अनिल दवे जी से हमें है उम्मीद, नर्मदा की रक्षा नदी और उनके लोगों की रक्षा है, एक सभ्यता, संस्कृति है संकट

 में : मेधा पाटकर 

नई दिल्ली , 29 अगस्त 2016 : आज दोपहर नर्मदा बचाओ आंदोलन ने 31 अगस्त को नर्मदा कण्ट्रोलअथॉरिटी के पर्यावरण सब ग्रूप की प्रस्तावित मीटिंग के ख़िलाफ़ अपना विरोध प्रदर्शन किया। आंदोलन का विरोध इस मीटिंग के ख़िलाफ़ था क्योंकि 6 साल बाद यह कमिटी मिल रही है और उसका मुख्य मुद्दा यह है की सरदार सरोवर बाँध के गेट बंद करने का निर्णय किसी भी तरह ले लिया जाए ताकि 138 मी पानी भर सकें। मालूम हो की नर्मदा कंट्रोल अथॉरिटी (NCA) का गत सप्रीम कोर्ट के आदेश पर हुआ था और समयबद्ध तरीक़े से सरदार सरोवर बाँध से जुड़े पुनर्वास और पर्यावरणीय मुद्दों पर पूरी नज़र रखी जाए और environment calearnce और R&R, narmada water dispute tribunal एवं सप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक़ हो सके।

जून 1987 के दिए environment clearance की शर्तों को आज तक पूरा नहीं किया गया, बेपनाह पर्यावरणीय क्षति हुई, घने जंगल नष्ट हुए हैं, प्रशासन की नाक के नीचे नर्मदा नदी के तट पर निजी और सरकारी ज़मीन पर रेत खनन माफ़िया ने क़ब्ज़ा कर गरकानूनी खनन की है, फिर भी NCA ने कोई ख़ैर नहीं ली। आंदोलन की अथक प्रयाशों से आज रेत खनन माफ़िया पर लगाम लगी है ।

इसके विरोध में  आज मध्य प्रदेश, महारष्ट्र, गुजरात से आये कई लोगों ने इंदिरा पर्यावरण भवन के सामनेधरना प्रदर्शन किया । कैलाश भाई ,बडवानी (मध्य प्रदेश) ने कहा की हम इतने सालों से नर्मदा के लिए लड़रहे हैं और सरकार हमेशा की तरह झूठा आश्वासन देकर मनमानी कर रही है ।  कमला देवी, छोटा बरदा(मध्य प्रदेश ) ने बताया की सरकार नर्मदा के पेड़ काटकर ये दावा कर रही है की हमने यहाँ जो पेड़ काटेउतने ही पेड़ औरंगाबाद में लगा दिए हैं , औरंगाबाद में पेड़ लगाने से नर्मदा का जनजीवन कैसे लाभान्वित होसकता है । पूरे घाटी में सरकार का गड़बड़ झाला है । घोटाले ही घोटाले है और सरकार के बनाए हुए समिति या फिरन्यायालय के द्वारा स्थापित समितियों ने भी यही साबित किया लेकिन मध्य प्रदेश और केंद्र सरकार दोनों कान बंद कर सो रही है । क्या यही क़ानून का शासन है ?

धरने में दिल्ली के कई संगठनों के साथी भी आए, जिसमें प्रमुख तौर पर दिल्ली समर्थक समूह, राष्ट्रीय घरेलू कामगार यून्यन, जन आंदोलनों का र्राष्ट्रीय समन्वय, झुग्गी झोपरा एकता मंच, फ़िल्मकार सागरी छाबरा, राजेंद्र रवि, पर्यावरणविद सौम्या दत्ता और अन्य शामिल हुए ।  दो घंटों की ज़दमज़द के बाद, नर्मदा बचाओ आंदोलन का शिष्ट मंडल, मेधा पाटकर जी के नेतृत्व में पर्यावरण मंत्री श्री अनिल माधव दवे जी से मिला।

आंदोलनकरियों ने मंत्री महोदय को सबसे पहले अपने रोष जताया की 31 अगस्त को प्रस्तावित मीटिंग में बिना कोई पर्यावरणीय अध्ययन किए, ज़मीनी हक़ीक़त की जाँच किए सरकार कैसे बाँध के गेट बंद करने का मुद्दा भी सोच सकती है ।

प्रतिनिधि मंडल ने एक एक कर मंत्री महोदय को बताया की नर्मदा विकास प्राधिकरण और NCA पूरी तरह से विफल रहा है 1987 के शर्तों और सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों को पूरा करने में। command area treatement एवं commanda area development दोनों पूरे नहीं हुए हैं और सरकारी आँकड़ों के हिसाब से लगभग 41% काम ही पूरा हुआ है, लेकिन NCA ने पूरी तरह से अपनी ज़िम्ममेदारी से हाथ धो लिया है, ऐसे में वह किस हैसियत से किसी भी मंज़ूरी को दे सकता है ।

मेधा पाटकर जी ने कहा यह एक घाटी और उसमें रहने वालों लाखों लोगों की संस्कृति के साथ सरकार जलसमाधि दे देगी, अगर आज के दिन बाँध के गेट बंद करने का निर्णय होता है । मंत्री महोदय नर्मदा के संरक्षण की बात करते है, लेकिन ‘नर्मदा समग्र’ में नर्मदा के बेटे बेटियाँ भी तो शामिल हों, उनकी आज कोई नहीं सुनने वाला। यह सौभाग्य है की अनिल माधव दवे जी मंत्री हैं, कमसे कम उन से तो हम न्याय की उम्मीद करें, लोगों की ख़ातिर नहीं तो नर्मदा मैया के ख़ातिर ही सही ।

गुजरात से आए जिकु भाई और दिनेश भाई ने कहा की गुजरात में हम 15 जुलाई से लगातार बैठे हैं, सरकारी उपेक्षाओं के बावजूद के लेकिन आज हम तरश रहे हैं नर्मदा की बसाहटों में बिना पानी के और बीमारी के बीच । क्या यही न्याय और सही पुनर्वास है ? गुजरात के चमकने का दावा हमारे मोदी जी करते हैं लेकिन वहीं ग़रीबों की कोई क्यों नहीं सुनता ? हम किसी से कोई भीख नहीं माँग रहे, क़ानून के हिसाब से हमारा हक़ माँग रहे हैं और अगर यह हक़ माँगना गुनाह है तो हम दोषी हैं, इस न्याय व्यावस्था के, और हमें यह दोष क़बूल है, लेकिन हमारी लड़ाई जारी रहेगी ।

पर्यावरण मंत्री ने सभी मुद्दों को ध्यान से सुना और कहा की सम्बंधित अधिकारियों और सचिव के साथ मिलकर सभी मुद्दों को हाल करने की कोशिश करेंगे। पर्यावरणीय सचिव के साथ उन्होंने बात कर 31 अगस्त की मीटिंग का भी जायज़ा लेने की बात की ।

आंदोलन ने कहा की है की सरकार को बाँध से सम्बंधित निर्णय लेना पड़ेगा, पर्यावरण की क्षति की जांच करनीपड़ेगी तथा रेत खनन, फर्जीवाड़ा, पुनर्वास आदि मुद्दों पर बात सुननी होगी नहीं तो नर्मदा किनारे राजघाट पर31 जुलाई से चल रहा सत्याग्रह अनिस्चित चालू रहेगा ।