दिव्या आर्य

बीबीसी संवाददाता, दिल्ली

 

 गुरुवार, 3 जुलाई, 2014

दिल्ली से सटे नोएडा में एक टीवी एंकर की दफ़्तर के बाहर आत्महत्या की कोशिश वैसी सुर्ख़ी नहीं बन सकी, जैसा कि ऐसे क्लिक करेंदूसरे मामलों में बनती है. टीवी एंकर तनु शर्मा ने अपने एम्प्लॉयर पर क्लिक करेंप्रताड़ना का आरोप लगाया है, और इंडिया टीवी ने उन पर काम में कोताही का.

इस मामले में पुलिस केस दोनों तरफ़ से दर्ज हुए हैं. इसकी मीडिया को ‘ख़बर’ तो है पर ‘कवरेज’ नहीं. समाचार चैनलों के दफ़्तरों के आसपास चाय-सुट्टा के ठीयों पर मीडियाकर्मियों की बातचीत में ज़रूर इसका ज़िक्र है कहीं बेबसी के साथ, कहीं ग़ुस्से और कहीं अविश्वास के साथ.

इस मामले के बारे में इसके अलावा कहीं कोई बात चल रही है, तो वह सोशल मीडिया और मीडिया पर नज़र रखने वाली वेबसाइट्स पर है. दो एक अंग्रेज़ी अख़बारों ने ज़रूर इस मामले को छापा.

मीडिया में काम की जगह पर प्रताड़ना के आरोपों से जुड़ा ये पहला मामला नहीं है. पर तहलका मैगज़ीन के संपादक क्लिक करेंतरुण तेजपाल के ख़िलाफ़ यौन हिंसा के आरोप को छोड़ दें, तो इससे पहले भी, मीडिया की मुख्यधारा ने अपने ही कर्मियों के साथ प्रताड़ना के किसी अन्य मामले को ख़बरों में जगह नहीं दी है.

बीबीसी ने इसी ख़ामोशी के पीछे की ‘कहानी’ टटोलने की कोशिश की.

 

तनु शर्मा बनाम इंडिया टीवी

उत्तर प्रदेश पुलिस के मुताबिक़ इंडिया टीवी की एंकर तनु शर्मा ने 22 जून को चैनल के दफ़्तर के आगे ज़हर खाकर आत्महत्या करने की कोशिश की. फ़ेसबुक पर एक ग़ुबार भरा स्टेटस लिखने के बाद.

दफ़्तर के लोगों और पुलिस ने ही उन्हें वक़्त रहते अस्पताल पंहुचाया. तनु बच गईं. अगले दिन घर लौटने पर पुलिस को दिए अपने बयान में तनु ने कहा कि इंडिया टीवी की एक वरिष्ठ सहयोगी ने उन्हें “राजनेताओं और कॉरपोरेट जगत के बड़े लोगों को मिलने” और “ग़लत काम करने को बार-बार कहा”.

तनु के मुताबिक़, “इन अश्लील प्रस्तावों के लिए मना करने के कारण मुझे परेशान किया जाने लगा, इसकी शिकायत एक और सीनियर से की तो उन्होंने भी मदद नहीं की, बल्कि कहा कि ये प्रस्ताव सही हैं”.

यह बात भी ग़ौर करने लायक़ है कि तनु ने जिन दो वरिष्ठ कर्मियों पर आरोप लगाया है, उनमें से एक महिला है.

तनु का आरोप है कि परेशान होकर उन्होंने एसएमएस के ज़रिए अपने बॉस को लिखा, “मैं इस्तीफ़ा दे रही हूं”, और कंपनी ने इसे औपचारिक इस्तीफ़ा मान लिया, और “इस सबसे मैं ज़हर खाने पर मजबूर हुई”.

इंडिया टीवी ने तनु के आरोपों को बेबुनियाद बताता है. बीबीसी को भेजे एक लिखित जवाब में इंडिया टीवी ने अपने वकील की मार्फ़त कहा है- “तनु ने चार महीने पहले इस चैनल में नौकरी की और वो शुरुआत से ही अपने काम में लापरवाही बरतती रहीं, इसके बारे में उन्हें समझाया गया तो अब वो उन्हीं वरिष्ठकर्मियों को नीचा दिखाने की कोशिश कर रही हैं.”

इंडिया टीवी ने बीबीसी हिंदी को इस तरह के “ग़ैरक़ानूनी आरोपों” को प्लेटफ़ॉर्म देने से बचने की हिदायत भी दी.

इंडिया टीवी ने बीबीसी के सवालों के जवाब में कहा, “तनु के बर्ताव को देखते हुए उनके इस्तीफ़े को मंज़ूर करने में हमें कोई झिझक नहीं थी, और उनके कॉन्ट्रैक्ट में इस्तीफ़ा देने के किसी एक माध्यम की चर्चा भी नहीं है, इसलिए हमें एसएमएस भी मंज़ूर है.”

फ़िलहाल मीडिया की सुर्खि़यों से बाहर पुलिस मामले की तहक़ीक़ात कर रही है.

ज़हर खाने से पहले फ़ेसबुक पर तनु शर्मा का पोस्ट.

 

मीडिया उद्योग में महिलाओं को ख़तरा?

साल 2013 में ‘इंटरनेशनल न्यूज़ सेफ़्टी इंस्टीट्यूट’ और ‘इंटरनेशनल वीमेन्स मीडिया फ़ाउंडेशन’ ने दुनियाभर की 875 महिला पत्रकारों के साथ सर्वे किया.

सर्वे के मुताबिक़ क़रीब दो-तिहाई महिला मीडियाकर्मियों ने काम के सिलसिले में धमकी और बदसुलूकी झेली है. ज़्यादातर मामलों में ज़िम्मेदार पुरुष सहकर्मी थे.

वरिष्ठ पत्रकार पामेला फ़िलीपोज़ के मुताबिक़ भारत में ये ख़तरा कहीं ज़्यादा है.

पामेला कहती हैं, “इसके बारे में चर्चा ही नहीं होती, क्योंकि ख़ुद पत्रकार ही इस मुद्दे को उठाने से डरते हैं और ये चुप्पी मीडिया कंपनियों और उनके कर्मियों के बीच के असमान रिश्ते को दर्शाती है.”

प्रिंट मीडिया को नियमित करने के लिए 1978 में प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया की स्थापना की गई थी. पर इससे बिल्कुल अलग, टीवी मीडिया में जब तेज़ी से विस्तार हुआ तो साथ-साथ उसमें काम करनेवाले लोगों के लिए कोई क़ानून या नियम नहीं बनाए गए.

पामेला के मुताबिक़ वो ऐसे क़ायदे बनाने में किसी की रुचि भी नहीं देखती हैं.

टेलीविज़न पत्रकारों का प्रतिनिधित्व करने के लिए हाल ही में ‘ब्रॉडकास्टिंग एडीटर्स एसोसिएशन’ बनाई गई लेकिन इस संगठन ने भी तनु शर्मा के मामले में अभी तक अपनी कोई राय ज़ाहिर नहीं की है. न ही संपादकों के संगठन ‘एडीटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया’ की ओर से इस विषय पर कोई बयान आया है.

 

न्यूज़ चैनल या अपनी जागीर?

तनु शर्मा के आरोपों के सामने आने के बाद दिल्ली में पत्रकारों के संगठन ‘प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया’ और महिला पत्रकारों के संगठन ‘इंडियन वीमेन्स प्रेस कोर’ ने एक संयुक्त प्रेस वार्ता की और कहा कि, “ये मामला एक बार फिर याद दिलाता है कि मीडिया संस्थानों में युवा महिला पत्रकार ऐसे माहौल में काम कर रही हैं जो अच्छे नहीं कहे जा सकते.”

इसी वार्ता में बुलाए गए वरिष्ठ पत्रकारों में से एक, सीएनएन-आईबीएन/आईबीएन-7 के मैनेजिंग एडिटर, विनय तिवारी ने कहा कि टीवी न्यूज़ चैनलों में नेतृत्व की भूमिका निभा रहे कई लोग, “उन जगहों को सामन्ती विचारधारा के तहत अपनी जागीर की तरह चला रहे हैं.”

विनय तिवारी के मुताबिक़ पत्रकारिता जगत की दिक़्क़त प्रोसेस और परसेप्शन के फ़र्क़ में हैं. क्योंकि कोई ठोस और यूनीफ़ॉर्म प्रक्रिया भारतीय चैनलों में नहीं है, जिसकी समझ में जैसे आता है, चैनल चलाता है.

उन्होंने कहा, “ये समझ बहुत व्यक्तिगत होती है, इसलिए जो लोग फ़ैसले करने की भूमिका में हैं, उनके हाथ में बहुत ताक़त है. उस ताक़त का ग़लत इस्तेमाल होने की गुंजाइश बढ़ जाती है.“

ये ताक़त महिला ही नहीं पुरुष पत्रकारों के ख़िलाफ़ भी अक्सर इस्तेमाल होती है.

तहलका के पूर्व संपादक तरुण तेजपाल पर अपनी एक सहकर्मी के साथ यौन हिंसा करने का आरोप है.

 

अकेले खड़े पत्रकार

चौबीस घंटे दुनियाभर की ख़बरों को तेज़ी से प्रसारित करने की ज़रूरत के चलते टीवी न्यूज़ चैनलों में काम करने के तौर तरीक़े मुश्किल माने जाते हैं.

वरिष्ठ पत्रकार प्रभात शुंगलू ने भारतीय चैनलों में सालों काम करने के बाद एक उपन्यास भी लिखा है.

शुंगलू के मुताबिक़ आम जनता की नज़र में न्यूज़ चैनलों के प्रति बहुत इज़्ज़त और विश्वास होता है और प्रताड़ना के आरोप उसे धूमिल करने की शक्ति रखते हैं.

बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा, “कहीं ना कहीं टीवी न्यूज़ चैनलों में एकजुटता दिखती है, जिसके तहत वो एक-दूसरे के बारे में ऐसे आरोप या वारदातों को सामने नहीं लाना चाहते, ऐसी शिकायतों को नज़रअंदाज़ करने की एक अनकही सहमति दिखती है.”

अमरीका, ब्रिटेन जैसे अन्य देशों में आज भी पत्रकारों की प्रभावी यूनियन काम कर रही हैं. पर भारत में प्रेस मीडिया के अलावा रेडियो, टीवी जैसे नए माध्यमों में कोई पत्रकार संघ नहीं है.

दिल्ली यूनियन ऑफ़ जर्नलिस्ट्स की अध्यक्ष सुजाता मधोक के मुताबिक़ इस वजह से टीवी पत्रकार बिल्कुल अकेले पड़ जाते हैं, “जब आपका साथ देने के लिए कोई आपके साथ नहीं खड़ा है, तो आप अपने हक़ या समाज के हक़ के लिए कैसे लड़ सकते हैं?”

साथ ही वो मानती हैं कि कॉन्ट्रैक्ट पर नौकरी के चलन ने मौजूदा संघ को भी कमज़ोर किया है.

सुजाता कहती हैं कि तनु शर्मा के मामले में किसकी ग़लती है ये फ़ैसला अभी नहीं सुनाया जा सकता लेकिन ऐसी घटना अगर किसी और कंपनी में होती तो उसको सामने लाने में मीडिया ही आगे होती.

उनके मुताबिक़, “मीडिया में ऐसी सांठ-गांठ है कि एक-दूसरे पर वो निशाना नहीं साधते, एकदम चुप्पी इसी वजह से है.”

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