मोदीमय हो चुके कार्पोरेट घरानों की पूंजी जब्त की जाय और रिलायंससहारा समूहों के सभी उद्योगों का राष्ट्रीयकरण हो !

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कार्पोरेट आवारा पूंजी का दुरुपयोग होता देख अब बर्दाश्त से फाजिल हो गया है. बनारस में मोदी के नामांकन जैसे मामूली अवसर पर १०० करोड़ रूपये का खर्च क्यों और किसलिए? मोदीकी छवि चमकाने के नाम पर पंद्रह हजार करोड़ रूपये (१५००० करोड़ रूपये) का खर्च क्यों और कैसे हुआ? चुनाव बाद कार्पोरेट अम्बानी-अडानी की सारी पूंजी जब्त हो, और रिलायंस-सहारासमूहों के सारे उद्योगों का राष्ट्रीयकरण किया जाय.

 

चुनाव बाद “कार्पोरेट नियंत्रित मीडिया की भूमिका” पर भी चर्चा होना लाजिमी हो गया है. मीडिया को देश के प्रति जिम्मेदार होने के लिए उन पर कुछ “प्रगतिशील नियंत्रण” के साथआजादी होनी चाहिए.

 

देश में बड़े इजारेदार पूंजीपतियों व सामंतों के एक हिस्से द्वारा; आरएसएस-भाजपा के जरिये जिस तरह आज नए “फासीवादी उन्माद” पैदा किये जा रहे है, अगर समय रहते आरएसएस-भाजपा के “मोदीत्व फासीवादी” फन को, कुचला न गया तो यह घोर अपराधपूर्ण कायरता होगी.

 

इतिहास हालांकि गवाह है की हिटलरी फासीवाद अंततः “सोवियत लाल सेना” से पराजित हुआ और बाद में हिटलर अपने पूरे परिवार के साथ आत्म-हत्या करने को मजबूर हुआ था.बहरहाल, यह भी एक कठोर सत्य है की “हिटलरी फासीवाद ने अकेले जर्मनी में ही पहले एक करोड़ लोगों का कत्लेआम किया था, और बाद में, दुसरे विश्वयुद्ध के दौरान; लगभग तीनकरोड़ लोग मारे गए थे.’ यह नौबत हमारे देश में न आने पाये और ऐसी नौबत आने से पहले ही क्यों न उसे कुचल दिया जाना चाहिए.

 

तीन दिन पहले ही राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा, पूर्वी उत्तर-प्रदेश, बिहार के बक्सर, आरा से लेकर मुग़ल सराय, इलाहाबाद, झांसी और उधर पश्चिम उत्तर-प्रदेश के इलाके से बड़ी संख्या मेंलोगों को जमजुटकर आने का फरमान जारी किया गया था. जबकि, मोदी को यह चुनाव बनारस से, बनारस के लिए, बनारस में लड़ना है…फिर साहेब का फरमान किसलिए आया भाई, “चलो भाई बनारस” यहां मुर्गा-मछली, दारू-शराब, गाड़ी-घोड़ा, सबकुछ तेरे लिए फ्री है. जितनी मर्जी खाओ, उड़ाओ.घूमो-फिरो…पर यहां आना हर्वे-हथियार के साथ हुड़दंग मचाने…कबाब मेंहड्डी बने केजरीवाल वालों को खूब मारो, पीटो, धमकाओ…ताकि वह बीच में ही मैदान छोड़कर भाग जाए. राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा में बैठकर १६ मई तक क्या उखाड़ोगे शकरकंद?

 

गुजरात में मोदीराज की सच्चाईयों बयान करती है

क्या यह सच नहीं है कि, नरेंद्र मोदी ने ही बजरंग दल के हरीश भट्ट को कहा था, “तीन दिन की खुली छूट होगी,” इस बीच हम दुनिया वालों को जवाब दे देंगे कि सरकार को क़ानून-व्यवस्था नियंत्रित करने में वक्त तो लग ही जाता है. 2002 में गुजरात के जिन गावों में मुसलमानों को मारा-पीटा गया था, उनके बाँकी परिवार अभी तक अपने घरों में वापस नहीं लौटे हैं.कुछ कस्बे में मुसलमानों के लिए कॉलोनियां बनी हैं. लेकिन इस कॉलोनी को आम लोगों की मदद से बनाया गया है, सरकार का इसमें कोई सहयोग नहीं मिला है. मुसलमानों की घनीआबादी वाला कॉलोनी जहां कूड़ेदान महीनों तक साफ नहीं किए जाते है यह गुजरात में मोदीराज की सच्चाईयों का बखान करते है जो विकास कथा के चेहरे पर बदनुमा दाग है…गुजरात केबहुत बड़े इलाके के लोग विकास से तो बहुत पीछे छूट गए हैं, यहाँ बुनियादी सुविधाएं मसलन, पीने के स्वच्छ पानी की उपलब्धता, साफ़-सफाई, शिक्षा व स्वास्थय जैसी भी लोगों कोमयस्सर नहीं है और जहां कही भी ये सुविधाएं है वहा पर इन चीजों में भारी भेदभाव बरता जाता है.

 

साम्प्रदायिकफासीवाद विरोधी जनमंच