कैसा विकास और कैसी आज़ादी
आज़ादी के 65 वर्षो के बाद भी
हमरे गाँव में बिजली न आई
दिवाली की जगमग है चारो ओर
पर हमरे गाँव में अँधियारा है चहुँ ओर
भाजपा गयी कांग्रेश आई बसपा गयी सपा आई
पर हमरे गाँव में बिजली न आई
केबिनेट बदला, मंत्री बदले, बदला पूरा मंत्रिमंडल
पर न बदला हमरे गाँव का मुखमंडल
नए शासनादेश आये, नयी नयी विकास योजनाये आई
पर हमरे गाँव में बिजली की कोई योजना न आई
सुना है उ प्र के कुछ जिलो में 24 घंटे बिजली आती है
पर हमरे गाँव में तो एक सेकेण्ड के लिए भी बिजली नहीं आती है
हमरे गाँव से 3 किमी की दूरी पर आई आई टी कानपूर है कहते है जहाँ कभी अन्धेरा नहीं होता
पर हमरे गाँव का अन्धेरा कभी समाप्त नहीं होता
ये कैसा न्याय और कैसी समानता है
जहाँ एक तरफ शहर रोशनी से नहाये हुए है
तो वही हमरा गाँव रोशनी की एक किरण के लिए तरस रहा है
शहरो की सडको गली मुहल्लों यहाँ तक मैदानों में बिजली बेकार हो रही है
पर हमरे गाँव की गलियां माँ बिजली का नमो निशान नहीं
1947 में देश को अंग्रेजो के चंगुल से आज़ादी मिली पूरा देश खुश हुआ
लड्डू बटे फुल्जरियाँ फूटी रंग गुलाला उड़ा
हम भी खुश और हमरा गाँव भी खुश
सत्ता बदली शासन बदला अपना देश अपना प्रधानमंत्री
नयी नयी योजनाये नयी नयी नीतिया
पर हमरे गाँव के लिए न कोई विकास नीति और न कोई योजना
सन 1971 में राजीव गाँधी ग्रामीण विधुतीकरण योजना ने खूब नाम कमाया
पर 30 वर्ष बाद भी हमरे गाँव का विधुतीकरण न हो पाया
फिर आई डा आंबेडकर ग्राम सम्पूर्ण विधुतीकरण योजनां की बारी
पर हमरे गाँव में बिजली फिर भी न आई
ग्लोबल इंडिया और इंडिया सयिनिंग ने पुरे देश को चमकाया
पर हमरे गाँव में बिजली का एक खम्बा भी न गड़ पाया
एक बार फिर से लोहिया ग्राम समग्र विकास योजना ने सपना दिखाया
पर हमरे गाँव का नंबर फिर भी न आया
2012 जाने वाला है पर पता नहीं हमरे गाँव का नंबर कब आने वाला है
कभी फुर्सत मिले तो एक बार हमरे गाँव का भी चक्कर लगाना
तो पता चलेगा दिए की रोशनी में कैसे सपने पलते है और दिए बुझने के साथ ही बुझ जाते है
किस तरह अँधेरे में जिन्दगिया पल रही है
किस तरह अँधेरा हमरे गाँव में अपना घर बनाकर बैठा है
न कोई रोशनी है न कोई उम्मीद और न ही कोई विकास
बस सिर्फ अँधेरा ही अँधेरा है ……………………………
बस सिर्फ अँधेरा ही अँधेरा है …………………………….

के एम् भाई 

 

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