राजे ने अपनी रखवाली की
किला बनाकर रहा;
बड़ी-बड़ी फ़ौजें रखीं ।
चापलूस कितने सामन्त आए ।
मतलब की लकड़ी पकड़े हुए ।

कितने ब्राह्मण आए
पोथियों में जनता को बाँधे हुए ।
कवियों ने उसकी बहादुरी के गीत गाए,
लेखकों ने लेख लिखे,
ऐतिहासिकों ने इतिहास के पन्ने भरे,
नाट्य-कलाकारों ने कितने नाटक रचे
रंगमंच पर खेले ।

जनता पर जादू चला राजे के समाज का ।
लोक-नारियों के लिए रानियाँ आदर्श हुईं ।
धर्म का बढ़ावा रहा धोखे से भरा हुआ ।
लोहा बजा धर्म पर, सभ्यता के नाम पर ।
ख़ून की नदी बही ।

आँख-कान मूंदकर जनता ने डुबकियाँ लीं ।
आँख खुली– राजे ने अपनी रखवाली की ।
लोहा बजा धर्म पर, सभ्यता के नाम पर ।
ख़ून की नदी बही ।

आँख-कान मूंदकर जनता ने डुबकियाँ लीं ।
आँख खुली– राजे ने अपनी रखवाली की ।

 

सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”