rabia

By- Gandhian, Daniel Mazgaonkar

Rābiʻa al-ʻAdawiyya al-Qaysiyya (Arabic: رابعة العدوية القيسية‎) or simply Rabiʿah al-Basri (Arabic: رابعة البصري‎) was a female Muslim saint and Sufi mystic.

Not much is known about Rabia al Basri, except that she lived in Basra in Iraq, in the second half of the 8th century AD. She was born into poverty. But many spiritual stories are associated with her and what we can glean about her is reality merged with legend. These traditions come from Farid ud din Attar a later sufi saint and poet, who used earlier sources. Rabia herself though has not left any written works.

She was the one who first set forth the doctrine of Divine Love and who is widely considered to be the most important of the early Sufi poets.

Much of the poetry that is attributed to her is of unknown origin. After a life of hardship, she spontaneously achieved a state of self-realization. When asked by Sheikh Hasan al-Basri how she discovered the secret, she responded by stating:
“You know of the how, but I know of the how-less.”

I found a short story from her life in a monthly magazine, “Maitri” (मैत्री) being published from the Women’s Ashram at Paunar, established by Vinoba Bhave. S
एक बार मुस्लिम स्त्री संत राबिया पढ रही थीं कि एक फकीर वहाँ आया और उसने उनके प्रति दुर्वचन कहना शुरू किये. राबिया ने उस ओर ध्यान नहीं दिया और वे ग्रंथ पढती रहीं. काफी देर तक फकीर अपशब्द कहता रहा, लेकिन इसका राबिआ पर कोई असर न होता देखकर, उसे क्रोध आ गया. वह राबिआ के पास आ पहुंचा. जब उसने ग्रंथ पर नजर डाली, तो उसने एक वाक्य के कुछ शब्दों को काटा हुआ पाया. उसका क्रोध और भडक उठा. उसने चिल्लाकर राबिआ से पूछा, “ये शब्द किसने काटे हैं ?”  “मैने” – राबिआ ने शांत स्वर में जवाब दिया. ” क्या किसी मनुष्य को धर्मग्रंथ में लिखे अंश को काटने का अधिकार है ?” उसने आगे प्रश्न किया. ” हाँ, जैसे जैसे धर्मग्रंथ की नसीहतों के जरिये हमारा ज्ञान बढता जाता है, वैसे-वैसे हमारी बुद्धि परिपक्व होती जाती है. तब यदि हमें कोई अंश गलत प्रतीत हो, तो हमें उसमें आवश्यक सुधार करने में कोई हर्ज नहीं” राबिआ ने उत्तर दिया. 
 
“तुमने किस अंश को गलत माना है ?” उसने आगे पूछा. “इसमें लिखा है कि शैतान व्यक्ति का धाक्कार करना हो, तो उसके प्रति हमारे दिल में क्रोध होना चाहिए. और क्रोध तब आता है, जब हमारे दिल में उनके प्रति नफरत होती है. मैं अपने दिल में क्रोध, नफरत जैसे दुर्गुणों को फटकने नहीं देती, क्यों कि मेर दिल में खुदा का वास है. इस कारण मेरे दिल में जो प्रेम है, अनुराग है, वहाँ घृणा और धिक्कार क्यों करूं ?”
 
इन शब्दों से फकीर के दिल में हलचल मच गयी. राबिआ ने आगे कहा, “मेरे दिल में जो खुदा छिपा हुआ है, वह मुझे दूसरों पर प्रेम करने का आदेश देता है, क्रोध करने का नहीं. वह जानता है कि शैतान को क्रोध से नहीं बल्कि प्यार से बस में किया जा सकता है. इसीलिए मैं ने शैतान का धिक्कार करने संबंधी वाक्य काटकर उसके स्थानपर उससे प्यार करने संबंधी वाक्य लिख डाला है.”
 
फकीर को पछतावा हुआ. उसने उनसे माफी मांगी. और वहाँ से चुपचाप चला गया. 

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सर्वादय आंदोलन के 1974-77 के समय में जो कार्यकर्ता संघर्ष में लगे थे उन्हें विनोबाजी ने एक अमूल्य संदेश दिया था, जो सब को आज भी उतनाही जीवन में उतारने के योग्य हैः

                            ” सत्य, अहिंसा और संयम “