Bhadra Sinha
Hindustan Times, New Delhi
Supreme Court

Social activists standing in water drums in Bhopal during their protest to support the indefinite ‘Jal Satyagrah’ agitation of the oustees of Omkareshwar Dam at Narmada river.(PTI File Photo)

The Supreme Court brought curtains on a decade-old litigation started by the families affected by the Sardar Sarovar project on Narmada River as it directed payment of final compensation to the oustees, also paving way for the dam to operate at its full capacity.

A bench headed by Chief Justice JS Khehar ordered payment of Rs 60 lakh each to 681 families in Madhya Pradesh who did not receive compensation towards purchase of land in lieu of the property they lost under the acquisition proceedings for the project.

Two months time was given to the government to make the payment and a deadline of July 31 was fixed for the families to vacate the area. If they fail to do so, the authorities can resort to evict them, the court said.

“You cannot take everybody for ransom. You are not letting the project come up. When they offer you land, you don’t want it,” the bench told the counsel representing Narmada Bachao Aandolan (NBA).

Timeline of the events that marred the Sardar Sarovar project. (HT Graphics)

The association, fighting for the affected families, had moved the top court in 2014 stating the relief and rehabilitation work adopted by MP government was not in terms of the SC’s earlier order.

NBA wanted the court to stop the installation of gates upto full dam heights until the government rehabilitated all those whose lands would get submerged once the dam operates fully. SC also ordered a payment of Rs 15 lakh each to 1358 families, who had accepted the compensation earlier.

“They need to be further compensated so as to alleviate their hardship and enable them to purchase alternative land,” the bench said. However, the court clarified the amount already received by them shall be deducted from this money.

Advocate CD Singh, who appeared for the MP government, told HT that as per the order the government will deposit the money to Narmada Valley Development Authority, which will further give it to Grievance Redressal Authority for the distribution. Exercising its extraordinary powers vested to it under the constitution, the bench also put an end to all civil and criminal cases that arose after a Commission gave its report on the rehabilitation of the families.

“We are doing this to render complete justice to the parties,” the bench said.

Singh said there were 4998 project affected families, out of which 4,774 had opted for special rehabilitation package under which they were paid money to purchase land.

सरदार सरोवर विस्थापन व पुनर्वास पर सर्वोच्च अदालत का विशेष फैसला।
जमीन के साथ पुनर्वास के लिये संघर्षरत परिवारों को 5.58 लाख के बदले  60 लाख रूपये का विशेष पेकेज।
जमीन के बदले नगद मुआवजा लेकर फर्जी काण्ड में फसे लोगों को 15 लाख रूपये।
शिकायत निवारण प्राधिकरण पुनर्वास स्थलों पर सुविधाऐ निश्चित करेगा।

सरदार सरोवर से विस्थापित परिवारों के पुनर्वास संबंधी सभी याचिकाओं पर आज सर्वोच्च अदालत के मुख्य न्यायाधीश न्या. केहार, न्या. चन्द्रचूड व न्या. रमण्णा की खण्ड पीठ ने करीबन् 4 घन्टे सुनवाई करने के बाद एक विशेष फैसला घोषित किया।

अपने आदेश में न्यायालय ने कहा कि म.प्र. के विस्थापितों में से जमीन की पात्रता होकर भी जिन्हें जमीन नही मिली है, और जिन्होंने जमीन के बदले नगद राशि का 5.58 लाख पैकेज नही स्वीकारा या उसकी एक ही (किश्त) 2.79 लेकर जो जमीन नही खरीद पाये, उन्हे गुजरात शासन आने वाले दो महीनों के अन्दर 60 लाख रूपये का विशेष अनुदान प्रदान करे। यह अनुदान शिकायत निवारण प्राधिकरण के द्वारा दिया जाय। इस आदेश के अनुसार गुजरात शासन को म.प्र. के विस्थापितों को सैकडों करोड रुपये की पुनर्वास राशि आबंटित करनी होगी।

साथ ही जिन्होंने एस. आर. पी. की नगद राशि का पूर्ण पैकेज लिया, लेकिन जो फर्जी रजिस्ट्रियों के घोटाले के कारण जमीन नही ले पाये है, ऐसे परिवार को प्रत्येक 15 लाख रूपये का विशेष पैकेज दिया जायेगा। जिन्होंने 2 किश्तों में एस. आर. पी. विशेष अनुदान लिया हो उनसे वह रकम वसूली जायेगी। करीबन् 681 परिवारों को 60 लाख, 1589 परिवारों को 15 लाख का अनुदान दिये जाने का अन्दाज है, यह फैसले में कहा गया है। विस्थापितों के पुनर्वास स्थलों पर निर्माण कार्यो में तथा सुविधाओं में रही त्रुटीयों पर शिकायत निवारण प्राधिकरण सुनवाई करके आदेश देगा और वह आदेश नामंजूर हो तो विस्थापित म. प्र. उच्च न्यायालय मे न्याय की गुहार कर सकेगें।

उपरोक्त आदेश अनुसार नगद राशि का भुगतान सम्बंधित विस्थापितों को 2 महीनों के अन्दर करना होगा, जो गुजरात से पूरी रकम के रूप में म.प्र. शासन को दिया जाकर शिकायत निवारण प्राधिकरण द्वारा भुगतान किया जायेगा।

म.प्र. के जिन विस्थापितों को विशेष पैकेज दिया जायेगा, उन्हें 6 महीनों में यानि 31 जुलाई 2017 तक गांव छोड़कर बसने का आदेश भी दिया गया है। यह न हो तो शासन कार्यवाही कर सकती है।

महाराष्ट्र और गुजरात के विस्थापितों के संबंध में, आने वाले कुछ ही महीनों में नर्मदा न्यायाधिकरण का फैसला, राज्य की पुनर्वास नीति व अन्य कानूनी आधार अनुसार पुनर्वास पूरा करने का आदेश भी सर्वोच्च अदालत ने दिया है। महाराष्ट्र शासन के ही अनुसार करीबन् 472 परिवारों को जमीन देना बाकी है, तथा जमीन पसंदी एवं खरीदी की प्रक्रिया जारी है। सैकड़ों आदिवासियों के दावे शिकायत निवारण प्राधिकरण के सामने प्रलंबित है, पुनर्वास स्थलों पर कई सुविधाओं की आज भी कमी है, ऐसी ही स्थिति गुजरात राज्य में भी है। वहां के सैकडों विस्थापित 15 जुलाई से केवडीयां कालोनी में संधर्षरत है। इन सभी की समस्याओं का निराकरण राज्य शासनों को तत्काल करना होगा।

नर्मदा बचाओ आंदोलन का मानना है कि काश्त के लिये अनुपयोगी जमीन लेने से इंकार किये और आज तक नगद राशि का अनुदान नही स्वीकारने वाले आंदोलनकारियों को 5.58 लाख रूपये की एस.आर.पी. (पैकेज) के बदले रू 60 लाख मिलना उनकी जीत है। इससे उन्होंने जमीन खरीदने के साथ पुनर्वास पाना जरूरी है। जिन्होंने फर्जीवाडे के कारण जमीन नही पायी उन्होंने भी अब मिलने वाली रकम सही जमीन लेने में उपयोग में लानी चाहिए। भूमिहीन परिवारों के आजीविका जैसे जो मुद्दे बाकी है, उन पर आंदोलन आगे प्रक्रिया जारी रखेगा।

कुल करीबन 45000 परिवार सरदार सरोवर के डूब क्षेत्र में आज भी बसे है, तब पक्के मकान, शालाऐं, पंचायते, दवाखाने, खेत, खलिहान तक 6 महीनों में दुसरी जगह बसाकर नई जिंदगी शुरू होना आसान नही है। म.प्र. के 88 पुनर्वास स्थल आज की स्थिति में रहने लायक नहीं है, वहां ट्रिब्यूनल के फैसले के तथा पुनर्वास नीति के अनुसार सभी सुविधाओं का निर्माण तथा सार्वजनिक स्थलों का मूलगांव स्थलान्तरण जरुरी होगा, जब तक सम्पूर्ण पुनर्वास नही होता, तब तक किसी भी विस्थापित परिवार की अर्जित संपत्ति डूबाने का अधिकार शासन को नही है, इसलिये सम्पूर्ण व न्यायपूर्ण पुनर्वास के बाद ही डूब का आग्रह आज भी आंदोलन जारी रखेगा।

सरदार सरोवर संबंधी सर्वोच्च अदालत में दाखिल याचिका तथा उच्च न्यायालयांे में लगी याचिकाओं को खारिज करने की बात आदेश में कही गई है। जिने के अधिकार के किसी भी अन्य मुद्दों पर पिछले 31 सालों से संघर्षशील नर्मदा बचाओ आंदोलन के सभी साथी मिलकर नर्मदा न्यायाधिकरण के अनुसार आगे की दिशा तय करेगें। अन्य हक लेने के लिये शासन प्रशासन के समक्ष प्रथम दावा करेंगे फिर आगे बढ़ेंगे।

नर्मदा बचाओ आंदोलन व विस्थापितो की ओर से एडवोकेट संजय पारीख जी ने मुख्य पैरवी की। मेधा पाटकर ने भी आंदोलन की ओर से बात रखी। एडवोकेट क्लिपटन रोजारिया व एडवोकेट नीनी सुसान ने याचिका के कार्य में सहयोग दिया।