
यदि आप आत्मविश्वास के साथ कह सकते हैं कि आधार से आपकी जिंदगी आसान हुई है, और ऐसी सरकारी सुविधाएं प्राप्त हुई हैं, जिनसे आप पहले वंचित थे, तो आप किसी ‘लुप्तप्राय प्रजाति’ से कम नहीं, क्योंकि आज कल हर तरफ, आधार-त्रस्त लोग ही मिलेंगे। शायद आपको रोज फोन पर संदेश आ रहे होंगे–बैंक से और मोबाइल से आधार लिंक कीजिए। उससे पहले, आयकर भरते समय लोगों को काफी परेशानी हुई। चूंकि वयस्कों के ज्यादातर आधार बना चुके हैं, इसलिए आजकल बच्चे सरकार की नजरों में हैं। स्कूल में नामांकन, कभी पेंटिंग प्रतियोगिता, कभी खेल-कूद के कार्यक्रम–हर चीज के लिए बच्चों से भी आधार मांगा जा रहा है। न होने पर, उन्हें इन सबसे वंचित किया जा रहा है। पुणे में दस साल के बच्चे को आधार न देने की वजह से पीटा गया।
ग्रामीणों के लिए यह सब कुछ काफी लंबे समय से चल रहा था। लोग परेशान थे–कभी जन वितरण प्रणाली में अनाज के लिए, कभी विधवा और वृद्धावस्था पेंशन के लिए, कभी स्कॉलरशिप के लिए, कभी स्कूल में नाम जारी रखने के लिए। हर समय, हर तरफ अनिवार्य आधार की तलवार लटकी हुई है। जब पैन (पीएएन), बैंक, मोबाइल, मृत्यु प्रमाणपत्र, स्कूल में भर्ती होने इत्यादि के लिए आधार को अनिवार्य किया गया, तब लोगों के मन में सवाल उठे कि आखिर सरकार का मकसद क्या है? वास्तव में, तर्क कहीं भी नहीं। जन वितरण प्रणाली में, जहां हर महीने आधार द्वारा फिंगरप्रिंट सत्यापित करवाए जा रहे हैं, वहां डीलर सत्यापन के बाद, दो-चार किलो अनाज काटकर ही दे रहे हैं!
सभी का एक ही सवाल है–क्या बैंक और मोबाइल आधार से लिंक किया जाए? सब घबराए हुए हैं, कि कहीं कनेक्शन कट न जाए, बैंक खाता फ्रीज न हो जाए। मोबाइल लिंकिंग के केस में वास्तव में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश में केवल इतना ही लिखा था कि सरकार किसी-न-किसी तरीके से मोबाइल कनेक्शन को सत्यापित करे। लेकिन सरकार के आदेश में न्यायालय के आदेश को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया, जैसे कि न्यायालय ने आधार वेरिफिकेशन की मांग की है। आधार से संबंधित बीस से अधिक मामलों की सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई होनी है। उनमें से दो-तीन याचिकाओं में मोबाइल लिंकिंग को चुनौती दी गई है, कुछ में बैंक और अन्य सरकारी योजनाओं में आधार को अनिवार्य बनाने के फैसले को चुनौती दी गई है। और कुछ याचिकाओं में तो आधार योजना को पूर्ण रूप से गैरकानूनी करार देने की मांग है।
बावजूद इन कानूनी चुनौतियों के, सरकार की ओर से आधार लिंक करने का दबाव बढ़ता जा रहा है, दूसरी ओर आधार की अनेकानेक खामियां सामने आ रही हैं। पैन लिंकिंग के दौरान काफी लोगों की जानकारी में (नाम की वर्तनी या पता) गलतियां होने से परेशानी हुई। आजकल मोबाइल लिंकिंग को लेकर हजारों लोग परेशान हैं। एक सज्जन ने बताया कि किस तरह फिंगरप्रिंट फेल की समस्या आम है। नेशनल कंज्यूमर कंप्लेन फोरम की वेबसाइट पर आधार से संबंधित हजारों शिकायतें हैं : आधार ‘डी-एक्टिवेट’कर दिया गया, फिर से बायोमीट्रिक जानकारी देने की मांग, फिर से देने के बाद भी नंबर प्राप्त करने में दिक्कत, एक बार सफलतापूर्वक लिंक हो जाने के कुछ महीनों बाद, ‘अपडेट’ करने की मांग आना, नया कार्ड मिलने में परेशानी, शिकायत कहां दर्ज होगी, इत्यादि। और याद रखिए, ये तो वे लोग हैं, जिनकी इंटरनेट तक पहुंच है।
लोगों को यह बात भी समझ में आ रही है, शुरुआती वायदे के बिल्कुल विपरीत, कि आधार ने बिचौलियों को हटाया नहीं है, बल्कि अलग तरह के बिचौलिये पैदा किए हैं! शिकायतें केवल आधार लिंकिंग से जुड़ी हुई नहीं हैं, जिन्होंने लिंक कर लिया, उनके साथ धोखा भी हुआ है। कहीं पर बैंक धोखाधड़ी की खबर है, तो कहीं पर फर्ज़ी आधार बनाने के मानो कारखाने लगे हुए हैं। लोकसभा में खुद सरकार ने बताया कि 49,000 पंजीकरण एजेंसी को ‘ब्लैकलिस्ट’ किया गया है।
ग्रामीण यह सब वर्षों से चुपचाप भुगत रहे हैं। बूढ़े लोगो को, जिन्हें पहले पेंशन गांव में ही मिल जाती थी, अब ऐसी जगह चलकर जाना पड़ रहा है, जहां आधार की फिंगरप्रिंट मशीन काम करे। कभी-कभी आठ-नौ किलोमीटर चलने के बाद, खाली हाथ लौटना पड़ता है–‘टावर’ नहीं था या फिंगरप्रिंट काम नहीं किया। झारखंड के सिमडेगा की ग्यारह वर्षीय संतोषी भूख से मर गई। उसके परिवार का राशन कार्ड इसलिए काट दिया गया, क्योंकि आधार से लिंक नहीं कर पाए। फिर देवघर के रूपलाल मरांडी गुजर गए। उन्होंने आधार लिंक तो करवा लिया था, पर दो महीनों से फिंगरप्रिंट काम नहीं करने की वजह से उन्हें राशन नहीं मिला। पिछले कई महीनों से सरकार को इन सब दिक्कतों के बारे में चेताया भी गया है, लेकिन सरकार पता नहीं, इसे मानने से क्यों घबरा रही है! आज भी सरकारी तंत्र के कुछ लोग कह रहे हैं कि संतोषी मलेरिया से मरी। सुधार लाने के बजाय वे समस्या को नकारने में लगे हुए हैं।
सरकार को यह समझने की जरूरत है कि आधार की आग, जो पहले केवल चुप रहने वाले ग्रामीण-गरीबों के घरों तक सीमित थी, आज शहरी और सक्षम लोगों के घरों तक पहुंच चुकी है। यह वर्ग चुप रहने वाला नहीं है। सरकार की आज तक की रणनीति (इसे इक्के-दुक्के की समस्या कहकर टालना, या बिल्कुल ही नकार देना) का पर्दाफाश हो गया है। सरकार को न्यायालय के पिछले आदेशों का पालन करना चाहिए। इनमें आधार को केवल छह कल्याणकारी योजनाओं में स्वैच्छिक रूप से इस्तेमाल करने की इजाजत दी गई थी। बाकी प्रयोग (बैंक, मोबाइल, स्कूल, इत्यादि) में तो स्वैच्छिक रूप से भी आधार मांगने की अनुमति नहीं है। चूंकि फिंगरप्रिंट सत्यापन से राशन-पेंशन में कोई फायदा नहीं, बल्कि लोगों का नुकसान है, इसे तुरंत रोक देना चाहिए। सरकार और लोगों का हित इसी में है कि आधार से हो रहे नुकसान को मानते हुए इसकी अनिवार्यता अविलंब खत्म की जाए।
http://www.amarujala.com/columns/opinion/listen-to-court-on-aadhar
November 15, 2017 at 4:43 pm
The court rulings should be considered before implementing linkage to aadhar of vital public schemes