by Darab Farooqui
मेरे कुछ बुरे दिन तुम्हारे पास पड़े है – 2
भाईचारे से कुछ भीगे दिन रखे हैं
और मेरे इक आह में लिपटी आस पड़ी है
वो आस भुला दो, मेरा वो सामान लौटा दो – 2
मेरे कुछ बुरे दिन तुम्हारे पास पड़े है – 2
दंगे मोदी जी… याद है ना ?
ओ ! दंगों में कुछ लाशों के गिरने की आहट
कानों में एक बार पहन के लौट आई थी
दंगो का वो खौफ़ अभी तक कांपा रहा है
वो कपकपी भुला दो, मेरे वो बुरे दिन लौटा दो – 2
हम अपनी ग़रीबी में जब आधे आधे भीग रहे थे – 2
आधे भरे आधे भूखे, भरा तो मैं ले आयी थी
भूखा पेट शायद, दरवाज़े के पास पड़ा हो !
वो भिजवा दो, मेरे वो बुरे दिन लौटा दो – 2
60 साल कांग्रेस की भूखी रातें, और तुम्हारे ये तीन साल – 2
अच्छे दिनों के ये वादे, झुठ-मूठ के शिकवे कुछ
झूठ-मूठ के वादे सब याद करा दूँ
सब भिजवा दो, मेरे वो बुरे दिन लौटा दो – 2
मेरे कुछ बुरे दिन तुम्हारे पास पड़े है – 2
भाईचारे से कुछ भीगे दिन रखे हैं
और मेरे इक आह में लिपटी आस पड़ी है
वो आस भुला दो, मेरा वो सामान लौटा दो – 2
मेरे कुछ बुरे दिन तुम्हारे पास पड़े है – 2
July 20, 2017 at 9:22 pm
Very good expressive poem