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Skirt  Se Unchi Meri Awaaz Hai

मेरी स्सक्रट से उँची मेरी आवाज़ है !

माँगे जो पीने को पानी कभी ,
भाग जाते हो दिल्ली, से लंडन तभी , 
सारी जनता को रो कर तब दिखाते हो , 
आज भर भर के पानी की तोप चलाई , 
बताओ अब पानी “कहाँ” से लाते हो? … 

मेरी स्सक्रट से उँची मेरी आवाज़ है , 
माना की सर पे तेरे ही ताज़ है , 
नारी हूँ , मिट्टी इसी की मैं भी , 
बता दूँगी दिल मेरे मे ” क्या आज है” … 

मेरी स्सक्रट से उँची मेरी आवाज़ है , 
क्या दिखता है “तुझको” , टॅंगो का चमडा, 
हैवान , तुझ मे “हवस” का राज है , 
क्या दिखता है , जब “काली” को तू देखता है ? .
क्या तब भी हवस से खुद को सेकता है ? 

मेरी स्सक्रट से उँची मेरी आवाज़ है , 
कानो को तेरे हिला दूँगी आज , 
वो गंदी नज़र को जला दूँगी आज , 
उस क्रांति मे तर्पण होगा तेरा , 

अब तेरे “तर्पण” मन हल्का होगा मेरा … 

चेत जाओ . ओ , नेता, ओ वेता सभी, 
मैं , नारी हूँ , यह जान लो , 
मेरी रग रग को पहचान लो , 
फिर यह जान लो …
मेरी स्सक्रट से उँची मेरी आवाज़ है .

 

By- Rahul Yogi Deveshwar