबंटन व पुनराबंटन अंधाधुंध पद्धति से, इस कार्य के लिए कोई प्रावधान न होते हुए करनेवाले अधिकारी पैसा लेकर गरीबों के खिलाफ कैसे कार्यकरते रहे, यह बताया आयोग ने, तो भी शासन ने सभी स्थलों की जांच न करते केवल आयोग की रिपोर्ट में आंदोलन की याचिका से उल्लेखित प्रकरणों में, भूअर्जन वपुनर्वास अधिकारियों की जांच के बाद, अनुशासनात्मक कार्यवाही प्रस्तुत है। जिंदगी भर जीने के लिए पुनर्वास महत्वपूर्ण होते हुए यह सहज और संवेदनहीन शासनकी वृत्ति ही अच्छी पुनर्वास नीति को बरबाद करने के पीछे का कारण है।

हजारों भूमिहीनों को आजीविका अनुदान में धांधली में फसाया गया तो भी उस संबंधी दोषी माने गए अधिकारियों पर कोई कार्यवाही इस आदेश में प्रस्तावितही नहीं है। करीबन ७००० में से ३०००-४००० भूमीहीन याने मछुआरे, कुम्हार, कारीगर, मजदूरों को इस तरह से ‘आजीविकाहीन’ बनाकर छोड़ने के अपराध में सजा भीदे तो किसे और कितनी?

इस कार्यवाही प्रस्तुती से जाहिर है कि इस १५०० करोड से अधिक पुनर्वास मदद वित्त को बरबाद करने वाले घोटाले को दबाने की और नर्मदा घाटी विकासप्राधिकरण को निर्दोष बताकर दलालों के साथ विस्थापितों को और फंसाए गए विक्रेताओं को भी फंसाने की बडी साजिश की तैयारी मध्य प्रदेश शासन कर रही है।व्यापम घोटाले की पुनरावृत्ति से यह मालूम होता है कि यह निर्णय छोटे-मोटे अधिकारियों के बस की बात न होकर इसके पीछे राजनेता भी है। वे कौन है, इसकी जांचकरना, ७ सालों में पुलिस अधिकारी आखरी एक साल के लिए प्राप्त होने के कारण आयोग नहीं कर पाया तो भी इसके आगे की जांच SIT ‘विशेष जांच दल’ गठितकरके ही की जानी जरूरी है। वैसे भी कई प्रकरणों में अधिकारियों के खिलाफ तत्काल निलंबन एवं प्रकरण के आधार पर गिरफ्तारी तक कार्यवाही हो सकती है।

आंदोलन का मानना है कि ‘न खाएंगे, न खाने देंगे’ का केंद्र शासन का दावा इस विक्रत कार्यवाही प्रस्तुत करने से साफ खोखला साबित हुआ है। आंदोलनकानूनी संघर्ष और सत्याग्रह जारी रखते हुए, कानूनी सलाह के आधार पर झा आयोग की रिपोर्ट पर ही अपराधिक प्रकरण दर्ज करना चाहता है। शिवराज सिंह जी कीशासन विस्थापित विरोधी साबित होने से अब इनकी कॉर्पोरेटी योजनाओं का विरोध राज्य में बढेगा जरूर। सिंगूर के फैसले का स्वागत करते हुए। (देखिये स्वतंत्र प्रेसनोट और वक्तव्य) नर्मदा बचाओ आंदोलन सिंगूर आंदोलन का सहभागी और समर्थक रहते हुए यह मानता है कि सर्वोच्च अदालत के न्या. गौडा की खंडपीठ ने ली हुईन्यायपूर्ण भूमिका नर्मदा बचाओ आंदोलन में भी सर्वोच्च अदालत ने लेनी चाहिए। सार्वजनिक हित की याचिकाओं के संबंधी सर्वोच्च अदालत भूतपूर्व न्या. पी. एन.भगवती जैसी ही सहानुभूति अगर नहीं दिखाता, तो वह संविधान की तथा न्यायपालिका की ही अवमानना होगी।

 

People involved in fake registrations only (not containing people involved in R&R site corruption etc.) from Annexure – Document 5 and Document 9 (not containing names from Document 2 and Document 3)

Total number of middlemen and officials (document 5 and 9)206
Number of Patwaris34
Number of Govt employees41
Number of Registrar Officials5
Number of LAO officers/employees5
Number of LAO Officers3
Number of Advocates15
Number of Tahsildar1
Number of other people from Registrar office and Court (e.g. document writer, stamp vendor, typist etc.) – not counting employees/clerks11

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