यू.आई.डी. : जनहित नहीं, शासक वर्ग के डर का नतीजा

Published in बुर्जुआ जनवाद

(मज़दूर बिगुल –)

IRIS SCANNING AS part of the process to obtain biometric data at the Head Post Office in Madurai, Tamil Nadu,

IRIS SCANNING AS part of the process to obtain biometric data at the Head Post Office in Madurai, Tamil Nadu,

भारत सरकार की यूनियन कैबिनेट की मीटिंग में इस वर्ष पहली अक्तूबर को यूनीक आईडेण्टीफिकेशन अथॉरिटी आफ इण्डिया का गठन किया गया। इसके तहत भारत सरकार हर नागरिक के लिए एक अनन्य पहचान कार्ड (यूनीक आइडेंटिटी कार्ड) बनायेगी। यह कार्ड इलेक्ट्रॉनिक होंगे। इनके लिए नागरिकों की निजी जानकारियाँ भारत सरकार की उपरोक्त संस्था के पास इकट्ठा की जायेंगी। इस अभियान का नाम ‘आधार’ रखा गया है। भारत सरकार झूठे दावे कर रही है कि देश के नागरिकों के बारे में सारी जानकारियाँ एक जगह एकत्रित करने और उन्हें यू.आई.डी. जारी करने के अनेक फायदे हैं। लेकिन सरकार का यह अभियान नागरिकों के निजी जीवन के संवेदनशील पक्षों में दख़लअन्दाज़ी की ख़तरनाक साज़िश है।

भारत सरकार और यू.आई.डी.ए.आई. के अध्‍यक्ष नन्दन निलेकणी का दावा है कि इस अभियान से बहुत विकास होगा, क्योंकि लोगों को इससे अपनी पहचान का एक ऐसा पक्का साधन मिल जायेगा जिसके प्रयोग से वे बुनियादी सेवाएँ प्राप्त कर सकेंगे। यह दावा किया जा रहा है कि इस योजना से सरकार की जन-कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उठाने में लोगों को काफी आसानी हो जायेगी और जनता के लिए जारी किये जाने वाले धन में घपलेबाज़ी बन्द होगी। सरकार के ये दावे सरासर नाजायज़ व झूठे हैं। ”जन-कल्याणकारी योजनाओं” का फायदा न ले पाने और जारी किये जाने वाले फण्डों में घपलेबाज़ी की वजह यह नहीं है कि लोग अपनी पहचान सिध्द नहीं कर पाते। इसका सीधा कारण व्यवस्था पर कुछ शक्तिशाली व्यक्तियों का नियन्त्रण होना है जो सारे फायदे हड़प कर जाते हैं। उदाहरण के तौर पर ग़रीबी रेखा से नीचे रह रहे वे परिवार हैं जिनके पास पक्के राशन कार्ड तो हैं फिर भी वे अनाज का पूरा कोटा पाने में असमर्थ होते हैं क्योंकि राशन डिपो के इंचार्ज उनका शोषण करते हैं। वे ग़रीबों को इस बात के लिए मजबूर करते हैं कि वे अपने कोटे से कम राशन उठायें। दलित छात्रों को दिये जाने वाले वजीफे ज़रूरतमन्द छात्रों को न मिल पाने का कारण यह नहीं होता कि वे अपने दलित होने का सबूत नहीं दे पाते बल्कि स्कूलों का प्रशासन और अधयापक उनके परिजनों से जाली काग़ज़ात पर हस्ताक्षर ले लेता है। यू.आई.डी. कार्ड बनने से इन लोगों को क्या फायदा होगा? इस बात का इस अनूठी योजना के कर्ता-धर्ताओं के पास कोई जवाब नहीं है।

हैरानी की बात है कि यह योजना अच्छी शासन व्यवस्था के बड़े कदम के तौर पर प्रचारित की जा रही है। सरकार के अच्छी शासन व्यवस्था के दावों के विपरीत यू.आई.डी. योजना नागरिकों के निजी जीवन के संवेदनशील पहलुओं में ख़तरनाक दख़लअन्दाज़ी है। यह योजना नागरिकों की निजी जानकारी के खुला हो जाने का गम्भीर ख़तरा पैदा करेगी और उनके जीवन की असुरक्षा को बहुत अधिक बढ़ा देगी। यह नागरिक आज़ादी पर एक बड़ा हमला है। काग़ज़ों पर ही सही लेकिन भारतीय संविधान नागरिकों को थोड़ी निजी आज़ादी की बात तो कहता ही है। यू.आई.डी. अभियान संविधान में दर्ज निजी गुप्तता के अधिकार की स्पष्ट अवहेलना करता है। संविधान में अनेक कानून हैं जो नागरिकों की निजी जानकारी खुला करने पर पाबन्दी लगाते हैं। यू.आई.डी.ए.आई. को यह अधिकार प्राप्त है कि वह अदालत या राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनज़र कम से कम संयुक्त सचिव पद के अधिकारी के निर्देशों पर किसी नागरिक की व्यक्तिगत जानकारी खुला कर सकती है। लेकिन इससे पहले मौजूद भारतीय कानूनों के तहत तो ऐसा केन्द्र या प्रान्त के गृह सचिव के आदेशों पर ही किया जा सकता था। यू.आई.डी. योजना लागू होने से व्यवस्था में अधिक ताकत रखने वाले व्यक्तियों द्वारा दूसरों के जीवन-सम्बन्धी निजी जानकारी हासिल करने और उसका दुरुपयोग करने के गम्भीर ख़तरे उत्पन्न हो जायेंगे। हमारे देश की शासन व्यवस्था में इसका दुरुपयोग होना तय बात है जिसकी वजह से नागरिकों की ज़िन्दगी और उनकी सुरक्षा का ख़तरा भी बढ़ जायेगा। जनगणना के तहत जुटाई जाने वाली जानकारी भी यू.आई.डी.ए.आई. को मुहैया करवायी जायेगी। जबकि जनगणना कानून के मुताबिक तो किसी नागरिक से सम्बन्धित यह जानकारी जाँच-पड़ताल या सबूत के तौर पर इस्तेमाल की ही नहीं जा सकती है।

केन्द्रीकृत निजी जानकारियों का दुरुपयोग नहीं होगा इसकी गारण्टी कोई भी सरकार नहीं कर सकती है। इसमें शक की कोई गुंजाइश ही नहीं है कि राजनीतिक विरोधियों ख़ासतौर पर समाज को शोषणमुक्त बनाने के लिए जूझ रहे नागरिकों आदि के ख़िलाफ इनका जमकर इस्तेमाल किया जायेगा। यह गम्भीर मसला भी धयान देने लायक है कि नागरिकों के बारे में जुटायी जाने वाली यह सारी जानकारी कम्प्यूटरों में रखी जानी है और सरकार के पास इसके पुख्ता इन्तजाम भी नहीं हैं कि इण्टरनेट के ज़रिये चोरी करने वाले ‘हैकर’ उन जानकारियों को चुरा न सकें। हैकर न सिर्फ जानकारी चुरा सकते हैं बल्कि जानकारी में हेरफेर भी कर सकते हैं और पूरी दुनिया में कोई भी ऐसी कम्प्यूटर प्रणाली नहीं है जो ‘हैकिंग’ (इण्टरनेट के ज़रिये चोरी) करने के नित नये तरीके ईजाद करने वाले हैकरों के आक्रमण से पूरी तरह सुरक्षित हो। हाल ही में विकीलीक्स वेबसाइट द्वारा अत्यधिक सुरक्षित अमेरिकी कम्प्यूटरों पर रखे दुनियाभर के देशों के अमेरिकी दूतावासों के राजनयिकों के गुप्त संचार सार्वजनिक रूप से जारी किये जाने के बाद से कम्प्यूटरों पर रखी सूचनाओं की सुरक्षा एक बार फिर सन्देह के घेरे में आ गयी है। आज तक दुनिया का कोई ऐसा कम्प्यूटर नहीं है जो हैकिंग से पूरी तरह सुरक्षित होने की गारण्टी देता हो। साथ ही जानकारी को बिखराकर रखने के बजाय एक ही कम्प्यूटर पर ढेर सारी जानकारी इकट्ठा होने से उसके दुरुपयोग की सम्भावना और अधिक बढ़ जाती है।

उल्लेखनीय तथ्य यह भी है कि भारत सरकार की इस योजना का एक गुप्त दस्तावेज़, गुप्त दस्तावेज़ों को सार्वजनिक करने वाली वेबसाइट विकीलीक्स पर प्रकाशित भी हो चुका है। कमाल की बात यह है कि लीक हुआ यह गुप्त दस्तावेज़ स्वयं ही यह बात मानता है कि नागरिकों के बारे में जुटायी जाने वाली जानकारी के लीक हो सकने और उसमें गड़बड़ी हो सकने की सम्भावनाएँ हैं। इसके बाद इस मुद्दे पर और कुछ कहने की ज़रूरत ही नहीं रह जाती।

वैसे भी यू.आई.डी. के ज़रिये कम से कम 15 करोड़ लोग अपनी पहचान साबित नहीं कर पायेंगे। यू.आई.डी. में हाथों की उँगलियों के निशान भी शामिल किये जायेंगे। खेती-बाड़ी, निर्माण, और अन्य प्रकार के हाथों से किये जाने वाले कामों में लगे लोगों की उँगलियाँ घिस जाती हैं। उनकी उँगलियों के निशान धुँधले पड़ जाते हैं जिन्हें सेंसर उठा नहीं पायेंगे। सेंसर पर उँगली का कम या अधिक दबाव, उँगली रखे जाने की दिशा, ज़रूरत से अधिक ख़ुश्क या चिकनी चमड़ी आदि की वजह से भी निशानों का मिलान करने में आने वाली दिक्कतों का ज़िव्रफ तो यू.आई.डी.आई.ए. के दस्तावेज़ों में भी किया गया है। यू.आई.डी. के लिए ऑंखों की पुतली के स्कैन अन्धे लोगों, मोतियाबिन्द के रोगियों, ऑंखों में निशान वाले लोगों पर नहीं किया जा सकेगा। वैसे भी उँगलियों के निशान और ऑंखों की पुतली के इलेक्ट्रॉनिक स्कैनरों को आसानी से धोखा दिया जा सकता है। ऐसे कारणों से ही अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, चीन, कनाडा, जर्मनी जैसे देशों ने ऐसी परियोजनाओं की असफलता को देखते हुए इन्हें अव्यावहारिक, नाजायज़ और ख़तरनाक घोषित कर दिया है।

यू.आई.डी. अभियान ने भारत के तथाकथित जनतन्त्र की पोल भी खोल दी है। इस परियोजना के बारे में संसद में कोई बहस नहीं हुई। और संसद में बहस न किये जाने पर किसी विरोधी पार्टी ने कोई ऐतराज़ तक नहीं जताया। यू.आई.डी.ए.आई. के फैसलों और ख़र्चों में कोई पारदर्शिता नहीं है। इसके कामों की कोई जवाबदेही तय नहीं की गयी है। इस परियोजना पर होने वाले नुकसान के बारे में उठे सवालों का कोई जवाब नहीं दिया जा रहा है। भारत सरकार इस परियोजना पर, जिसका नागरिकों को कोई भी फायदा नहीं होने जा रहा है उल्टे जिससे गम्भीर नुकसान का ख़तरा है, बेहिसाब ख़र्च करने जा रही है। सरकार के ही अन्दाज़े के मुताबिक इस पर कम से कम 45 हज़ार करोड़ रुपये ख़र्च होंगे। मौजूदा वर्ष में 200 करोड़ रुपये जारी भी किये जा चुके हैं। लेकिन जनता को होने वाले नुकसान और धन की बर्बादी से भारत के भाग्य नियन्ताओं को क्या लेना-देना है? उनकी एकमात्र फिव्रफ़ यही है कि जनता के ही पैसे से जनता का और अधिक शोषण कैसे किया जाये

 

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