फ़ैसल मोहम्मद अली

बीबीसी संवाददाता, रायगढ़ा के बिश्मकटक से

 

 गुरुवार, 1 अगस्त, 2013 को 11:08 IST तक के समाचार

लंदन में जब ब्रितानी कंपनी वेदांता के शेयर धारकों की सालाना बैठक की तैयारी हो रही है ठीक उसी वक्त लंदन से मीलों दूर ओडिशा के डोंगरिया कोंध आदिवासी तैयार हैं एक और ग्राम सभा की बैठक के लिए जो लांबा में है.

अब तक हुई आठ ग्राम सभाओं ने वेदांता के नियमगिरि पर्वत में क्लिक करेंखनन प्रस्ताव को रद्द कर दिया है.

ये तब जबकि राज्य शासन पर ये आरोप है कि चूँकि सुप्रीम कोर्ट ने ग्राम सभाओं की तादाद नहीं तय की थी, इसलिए डोंगरिया कोंध के 112 में से महज़ 12 गांवों में ही सभाओं का गठन किया गया.

“क्या मैं नक्सल दिखता हूं, वो तो डर के मारे पुलिस के सामने भी नहीं आते. हम तो गवर्नर से लेकर किसी से भी बात कर सकते हैं और उसके लिए तैयार हैं.”

लडो सिकाका, डोंगरिया कोंध समुदाय के सबसे बड़े सरदार

जंगल क़ानून के भीतर आदिवासी क्षेत्र में भूमि अधिग्रहण से पहले ग्राम सभा की मंज़ूरी लेनी ज़रूरी है लेकिन केंद्र सरकार की ओर से गठित एन सी सक्सेना कमेटी के मुताबिक़ ओडिशा शासन ने इस नियम की अनदेखी की थी.

क्लिक करें(नियमगिरी के बिना जी पाएंगे आदिवासी)

सुप्रीम कोर्ट का आदेश

18 जुलाई से शुरू हुई ये ग्राम सभाएं सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर तैयार की गई हैं और इन्हें इस बात के निर्णय का अधिकार दिया गया है कि क्लिक करेंनियमगिरि में खनन की इजाज़त दी जाए या नहीं.

गुरुवार के बाद ऐसी तीन और सभाएं होनी हैं. अंतिम बैठक 19 अगस्त को रायगढ़ा ज़िले के जरपा में होगी.

सभाएं सुप्रीम कोर्ट के पर्यवेक्षक की निगरानी में की जाती है और सभाओं के पूरे होने के बाद उसके फ़ैसले की रिपोर्ट उच्चतम न्यायालय को भेज दी जाएगी.

क्लिक करेंग्राम सभाओं को लेकर स्थानीय लोग बहुत जागरूक हैं और इसमें शामिल होने के लिए दूर-दराज़ से आदिवासी पैदल सफर कर पहुंचते हैं.

इजुरूपा की सभा में डोंगरिया कोंध के ‘मंडोल जानी’ यानी सबसे बड़े सरदार लडो सिकाका ने बीबीसी से कहा कि हम नियमगिरि किसी भी हाल में नहीं छोड़ेंगे, जब तक हमारे शरीर में ख़ून है हम नियम राजा की लड़ाई जारी रखेंगे.

क्लिक करें(डोंगरिया कोंध आदिवासियों का जीवन)

‘नक्सल होने का आरोप’

मुखर और गठीले बदन के सुंदर दिखने वाले लडो को नक्सल होने के आरोप में जेल भी जाना पड़ा.

वो कहते हैं, “क्या मैं नक्सल दिखता हूं, वो तो डर के मारे पुलिस के सामने भी नहीं आते. हम तो गवर्नर से लेकर किसी से भी बात कर सकते हैं और उसके लिए तैयार हैं.”

अरबपति अनिल अग्रवाल की ब्रितानी कंपनी पिछले लगभग दशक भर से प्रोजेक्ट को शुरू करने की कोशिश कर रही है लेकिन उसे सफलता नहीं मिली है बल्कि मानवाधिकार हनन और नियमों की अनदेखी के चलते उसे चर्च ऑफ़ इंग्लैंड, नॉर्वे और दूसरे शेयर धारकों को खोना पड़ा है और इन लोगों ने कंपनी से निवेश वापस ले लिया है.

सवालों के घेरे में वेदांता

ब्रितानी सरकार ने भी अपनी एक जांच रिपोर्ट में कंपनी पर कई सवाल खड़े किए थे.

क्षेत्र में रहने वाले डोंगरिया कोंध, झरनिया और कुटिया आदिवासियों का कहना है कि वो नियमगिरी को भगवान मानते हैं और इसमें खनन से उनकी धार्मिक भावना को ठेस पहुंचेगी.

वेदांत कालाहांडी के लांजीगढ़ में एल्यूमिनियम रिफ़ाइनरी का एक कारख़ाना तैयार कर चुकी है जो काम कर रहा है लेकिन फिलहाल उसे कच्चा माल बॉक्साइट, बाहर से लाना पड़ रहा है.

क्लिक करेंवेदांता खुद पर लगे आरोपों से इंकार करती रही है और अनिल अग्रवाल ने पहले कहा है कि वह क़ानून के ख़िलाफ़ कोई क़दम नहीं उठाएंगे.

बीबीसी ने इस बार भी वेदांता से बातचीत करने की कोशश की लेकिन उनके अधिकारियों ने बात करने से साफ़ मना कर दिया.

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