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Press Release                                                                                                                                                                                                     23 August 2015
चित्तरूपा पालित को गिरफ्तार कर जेल भेजा
सरकार ने झूठा शपथ पत्र देकर न्यायालय को गुमराह किया

20 अगस्त, 2015 को मध्यप्रदेश सरकार ने नर्मदा बचाओं आंदोलन की वरिष्ठ कार्यकर्त्ता सुश्री चित्तरूपा पालित को उस समय गिरफ्तार कर लिया गया जब वो अपर बेदा बांध प्रभावित क्षेत्र के डूब रहे गाव उदयपुर जा रही थी। उन्हें गिरफ्तार कर भीकनगांव न्यायालय में प्रस्तुत किया गया जहाँ से उन्हें जेल भेज दिया गया।जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय,मध्यप्रदेश सरकार के इस अमानवीय एवं आदिवासी विरोधी  कृत्य का कड़े शब्दों में निंदा करता है

उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश में नर्मदा नदी की सहायक बेदा नदी पर अपर बेदा बांध में गत 5 अगस्त से बिना पुनर्वास किये सैकड़ों आदिवासी परिवारों को डुबोया जा रहा है, पालदा, सोनुद, उदयपुर, खारवा आदि गांवों के तमाम घरों में पानी घुस गया। पिछले वर्षों में बांध का जल स्तर 310 मीटर तक रखा जाता रहा है। परन्तु यह स्तर लगातार बढाया जा रहा है और वर्तमान में यह 314 मीटर के ऊपर पहुँच चुका है। सरकार द्वारा निर्दयता से पुलिस व् बुलडोज़र भेजकर घर तोड़ेने जा रहे जे0 सी0 बी0 मशीनों के सामने लेटकर चित्तरूपा पालित तथा अन्य महिलाओं ने मशीनों को आगे बढ़ने से रोक दिया था।

अपर बेदा बांध के 300 किसानों ने सर्वाेच्च न्यायालय के आदेश के बाद शिकायत निवारण प्राधिकरण में जमीन के बदले जमीन के आवेदन लगाये थे, सुनवाई में सरकार ने समय मांग कर तारीख आगे बढ़वा दी। नये भू-अर्जन कानून की धारा 24(2) के  अनुसार अपर बेदा बांध प्रभावितों का भू-अर्जन निरस्त हो चुका है और सितम्बर 2014 में ही विस्थापितों ने इस सम्बन्ध में अपने दावे जिला कलेक्टर को दे दिए थे।

सुश्री पालित ने उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की थी जिस पर 14 अगस्त को न्यायालय ने विषय की गंभीरता को देखते हुये 5.30 पर याचिका पर सुनवाई की और बांध जलाशय में पानी आगे भरने पर रोक लगा दी थी।

परंतु बाद में राज्य सरकार द्वारा झूठा शपथ पत्र पेश करते हुए कहा गया कि डूब क्षेत्र में मात्र 4 परिवार रह रहे हैं, जबकि वास्तविकता यह है कि इन् गांवों में लगभग 200 घर हैं जो बिना पुनर्वास डूब जायेगें। इनमे से अधिकांश परिवार आदिवासी हैं। इस प्रकार राज्य सरकार ने न्यायालय को गुमराह कर पानी भरने की रोक हटवा ली।

गौरतलब है की आजादी के बाद भारत में बने बांधों में उजड़े करोड़ों लोगों में से 40 से 50 प्रतिशत आदिवासी है। यह आदिवासी पानी की डूब, पुलिस और बुलडोजरों के जोर से उजाड़े गए हैं ।

सरकार की क्रूरता का अंदाजा इस बात से पता चलता है कि इन बिना पुनर्वास डूब रहे आदिवासियों का साथ देने जब चित्तरूपा पालित ग्राम उदयपुर में जा रही थीं तो उन्हें गाव के पहले ही गिरफ्तार कर लिया और जेल भेज दिया गया इस प्रकार न सिर्फ उन्हें गरीब आदिवासियों के साथ खड़े होने से रोका गया वहीँ चूँकि वह उच्च न्यायालय के समक्ष याचिकाकर्ता थी उन्हें जेल भेजकर उनके द्वारा सर्वाेच्च न्यायालय में अपील करने के अधिकार का भी हनन किया गया है।

सुश्री पालित ने भीकनगांव में न्यायाधीश के समक्ष यह निवेदन भी किया था कि उनके सर्वाेच्च न्यायालय में अपील के अधिकार को कुचला जा रहा है, फिर भी उन्हें 30 अगस्त तक के लिए खरगोन जेल भेज दिया गया है।

जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, सरकार के इस अमानवीय एवं आदिवासी विरोधी  कृत्य का कड़े शब्दों में निंदा करता है और मांग करता हैं किः

  • सुश्री पालित को तत्काल रिहा किया जाये
  • वेदा बांध के जलाशय में पानी का स्तर उतारकर लोगों का पुनर्वास किया जाये।

मेधा पाटकर– नर्मदा बचाओ आन्दोलन एवं जन आन्दोलनों का राष्ट्रीय समन्वय; प्रफुल्ल सामंतरा– लोक शक्ति अभियान एवं लिंगराज आज़ाद- समाजवादी जन परिषद्, एनएपीएम, ओडिशा; डॉ. सुनीलम, आराधना भार्गव– किसान संघर्ष समिति एवं मीरा– नर्मदा बचाओ आन्दोलन, एनएपीएम, म. प्र.; सुनीति सु.र., सुहास कोल्हेकर, प्रसाद बगवे– एनएपीएम, महाराष्ट्र; गेब्रिएल डी., गीता रामकृष्णन– असंगठित क्षेत्र मजदूर संगठन, एनएपीएम, तमिलनाडु; सी. आर. नीलकंदन– एनएपीएम केरला; पी. चेन्नईया एवं रामकृष्णन राजू– एनएपीएम आंध्र प्रदेश; अरुंधती धुरु, ऋचा सिंह– संगतिन किसान मजदूर संगठन, एनएपीएम उ. प्र. ;सुधीर वोम्बटकरे, सिस्टर सीलिया-डोमेस्टिक वर्कर्स यूनियन एवं रुकमनी वी. पी., गारमेंट लेबर यूनियन, एनएपीएम कर्नाटक; विमल भाई– माटू जन संगठन & जबर सिंह, एनएपीएम, उत्तराखंड; आनंद मज़गाँवकर, कृष्णकांत– पर्यावरण सुरक्षा समिति, एनएपीएम गुजरात; कामायनी स्वामी, आशीष रंजन– जन जागरण शक्ति संगठन एवं महेंद्र यादव– कोसी नवनिर्माण मंच, एनएपीएम बिहार; फैसल खान-खुदाई खिदमतगार, एनएपीएम हरयाणा; कैलाश मीना, एनएपीएम राजस्थान; अमितव मित्रा एवं सुजातो भद्र, एनएपीएम प. बंगाल; भूपेंद्र सिंह रावत-जन संघर्ष वाहिनी, राजेंद्र रवि, मधुरेश कुमार, शबनम शेख, एनएपीएम दिल्ली