MARCH 27, 2014

फेकूराम की भजन मंडली का ‘नमो नमो’ मन्त्र तो एक लम्बे अरसे से चल ही रहा था, मगर भक्तों में होड़ लगी तो कुछ को लगा की अब शिवजी की जगह इन्हीं को बैठा दिया जाए – सो ‘हर हर महादेव’  भी हड़प लिया गया. भला हो शिव भक्तों का कि उन्होंने यह दांव चलने नहीं दिया. और फिर खुद शंकराचार्य ने इस पर एतराज़ कर दिया. खैर, यह तो रहा परिवार के भीतर का झगडा. सुलट जायेगा.

मगर इसी बीच एक मोर्चा बनारस में खुल गया. फेकूराम के बैंड बजे तो दिल्ली तक में हमारी नींद उड़ाये हुए थे मगर अचानक एक अदना सा आम आदमी जा कर उसे ललकार आया. भक्तों ने अंडे फेंके, स्याही फेंकी – हर जतन कर के देख लिया. मगर आख़िरकार उसने पोल फोल ही दी. कहने लगे कभी इन्होने कांग्रेसियों या कांग्रेसियों ने इन्हें काले झंडे दिखाए? अंडे फेंके? तो ये बौखलाहट किस लिए है जी? आप दोनों की नूरा कुश्ती चलती रहती और सब आपस में बाँट कर लूट लेते – जैसे करते आये हैं – तो कोई परेशानी नहीं होती.

तभी एक भक्तन को लगा की उनकी भारत माता के साथ ‘गैंगरेप’ हो रहा है. देखिये नीचे इन भक्तन की ट्वीट. जैसे उन्हें मजबूर किया जा रहा है की वे अपनी माँ का सामूहिक बलात्कार देखें. अब तक तो अम्बानी, मनमोहन, चिदम्बरम, सिबल और फेकूराम की फ़ौज भारत माँ की आरती उतार रही थी – कहाँ से चले आये ये बलात्कारी!

Photo: The shamelessness of Madhu Kishwar... Her employer CSDS as well as her political mentor Mr Narendra Modi must clear their stand on this...
भारत माता की १९८४ में आरती उतारी गयी, १९९२ में बाबरी मस्जिद का ध्वंस करके आरती उतारी गयी और फिर २००२ में गुजरात में उतारी गयी.

 

आज तक भक्तन को नहीं लगा कि उसकी माँ के साथ कोई नाजायज़ हरक़त हुई है. हाँ भक्तन तो फेकू की भजन मंडली से है, फिर हम क्यों १९८४ के बीच में घसीट रहे हैं? १९८४ वाली लाइन तो उनके डायलौग का हिस्सा थी – बंटवारा तो ऐसे ही हुआ था. आप २००२ की बात कीजिये और हम १९८४ की करेंगे. वर्ना नूरा कुश्ती के क्या मायने होते? अब ये साला पाकिस्तान का दलाल, कहाँ से आ गया? किसे इसने कहा की सब घालमेल कर दे! सारा गुड़ गोबर कर दिया है इस बलात्कारी ने – और याद रहे बलात्कारी तो पाकिस्तान में ही बनते हैं. हम तो सिर्फ आरती उतारते हैं १९८४, १९९२ या २००२ की तरह. खैर, छोडिये ये सब फ़िज़ूल की बातें. एक कतरन देखिये:

bjp 1984 riotsचंद दोस्तों ने यह बचा कर रखा था – फेसबुक की बदौलत पेश-ए-खिदमत है.

वैसे तो इस कतरन की ज़रुरत नहीं थी मगर क्योंकी भक्तन साध्वी के अपने पिछले कुछ साल इसी डायलौग को दोहराते हुए बिता दिए (और उनकी भांती के कई औरों ने भी) इसलिए यह बात सामने रखनी पड़ रही है – ताकि सनद रहे.

मज़े की बात यह है फेकूराम की भजन मंडली ही नहीं खुद महारज भी सकते में आ गए हैं. बड़ी मुश्किल से उन्हें लाइनें याद कराइ गयी थीं – समझाया गया था की चुनाव “मियां मुशर्रफ” नहीं लड़ रहे हैं. उन्हें बताया गया था की आपे से बहार होना ठीक नहीं है.  “इटली नी कुत्ती” जी फिकरे प्रधान मंत्री पड़ के दावेदार के मुंह से शोभा नहीं देते. इसलिए “शहज़ादे” की बात करो (बेशक शब्द उर्दू से उधार लेना पड़े – नामुराद मियाओं की ज़ुबान से). कांग्रेस-मुक्त भारत की बात करो, विकास की बात करो – और कोई ठोस सवाल पूछे तो ताल जाओ. २००७ का करण थापर वाला कांड जिसमे आप स्टूडियो से ही उठ कर चल दिए थे, उसे  दोहराने से अच्छा है की किसी बातचीत में जाओ ही मत. किसे पता था की एक साला पाकिस्तानी एजेंट, मियां मुशर्रफ का भेजा हुआ (उनसे पूछिए पाकिस्तान के शासक का नाम तो यही बताएँगे), जो कहता है अपने आप को आम आदमी, रंग में भंग डालने चला आएगा? उलटे सीधे सवाल पूछेगा और खेल बिगड़ेगा? खैर जाने दीजिये यह सब बातें. चुनाव भी भला मुद्दों पर बहस के लिए होते हैं? राजनाथ ने कह न दिया है मुद्दे की किसी भी बात का जवाब नहीं दूंगा. जनतंत्र हमारी लौंडी है हम जैसे चाहें बर्ताव करें, आप कौन होते हैं जी?

 

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