बड़वानी | अगस्त 27, 2016: सरदार सरोवर परियोजना संबंधी नर्मदा न्यायाधिकरण के आदेशों का पालन करवाने वाली केन्द्रीय एजेंसी नर्मदा कंट्रोल अथाॅरिटी (एनसीए) के सदस्य (पुनर्वास एवं पर्यावरण) डाॅ॰ अफरोज एहमद ने प्रभावितों के आग्रह पर राजघाट स्थित आंदोलन के सत्याग्रह स्थल पर पहुँच कर उनसे मुलाकात की। उन्होंने स्वीकार किया कि प्रभावितों द्वारा उठाए गए केचमेंट एरिया ट्रीटमेंट, वैकल्पिक वनीकरण, भूकंप, बाँध के निचले क्षेत्र में प्रभाव, रेत खनन, नीति अनुसार पुनर्वास न किया जाना, बैक वाटर लेवल कम किया जाना आदि मुद्दे महत्वपूर्ण है। उन्होंने प्रभावितों को आश्वासन दिया कि वे इन मुद्दों को आगामी 31 अगस्त की मीटिंग तथा राज्य और केन्द्र सरकारों के समक्ष उठाएँगें। उन्होंने यह भी स्वीकारा कि आंदोलन के कारण प्रभावितों को उनके हक मिलना सुनिश्चित हो पाया।
सर्वश्री कैलाश यादव (कसरावद), जामसिंह भीलाला (अमलाली), महेश शर्मा (चिखल्दा), देवीसिंह तोमर (एक्कलबारा) सुश्री कमला यादव (छोटा बड़दा), कैलाश अवास्या (भीलखेड़ा) उमेश पाटीदार (गोपालपुरा) आदि ने डाॅ॰ एहमद को बताया कि सरकार प्रभावितों के लोकतांत्रिक और मानवाधिकारों को कुचलते हुए बगैर पुनर्वास किए बाँध का गेट लगाने की फिराक में है। प्रभावितों को खेती की जमीन नहीं दी जा रही है। पुनर्वास स्थल रहने योग्य नहीं है। ऐसे में एनसीए अपनी जिम्मेदारी से मुँह फेरकर मूक दर्शक क्यों बना हुआ है। बैक वाटर लेवल कम कर हजारों परिवारों को उनके अधिकारों से वंचित कर दिया गया है। मछुआरों को मछली का अधिकार नहीं दिया जा रहा है। सरकारें झूठे आँकड़ों से देश को गुमराह कर रही हैं। एनसीए के सदस्य के रूप में उन्हें आगामी मीटिंग में सच्चाई प्रस्तुत करनी चाहिए। बाँध के गेट बंद किया जाना प्रभावित कभी स्वीकार नहीं करेंगें।
आंदोलन की नेत्री सुश्री मेधा पाटकर ने कहा कि प्रभावितों के पुनर्वास के फर्जी आँकड़े प्रस्तुत करने के कारण मध्यप्रदेश सरकार की आंदोलन से बात करने की हिम्मत नहीं है। प्रभावितों ने कहा कि कलेक्टर तो इतना डरते हैं कि उनसे मिलने जाओं तो वे कलेक्टोरेट में ही धारा 144 लगा देते हैं।
डाॅ॰ एहमद ने स्वीकार किया कि प्रभावित गाँवों में अभी भी हजारों परिवार रह रहे हैं। मलेरिया, फाईलेरिया, सिस्टो सोमियोसिस जैसी जलाशय आधारित गंभीर बीमारियों के नियंत्रण संबंधी काम बाकी है। इन बीमारियों से डूब क्षेत्र के अलावा भी जलाशय के आसपास के गाँव और शहर प्रभावित होंगें।
August 29, 2016 at 9:37 am
The displaced people of the project must be rehabilitated and they should be provided alternative livelihood. The environmental concerns must be addressed.