भगतसिंह को दूसरी बार फांसी ? : जिज्ञेश मेवानी

Guest Post by Jignesh Mevani

(कहानी उस खिलवाड की जो भगतसिंह के विचारों के साथ नरेन्द्र मोदी ने गुजरात में किए)

महान क्रान्तिकारी शहीद भगतसिंह के दूर के रिश्तेदार यादवेन्द्र संधु ने कुछ दिन पहले एलान किया है कि वे भगतसिंह की जेल डायरी का नया संस्करण प्रकाशित करेंगे और उसका विमोचन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाथों करवाएंगे. जैसे ही ये खबर भगतसिंह के बाकी परिवारजनो तक पहुंची शहीद.ए.आजम का पूरा परिवार सदमे में आ गया, भगतसिंह की जेल डायरी का विमोचन और वो भी नरेन्द्र मोदी के हाथो, हरगिज नहीं . भगतसिंह के करीबी रिश्तेदार जगमोहनसिंह ने इस मसले पर आपत्ति जताते हुए अखबार में निवेदन दिया. गुजरात के दंगो में नरेन्द्र मोदी की जो भूमिका रही उससे वाकिफ सभी का एक ही कहना था की मोदी के हाथों भगतसिंह की जेल डायरी का विमोचन हो उससे तो बेहतर है कि विमोचन का कार्यक्रम ही न हो.

सवाल यह उठता है कि आखिर किस वजह से नरेन्द्र मोदी के नाम पर भगतसिंह के इन तमाम रिश्तेदारों को एतराज है ?

यदि आज भगतसिंह जिंदा होते तो नरेन्द्र मोदी को पूछते –

1. गुजरात में तुम्हारे शासन के दौरान करीब ७ हजार मासूम बच्चे गायब हो गए है. इस मामले में उच्चस्तरीय जांच करवाने से क्यों डरते हो ? किसे बचाना चाहते हो ?

2. यदि तुमने कुछ गलत नहीं किया तो खुलकर कहते क्यों नहीं कि मैं हरेन पंड्या हत्याकांड की दुबारा जांच करवाने को तैयार हूं.

3. आसाराम आश्रम में मानवबलि का कथित शिकार हुए दिपेश, अभिषेक के पिता शांतिभाई बाघेला और प्रफूल्ल वाघेला पांच साल पहले जब अनशन पर बैठे थे तब उन्हें अपने बंगले पे बुलाकर उनका अनशन तुडवाकर तुमने यह वचन दिया था कि पाताललोक में से भी दिपेश, अभिषेक के कातिलों को ढूंढ निकालेंगे. आज पांच साल बीत गए, उनके कातिलों को पकडने के बजाय उनके पिता जब दुबारा अनशन पर बैठते है तब उन्हें घसीटते हुए पुलिस थाने में डाल देने की जरुरत क्यों पडती है. आखिर तुम्हें एक बलात्कारी तांत्रिक से इतना लगाव क्यों है ?

4. तुम्हारी सरकार के खिलाफ हजारो को करोड के भ्रष्टाचार के आरोप लगे है. केग (CAG) के रिपोर्ट में भी हजारो करोड के घोटाले उजागर हुए हैं . क्या यही वो वजह थी कि ईतने सालों तक गुजरात में लोकायुक्ति की नियुक्ति होने न दी.

5. गुड गवर्नन्स के दावे करते हो लेकिन गुजरात की लाईफ.लाईन नर्मदा केनाल के निर्माण के लिए ७० हजार करोड के बजेट का प्रावधान करने के बावजूद पिछले दस सालो में आधा काम भी पूरा कर नहीं पाए, तो फिर विकास की इतनी डींगे क्यों मारते रहते हो. गुजरात का एक भी जिला नहीं जहां नर्मदा की केनालें तूटी न हो, आज तक इस केनाल नेटवर्क को तैयार करने में जो हजारों करोड डाले वो कहां गए ?

6. तुम एक तरफ गौ.रक्षा कि बाते करते हो और दूसरी तरफ हजारो एकड गौचर.भूमि कोर्पोरेट्स को गिफ्ट दे देते हो. क्या यही है तुम्हारा हिन्दु.राष्ट्रवाद ?

7. सरदार पटेल की भव्य प्रतिमा बनाने जा रहे है, लेकिन सरदार पटेल के नाम से तुम जितने कार्यक्रम करते हो उस में सरदार का दूर का रिश्तेदार भी पैर रखने को तैयार नहीं है, क्यों ? आज जरुरत क्या है २५०० करोड का खर्चा करके सरदार की प्रतिमा बनवाने की या सरदार पटेल के नामसे गुजरात के सभी जिलों में सरकारी अस्पताल बनवाने की.

8. यदि तुम में थोडा भी आत्मसन्मान है तो अमरिका को बोल क्यों नही देते . नहीं चाहिए तुम्हारा वीसा(visa) . हम लोग तो ब्रिटीश साम्राज्यवाद के खिलाफ लडते लडते फांसी तक चड गए, लेकिन एक वीसा जैसी वस्तु के लिए तुम अमरिका के क्यों गिडगिडा रहे हो ?

9. मैं तो जिन्दगी भर नास्तिक रहा, मैने निबंध भी लिखा है ‘मै नास्तिक क्यों हूं’ लेकिन तुम्हारा पूरा जीवन कुछ गंदे लंपट भ्रष्टाचारी, पाखंडी साधुओ के बीच में गुजरा है. मेरा नाम अपनी जबान पे लेते हुए तुम्हे शर्म नहीं आई.

वक्त आ गया है कि हमारे देश की जनता उच्च चरित्रवाले एक महान क्रान्तिकारी और गंदी राजनीति का प्रतिक बन चूके पी एम उम्मीदवार, इन दोनों के बीच का अंतर समझ पाए. यह अंतर समझना हमारे देश की राजनीति के लिए आज बेहद जरुरी है.

भगतसिंह और सांप्रदायिकता का सवाल

असेम्बली में बम कांड की कारवाई के दौरान भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त ने अदालत के सामने जो लिखित बयान दिया था उसमें उन्होंने कहा था: मानवता को प्यार करने में हम किसी से पीछे नहीं है, हमे किसी से व्यक्तिगत द्वेष नहीं है और प्राणिमात्र को हमेशा प्यार की द्रष्टि से देखते आये है. यदि मोदी मानवता को प्रेम करते होते तो बलात्कार के आरोपी आसाराम की कस्टडी गुजरात ट्रान्सफर करने पर आसाराम को वीआईपी ट्रीटमेन्ट न दी जाती. तीन महिनों में १६ बार बलात्कार का शिकार हुई आदिवासी महिला को एक एफआईआर दर्ज करवाने गुजरात के पुलिस थानों मे ठोकर न खानी पडती. सौराष्ट्र के चूडा तहसील में बलात्कार का शिकार बनी १६ साल की ग्रामीण् लडकी के मा.बाप को एफआईआर दर्ज करवाने के लिए गिडगिडाना न पडता. २००२ के दंगो के दौरान जो अनगिनत बलात्कार हुए उन में गुजरात सरकार कारवाई करती जिससे आज पूरा देश वाकिफ है.

यदि वे मानवता को प्यार करते होते तो अपने ही साथी हरेन पंड्या की हत्या का आरोप न लगता. तुलसीराम प्रजापति को फर्जी मुठभेड में मार दिया न जाता. यदि मोदी मानवता को प्यार करते होते तो गुजरात में उनके शासन के दौरान जो ७ हजार बच्चे गायब हो गए है उस मामले की उच्चस्तरीय जांच करवाई होती. लेकिन जिसे मानवबलि बलात्कार और हत्या के शिकार हुए मासूम बच्चों के लिए ही प्यार न हो उसे पूरी मानवता के लिए प्यार कैसे हो सकता है.

पिछले दस सालो में मोदी ने गुजरात में मुसलमानों की जो दुर्दशा की है, जिस तरह हिन्दु .मुसलमान को एक सोची समझी राजनीति के तहत विभाजित किया गया, उसे देखते हुए क्या लगता है कि वे प्राणिमात्र को हमेशा प्यार की द्रष्टि से देखते आए है. एक सेकन्ड के लिए हम कल्पना करे कि नरेन्द्र मोदी अपने भाषण में कह रहे है की वे मानवता को प्यार करने में किसी से पीछे नहीं है. क्या यह सुनकर कोई भी मुसलमान उनके इस दावे पे यकीन कर पाएगा.

यदि मानवता का अंश मात्र भी उनमें होता तब उन्होंने २००२ के दंगो के मामले में माफी मांगी होती. पिछले १० साल में बार बार पत्रकारों के पूछने के बावजूद मोदी २००२ के दंगो की माफी मागने को तैयार नहीं हुए. वोट बेंक के लिए आज जब मुसलमान भाईयो को टोपियां पहनाकर अपने कार्यक्रमों में बुलाने की नौबत आई है तब हमे यह भी याद आ रहा है कि जब सचमुच सद्भावना की बात करने की जरुरत थी तब तो मोदीजी पूरे गुजरात में गौरव यात्रा लेकर घूम रहे थे और मुसलमानों के जख्मों पर नमक छिडकने के लिए खुलेआम एसे बयान देते रहते थे की दंगा पीडितो के लिए बनाये गए रीलिफ केम्पस् मुसलमानों के लिए बच्चे पैदा करने की फैक्टरीयां बन गए है.

यदि मोदी का तनिक भी हदय.परिवर्तन हुआ होता तो मुसलमानो की कुत्ते के पिल्ले के साथ तुलना करने की हरकत न की होती. पिछले विधानसभा चुनावो के दौरान गुजरात की जनता की सांप्रदायिकता को भडकाने के लिए सोनिया गांधी के सचिव अहमद पटेल को अहमद मियां पटेल कहकर बारबार मियां शब्द दोहराकर ठहका मारके हंसते हुए तालियां बटोरने की जरुरत न पडती. २००७ के चुनावो के दौरान गुजरात की जनता को खुलेमंच से यह पूछने की जरुरत न पडती की कहिए ‘सोहराबुद्दीन के साथ क्या किया जाए’

भगतसिंह ने जिन दिनों क्रान्ति मार्ग पर कदम रखे उन दिनों बहुत से एसे नौजवान थे जो हिन्दुत्त्व को ही राष्ट्रवाद मानते थे, लेकिन भगतसिंह वंदेमातरम और इन्कलाब जिन्दाबाद के बीच का अंतर भी समजते थे और सेक्युलरिजम को भी समजते थे, यहां तक कि लाला लाजपत राय जिन्हे वे अपने गुरु के समान मानते थे, उनका सेक्युलरिजम भी जब लडखडाया तब भगतसिंह ने उनके खिलाफ भी जमकर लिखा. जिन दिनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी संकीर्ण राजनीति का मेनिफेस्टो तैयार कर रहे थे, उन्हीं दिनों में भगतसिंह ‘सांप्रदायिक दंगे और उसका इलाज’ लिख रहे थे.

आज भगतसिंह जिन्दा होते तो मोदी को गुजरात का गौरव मानते या गुजरात का कलंक.

भगतसिंह और अछूत समस्या

अछूत का सवाल निबंध में भगतसिंह लिखते है .

‘सबसे पहले यह निर्णय कर लेना चाहिए कि सब ईन्सान समान है क्योंकि एक आदमी गरीब मेहतर के घर पैदा हो गया है, इसलिए जीवन.भर मैला ही साफ करेगा और दुनिया में किसी तरह के विकास का काम पाने का उसे कोई हक नहीं है, ये बातें फिजूल है.’

जबकि नरेन्द्र मोदी का दर्शन कुछ और ही कहता है. मोदी ने २००७ में कर्मयोग नामकी सरकारी किताब में अपनी मदययुगीन मानसिकता का परिचय देते हुए कहा .

सफाई कर्मचारी – जिनमें से ज्यादातर मैला ढोने का काम करते है – को सफाई काम करने में आद्यात्मिकता का अनुभव होता है. मैं नहीं मानता की ये लोग इतने सालों से यह काम सिर्फ लाईवली हूड के लिए कर रहे है. यदि मामला सिर्फ लाईवली हूड का होता तो वे यह काम पीढी दर पीढी नहीं करते रहते. कभी तो उन्हें यह ज्ञान प्राप्त हुआ होंगा कि यह तो उनकी -वाल्मिकीयों की-ड्युटी है की वे समाज की खुशहाली के लिए सफाई कामदार के रुप में काम करते रहे. यह काम स्वयं भगवानने उन्हे करने को कहा है और सदियों से चली आ रही यह प्रथा आद्यात्मिकता के रुप में चलती रहनी चाहिए. मेरे लिए यह मानना असंभव है कि इतने सालों के दौरान वाल्मिकी सफाई कामगारों के पास दूसरा कोई व्यावसायिक विकल्प भी नहीं था. इस मामले को लेकर विवाद मचने ही वाला था की उन्होंने किताब वापस खींच ली लेकिन उनकी मनुवादी मानसिकता में कोई फर्क नहीं पडा. दो साल के बाद उन्होंने एक प्रसंग पे दलितों के बारे में टिप्पणी करते हुए कहा .आप शहर की सडके साफ करते है, कुछ लोग मंदिर साफ करते है, आप का और मंदिर के पूजारी का काम एक जैसा ही है (page 48-49)

मोदी का मतलब साफ था. दलितो को जाति.व्यवस्था के आधार पर जो भी पारंपरिक काम सोंपा गया है, वह चूपचाप करना चाहिए और उसी काम में आदयात्मिकता की खौज करनी चाहिए. ये जाति.व्यवस्था का खुलेआम समर्थन नहीं तो और क्या है. कुछ महिने पहले मोदी को और एक तुक्का सूझा उन्होंने दलितो को कर्मकांड सीखाने की योजना तैयार करवाई जिसके तहत दलितों को शास्त्रों के अनुसार कर्मकांड कैसे किया जाए उसकी तालिम दी जाएंगी यानि जिस ब्राह्मणवादी संस्कृति के खिलाफ उठ खडे होने के लिए दलितों को वैचारिक तौर पर तैयार करना चाहिए, उसी ब्राह्मणवादी संस्कृति में उन्हें वापस ले जानी की योजना. वाह क्या चाल है. ये महाशय भारत के भाग्यविधाता बनना चाहते है.

भगतसिंह ने इसी निबंध के दलितों को वर्तमान व्यवस्था के खिलाफ बगावत खडी करने के लिए प्रेरित करते हुए कहा था.

‘तुम असली सर्वहारा हो. उठो और बगावत खडी कर दो.’

जब कि मोदी चाहते है कि दलित केवल झाडू ही लगाए, गटर ही साफ करे, मैला ढोये और उसीमें आदयात्मिकता का अनुभव करे. मोदीजी आप के ये विचार पूरे देश को शरमींदगी महसूस कराते है.

साम्राज्यवाद और भगतसिंह्न

‘जब तक मनुष्य द्वारा मनुष्य का तथा एक राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र का शोषण जो साम्राज्यशाही के नाम से विख्यात है समाप्त नहीं कर दिया जाता तब तक मानवता को उसके कलेशों से छुटकारा मिलना असम्भव है और तब तक युद्धों को समाप्त कर विश्व.शान्ति के युग का प्रादुभार्व करने की सारी बातें महज ढोंग के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं हैं’

यह शब्द थे भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त के जो उन्होंने असेम्ब्ली में बम फेंकने के बाद ६ जून सन् १९२९ को दिल्ली के सेशन जज लियोनाई मिडिल्टन की अदालत में बयान देते वक्त कहे थे.भगतसिंह के साम्राज्यशाही के खिलाफ बयानों का जज पर उतना असर पडा की इस बमकाण्ड में भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास की सजा सुनानेवाले जस्टिस मेडिल्टन ने अपने फैंसले में लिखा: ‘ये लोग इन्कलाब जिन्दाबाद और सर्वहारा जिन्दाबाद के नारे लगाते हुए अदालत में दाखिल होते थे जिससे साफ पता चलता है कि वे किस क्सिम की विचारधारा में यकीन करते हैं. ईन विचारों के फैलाव को रोकने के लिए मैं उन्हें आजीवन कारावास की सजा दे रहा हूं.

भगतसिंह के क्रांतिकारी साथी शिव वर्मा ने संस्मृतियां में एक यादगार किस्सा लिखा है. वे लिखते है कि जब भगत सिंह को फांसी देने का वक्त आ गया तब वे जयदेव कपूर और दूसरे क्रांतिकारी साथी के साथ भगतसिंह को उनकी कोठरी तक मिलने गए. शिव वर्मा लिखते है: उनसे -भगतसिंह से – अन्तिम विदाई लेकर जब हम लोग चलने लगे तो हममें से एक -जयदेव कपूर – ने भगतसिंह को पूछा .सरदार तुम मरने जा रहे हो, मैं जानना चाहता हूं कि तुम्हैं इसका अफसोस तो नहीं है, प्रश्न सुनकर भगतसिंह ठहाका मारकर हंसा फिर गंभीर होकर बोला क्रान्ति के मार्ग पर कदम रखते समय मैने सोचा था कि यदि मैं अपना जीवन देकर देश के कोने.कोने तक इन्कलाब जिन्दाबाद का नारा पहुंचा सका तो मैं समझूंगा कि मुझे अपने जीवन का मूल्य मिल गया. आज फांसी की ईस कोठरी में लोहे के सीखचों के पीछे बैठकर भी मैं करोडों देशवासियों के कंठो से उठती हूई उस नारे की हुंकार सुन सकता हूं. मुझे विश्वास है कि मेरा यह नारा स्वाधीनता.संग्राम की चालक शक्ति के रुप में साम्राज्यवादियों पर अन्त तक प्रहार करता रहेगा.

यानि भगतसिंह ने पूंजीवाद और साम्राज्यवाद के खिलाफ एक युद्ध छेडा हुआ था और उसी युद्ध में लडते लडते वे शहीद हुए.जबकि नरेन्द्र मोदी जो भगतसिंह की जेल डायरी विमोचन करने का खाब देख रहे है, खुलेआम साम्राज्यवादि ताकतों का समर्थन करते है बल्कि यूं कहीये की मोदी ने गुजरात को साम्राज्यवादी केम्प के नंगे.नाच का मंच बना रखा है, उनका वाईब्रन्ट गुजरात ग्लोबल ईन्वेस्टर्स समिट साम्राज्यवादि वैश्विीकीकरण का ही प्रोग्राम है. गुजरात की जनता को यह कह कर बेवकूफ बनाया जाता है कि गुजरात में २० लाख करोड तक का पूं्जी निवेश होंगा और हजारों युवाओ को रोजगार मिलेंगा जबकि हकीकत यह है कि मोदी सरकार न तो पूंजी निवेश के आंकडे प्रकाशित करने तैयार है न तो कितने युवाओं को रोजगार दिलाया उसकी हकीकत सामने रखने को तैयार है. गुजरात इन्डस्ट्रीयल डेवलपमेन्ट कोर्पोरेशन्स के युनिटस एसइजेडए एसआईआर;स्पेशिअल ईन्वेस्टमेन्ट रीजन्सद्, न जाने एसे कौन कौन से प्रोजेक्टस के अंतर्गत देशी .विदेशी पूंजीवादी ताकतों को लाखो एकड उपजाउ जमीन माटी के भाव भेट दी जा रही है. औद्योगिकरण जरुरी है लेकिन औद्योगिकरण के नाम पर कोर्पोरेट लूंट का काला कारोबार चल रहा है. सीएजी (CAG) की रिपोर्ट के अनुसार गुजरात में ५०० से ज्यादा एसे पोकेट्स है जहां कौन.सी कंपनीयों को कौन से प्रोजेक्ट के लिए जमीने दी गई है, उसका गुजरात सरकार – जो पारदर्शिता की डींगे मारती रहती है – के पास कोइ जवाब नहीं. एक.दो नहीं पूरे ५०० से ज्यादा एसे पोकेट्स है जहां जमीने कौन से पूंजीपतीयों को कौन सी शर्त पे दि गई वह रहस्य है.

यानि ग्लोबल और लोकल पूंजीवादी ताकतों के लिए गुजरात स्वर्ग समान बन गया है मानो नरेनद्र मोदी का जीवनमंत्र हो . वेलकम टू वाईब्रनह्न गुजरातः आईए और हमे ंलूंटिएण्ण् यहां मुफत में जमीन भी मिलेंगी, सरकारी रिहायतें भी मिलेंगी और सस्ते दामों पर मजदूर भी मिलेंगे यहां तक की मोदीजी चाईना जाकर वहां की कंपनीओ को भी न्योता दे आए है टाटा को नेनो प्रोजेक्ट के लिए जब सिंगुर में गालियां खानी पडी तब नरेन्द्र मोदी ने सामने से उन्हें एक एक मैसेज भेजा .सुस्वागत. टाटासाहब गुजरात क्युं न जाते जब रातोरातो अहमदाबाद के बगल के सान ंद टाउन में हजारो एकड उपजाउ जमीन करीब ३३,००० करोड की सबसीडी के साथ ०ण्०००१ प्रतिशत के ब्याज दर पर मिल रही हो नेनो प्रोजेक्ट पूरी तरह फ्लोप गया, बावजूद पानी की जो आपूर्ति कंपनी को पहले दिन की जा रही थी आज भी उसी मात्रा में पानी दिया जा रहा है जबकि सौराष्ट्र के हजारो गांव की महिलाओंको पानी का एक मटका भरने के लिए दस.दस किलोमीटर दूर तक जाना पडता है. करोडो के भ्रष्ट्राचार के चलते ७० हजार करोड का बजेट.प्रावधान करने के बावजूद गुड गवर्नन्स का दावा करनेवाली मोदी सरकार नर्मदा की केनाल का आधा नेटवर्क भी पूरा कर पाई नहीं, लेकिन खूश्बू गुजरात की एड.फिल्म में ये सब देखने को नहीं मिलेंगा क्योेॆकी उसमें बच्चन साहब गुजरात का वही कोना दिखाएंगे जो दिखाने के लिए उन्हे करीब करीब ६० करोड मिले है.

दो साल पहले जब निरमा के खिलाफ तटीय गुजरात के भावनगर जिले के महुवा तहसील के 11111 किसानो ने अपने खून में भिगोए अंगूठे की छाप के साथ मोदी को आवेदनपत्र भेजा . निरमा कंपनी की सिमेन्ट फेक्टरी के विरोध में मोदी ने किसानो की एक न मानी, जब 11111 किसानो के खून में भिगोए अंगूठे मोदी को दिल में उनके प्रति सह्नभावना पैदा न कर पाए तब ३००० हजार किसान दो महिने की मशकक्त के बाद २८० किलोमीटर पेदल चलते एक एतिहासिक पदयात्रा लेकर महुवा से गांधीनगर पहुंचे और नरेन्द्र मोदी को रुबरु आवेदनपत्र देते हुए निरमा कंपनी को उनके खेतो से हटाने का प्रस्ताव रखा लेकिन मोदी ने बेशरमी के साथ कह दिया . निरमा का प्लाान्ट वहीं बनेंगा आप चाहे तो महुवा वापस जाने के लिए सरकारी ट्रान्सपोर्ट की व्यवस्था करवा ह्न. ये है मोदी जी का वास्तविक चरित्र निरमा कंपनी के हितो की रक्षा करने के लिए वे हजारो किसानो को हितो की बलि चढा सकते है.

दो.तीन साल पहले मोदी ने अपनी चिरपरिचीत शैली में एलान किया . जरुरत पडने पर हम पूरे हिन्दुस्तान को बिजली प्रोवाईड करेंगे. हमारे वाईब्रन्ट गुजरात में बिजली सरप्लस है, जब एक मैने आरटीआई लगाकर पूछा कि गुजरात में खेतीबाडी बिजली कनेक्शन की कितनी अर्जीयां कितने सालो से पेन्डिग है. जवाब मिला . पिछले १७ सालो से करीब चार लाख किसानो को खेतीबाडी के लिए बिजली कनेक्शन नहीं मिला, लेकिन जब दूसरी आरटीआई डाली और पूछा .इन्डस्ट्रीअल ईलेकट्रीकल कनेक्शन की कितनी अर्जीयां पेन्डींग है. जवाब मिला .शून्य यानि ईन्डस्ट्रीयल लोबी को या पूंजीपति वर्ग को बिजली चाहिए तो रातोरात कनेक्शन मिल जाता है लेकिन पिछले १७ साल से वे चाल लाख किसानो को खेतीबाडी बिजली कनेक्शन के लिए तडपा रहे है. वैश्विीकीकरण के इस दौर में वाईब्रन्ट गुजरात में बिजली किसानो के बजाय टाटा या अदानी को मिले वह स्वाभाविक है लेकिन जनता की आंखो में धूल झोंकते हुए मोदी खुलेआम झूठ चलाते हुए कहते है . गुजरात का एक भी गांव अैसा नहीं है जहां बिजली न पहुंची हो उनकी यही काबिलियत की वजह से उन्हें ‘फेंकू’ के साथसाथ ‘श्गोबेल्स ओफ गुजरात ईन धी एरा ओफ ग्लोबलाईजेशन’ कहने का मन करता है.

यदि आज भगतसिंह जिन्दा होते तो भूमि का कोर्पोरेटाईजेशन करने के बजाय क्रांतिकारी भूमि.सुधार की बात करते ताकि हमारा समाज जाति उन्मूलन की दिशा में भी कदम बढा शके, लेकिन गुजरात में लेन्ड सीलींग एक्ट के तहत पिछले ५५ सालो से दलित एवं अन्य भूमिहीनों को जमीनों का आबंटन नहीं किया जा रहा और मोदी के राज में तो ये हो भी कैसे जब लेन्ड टू दी टीलर का नारा लेन्ड टू धी टाइकून्स बन गया हो.

भगतसिंह को असेम्ब्ली बम्ब कांड में मुकद्दमें की कारवाई के दौरान जब पूछा गया की क्रान्ति ते तुम्हारा क्या मतलब है किसानो और मजदूरो के हाथ में राजसत्ता श् लेकिन नरेन्द्र मोदी का दिल किसान या मजदूर के लिए नहींए बल्कि  अदानी या अंबानी के लिए धडकता है जिन पूंजीपति व�¤ �्ग के खिलाफ लडना भगतसिंह का जीवन.लक्ष्य था, उसी पूंजीपति वर्ग की चाकरी करना नरेन्द्र मोदी का जीवनमंत्र है.

गुजरात में श्रमजीवी वर्ग के हालात

भगतसिंह और उनके साथियों ने असेम्ब्ली में बम फेंकने का निर्णय तब लिया जब अंग्रेज हकूमत ने कम्युनिज्म – बांए बाजू – की शक्तियों और श्रमिक वर्ग के आन्दोलन को कुचलने के लिए असेम्ब्ली में दो बिल पेश करने का फैंसला लिया . पब्लिक सेफ्टी बिल और ट्रेड डिस्प्यूट्स बिल. पहला बिल उन लोगों के खिलाफ था जो ब्रिटीश.भारत या किसी भारतीय रजवाडे के निवासी नहीं थे. पहले बिल में गवर्नर जनरल को यह अधिकार दिया गया था कि वह अंग्रेज या अन्य विदेशी कम्युनिस्ट को भारत से निकाल दे. दूसरे बिल का उद्देश्य मजदूरों के ट्रेड यूनियन अधिकारों की कटौती करना था.

अब देखते है गुजरात में मजदूर वर्ग के हालात कैसे है. नेशनल सेम्पल सर्वे के एक अभ्यास के मुताबिक मजदूरो को न्यूनतम वेतन देने मे सबसे कंगाल पर्फोर्मन्स रहा हो वैसे राज्यों में गुजरात नंबर वन स्थान पर है, यहां तक कि गुजरात सरकार ने लोकरक्षक, विद्यासहायक, फोरेस्ट गार्डस् जैसे करीब १.४५ लाख सरकारी कर्मचारियों को सालो तक न्यूनतम वेतन से आधे पगार में – २५०० रूपए – फिक्स वेतन पे नौकरी करवाई है और यह शोषण आज भी जारी है. जब फैक्टरी के मजदूर को या खेतिहर मजदूर को उनका मालिक न्यूनतम वेतन तक देने को तैयार नहीं होता तब वे सरकार के पास न्याय मांगते है, लेकिन २० लाख करोड के विदेशी पूंजी निवेश के दावे करनेवाली गुजरात सरकार अपने खुद के सरकारी कर्मचारियों को ही न्यूनतम वेतन नहीं दे रही यहां तक कि गुजरात विधानसभा मे जो सिक्युरिटी गार्डस और लिफ्टमन तैनात है उन्हें भी न्यूनतम वेतन नहीं मिलता. गुजरात के १८ हजार गांव की करीब १२ हजार पंचायतो में काम करनेवाले ग्राम सेवको को भी न्यूनतम वेतन नहीं मिलता.

दो साल पहले गुजरात की राजधानी गांधीनगर में गुजरात इन्डस्ट्रीअल सिक्युरिटी फोर्स सोसायटी के ३००० गार्ड लगातार १० दिन तक अनशन पर बैठे. ये गार्ड गुजरात विधानसभा से लेकर सरदार सरोवर डेम तक और नवलखी पोर्ट से लेकर अहमदाबाद के सीविल अस्पताल तक अलग अलग सरकारी एकमो में सिक्युरिटी प्रोवाइड करते है. १४ साल की सर्विस के बाद भी जब उन्हें न्यूनतम वेतन भी नहीं मिल रहा था तब उन्होंने गुजरात फेडरेशन ओफ ट्रेड युनियन्स के साथ जुडकर गांधीनगर में अनशन आंदोलन छेड दिया. उनकी मांग सिर्फ इतनी थी की उनके पगार में १४ साल की सर्विस के बाद कमसे कम ५०० रपैये की बढोतरी हो और हर हप्ते काम से एक दिन की छूट्टी मिले. इतनी सी मांग स्वीकारने से भी मोदीजीने इन्कार कर दिया. सिक्युरिटी गार्ड बैनर लिए पूछ रहे थे . हम पूरे गुजरात की सुरक्षा करते है लेकिन हमारी खुद की आर्थिक सुरक्षा का क्या ? अनशन के दौरान १७६ गार्ड को होस्पिटल में भर्ती करवाना पडा. बावजूद उसके मोदी ने उनकी एक न मानी और अपने तानाशाही व्यक्तित्त्व का परिचय देते हुए अहिंसक रुप से चल रहे अनशन को गैरकानूनी घोषित करते हुए अनशन पर बैठने की पुलिस परमिशन भी रद्द कर दी गई. जब मामला न्यायालय में गया तब सरकार ने हलफनामा करते हुए कहा की हमारी तिजोरी में इन सिक्युरिटी गार्डस के पगार में बढोत्तरी करने जितना पैसा नहीं है बिलकुल इसी तरह जब लोकरक्षक विद्यासहायक और फोरेस्ट गार्ड समेत १.४५ लाख कर्मचारियों के पगार का मसला गुजरात न्यायालय के सामने आया तब जस्टिस मुखोपाद्याय को मजबूरन कहना पडा की यदि गुजरात सरकार अपने ही कर्मचारियों को २५०० में काम पे रखकर उनका शोषण करेगी तो ये कर्मचारी घूस क्यों न खाए न्यायमूर्ति महोदय की टिप्पणी से लज्जित होने के बजाय गुजरात सरकार ने बेशरमीपूर्वक हलफनामा करते हुए कहा कि हमारी तिजोरी में उतना पैसा नहीं की ईतने कर्मचारियो की पगार में बढोतरी की जा शके यदि सरकारी कर्मचारियों के यह हालात है तो स्वाभाविक रुप से लाखो.करोडो फैक्टरी मजदूरो की स्थिति क्या होंगी वह समज शकते है.

भगतसिंह ने हमारे देश के श्रमजीवी वर्ग का ब्योरा देते हुए कहा था .

‘आज सुंदर महलों का निर्माण करनेवाले मजदूरो को स्वंय गंदे बाडो में रहकर अपनी जीवनलीला समाप्त करनी पडती है’

चलिए देखते है कि सुंदर महलों का निर्माण करनेवाले मजदूरों की वायब्रन्ट गुजरात में क्या स्थिति है. गुजरात में करीब करीब १४ लाख निर्माण मजदूर है, लेकिन सरकार के रेकोर्ड में केवल सात हजार मजदूरो का पंजीकरण है क्योंकि यदि उनका पंजीकरण हआ तो उन्हें वेल्फेर स्कीम्स के सारे लाभ देने पडेंगे, जो देने की मोदी सरकार की तैयारी नहीं. पिछले विधानसभा चुनावो के दौरान नरेन्द्र मोदी ने गरीबो के लिए ५० लाख आवास तैयार करवाने का वचन दिया है. स्वाभाविक है की ईन आवासो के निर्माण में कन्स्ट्र्‌क्शन वर्कर्स यानि निर्माण मजदूरो का ही खून.पसीना बहेंगा. अब सवाल यह खडा होता है कि ईन निर्माण मजदूरो के लिए आवास तैयार करवाने की एक योजना थी और उस योजना के तहत मोदी सरकार ने कितने आवास तैयार किए. सूचना के अधिकार के तहत मैंने जब ये सवाल गुजरात बिल्डिंग एन्ड अधर कन्स्ट्रक्शन वर्कर्स वेल्फेर बोर्ड को पूछा तब जवाल मिला की २००५ में यह बोर्ड कार्यान्वित हुआ तब से लेकर आज तक गुजरात में एक भी निर्माण मजदूर के लिए एक भी आवास तैयार किया गया नहीं. सात महीने पहले ही नरेन्द्र मोदी ने १५० करोड में गुजरात के मंत्री मंडल के लिए स्वणिम संकुल नाम से भव्य कार्यालय का निर्माण करवाया, लेकिन उसमें पसीना बहानेवाले एक भी मजदूर के लिए वे ढंग की छत बनवाने को तैयार नहीं. यहि है वाईब्रन्ट गुजरात की असलियत. निर्माण मजदूर की कनस्ट्रकशन वर्क कै दौरान मौत होती है तो उनके परिवार को २ लाख का मुआवजा देने का प्रावधान है. गुजरात में पिछले चार साल में ४०० निर्माण मजदूरो की मौत हुई, लेकिन उनमें से केवल सात लोगो को कम्पेनशेशन दिया गया है. आर्थिक तंगी की वजह से हजारो किसानो ने आत्महत्या की है लेकिन उनमें से एक भी परिवार को मोदी सरकार मुआवजा देने को तैयार नहीं क्योंकि मुआवजा देना मतलब इस बात का स्वीकार करना कि गुजरात में किसान आत्महत्याएं कर रहे है ओर यदि स्वीकार किया जाए तो वाईबन्ट गुजरात की जो छबी पूरे देश के सामने पेश की जा रही है वह धूमिल हो जाएंगी जिस श्रमजीवी वर्ग के लिए भगतसिंह मार्कसवादी सिद्धांतो पर आधारित समाज का पुननिर्माण करना चाहते थे उस श्रमजीवी वर्ग का शोषण करने में मोदी सरकार ने कोई कसर नहीं छोडी.

यानि चाहे वर्ग का सवाल हो या जाति का सांप्रदायिकता का सवाल हो या साम्राज्यवाद का नरेन्द्र मोदी की विचारधारा और भगतसिंह के आदर्शो के बीच जमीन.आसमान का अंतर है. भगतसिंह वो शख्सीयत थे जो मानवता को पूंजीवाद और साम्राज्यवाद के कलेशों से मुक्ति देने के लिए मर मिटे और जिन्हे याद करने से इन्सानियत की रुह में क्रान्तिकारी हरकत पैदा होती है, जब कि नरेन्द्र मोदी वो शख्सीयत है जो पूंजीवादी, कोमवादी, साम्राज्यवादी ताकतों के हितो के लिए जनता को गुमराह करनेवाली प्रतिक्रियावादी शक्तियों का प्रतीक बन चूके है एक एसा प्रतिक जिन्हे याद करने से इन्सानियत की रुह कांप उठती है.

भगतसिंह की जेल डायरी के पन्नो पे नरेन्द्र मोदी के नापाक हाथों का स्पर्श भी हमें गंवारा नहीं होना चाहिए.

मोदी के हाथो भगतसिंह की जेल  डायरी का विमोचन होना भगतसिंह को दुबारा फांसी देने के बराबर है.

(लेखक अहमदाबाद स्थित नागरिक संगठन जन संघर्ष मंच के सदस्य है )