वर्तमान सरकार गाय को लेकर आवश्यकता से ज़्यादा चिंतित होने का दिखावा कर रही है, लेकिन वहीं हर साल डायरिया-कुपोषण से मरने वाले लाखों बच्चों को लेकर सरकार आपराधिक रूप से निष्क्रिय है.

प्रतीकात्मक फोटो (रॉयटर्स)
क्या आप भी गाय बचाओ अभियान में शामिल हैं? गाय बचाना बुरा नहीं है. गाय भारतीयों की पुरातन साथी है लेकिन मैं जानना चाहता हूं कि क्या आपकी दिलचस्पी इंसानों में भी है? क्या गोरक्षा, गोशाला और गाय के लिए एम्बुलेंस सेवा के साथ साथ हर दिन मरने वाले तकरीबन 3,700 बच्चों को भी बचाने में भी आपकी दिलचस्पी है? कोई योगी, कोई साधु संत, कोई नेता, कोई जनता इस पर हल्ला दंगा करता हमें तो नहीं दिखा. आपको दिखा हो तो उसे सामने लाइए. कोई तो इस देश को संबोधित करे कि हमारे देश में क़रीब 3,700 बच्चे रोज़ कुपोषण और हैजा, डायरिया जैसी बीमारियों से मर जाते हैं.
आप सोच रहे हैं कि हमने बच्चों के बारे में अपनी बात गाय से क्यों शुरू की? गाय के बिना भी तो इंसानों की बात की जा सकती है, लेकिन जब गाय के नाम पर इंसानों की ज़िंदगी का फ़ैसला हो रहा हो, जब गाय खाने, लाने, ले जाने आदि की आशंका मात्र से भीड़ इंसानों की जान ले रही हो, तब यह विचार करना ज़रूरी है कि दरअसल पाप क्या है? कौन-सा बड़ा पाप है? जिन सरकारों के रहते गाय को लेकर दंगे आयोजित हो रहे हैं, जिन सरकारों ने गाय पर ख़ूब कड़ा क़ानून बनाया है, उन्हीं सरकारों ने रोज़ाना लगभग 3,700 बच्चों की मौत को लेकर क्या योजना बनाई है?
बच्चों के लिए काम करने वाले एनजीओ सेव द चिल्ड्रन का कहना है कि भारत में पांच साल से नीचे की उम्र वाले 3,671 बच्चों की प्रतिदिन मौत हो जाती है. यह दुनिया भर में बच्चों के लिए काम करने वाला एनजीओ है. एनजीओ के आंकड़े कहते हैं कि 56 प्रतिशत मौतें जन्म के 28 दिन के भीतर हो जाती हैं. इनमें से 50 प्रतिशत की मौत कुपोषण के कारण होती है. दुनिया भर में जितने नवजात बच्चों की मौतें होती हैं, उनमें से 21 प्रतिशत अकेले भारत हैं.
एनजीओ का कहना है कि भारत में हर साल पांच साल से कम उम्र वाले 1.25 मिलियन यानी 12.5 लाख बच्चे ऐसी वजहों से मर जाते हैं जिनका इलाज संभव है. हर साल 5.7 लाख बच्चे जन्म से सात दिन के भीतर मर जाते हैं. 10.5 लाख बच्चे एक साल पूरा करने से पहले मर जाते हैं. यह आंकड़े इंटरनेट पर मौजूद हैं. फिर मैं इन्हें क्यों दे रहा हूं? मैं सिर्फ़ ये जानना चाहता हूं कि रोज़ मरने वाले इन बच्चों में किसकी दिलचस्पी है? क्या इन मौतों से किसी को कष्ट नहीं होता?
यह आंकड़ा भारत सरकार के आंकड़े से ज़्यादा अलग नहीं है. पिछले साल अप्रैल में स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने संसद में बताया था कि भारत में हर साल पांच साल की उम्र पूरी करने से पहले 1.26 मिलियन यानी 12.6 लाख बच्चों की मौत हो जाती है. चौंकाने वाला एक आंकड़ा यह है कि इनमें से 57 प्रतिशत 28 दिन की उम्र भी नहीं पूरी कर पाते. भारत सरकार भी इन मौतों के पीछे उन्हीं कारणों को स्वीकार करती है.
हाल ही में आए आंकड़ों के मुताबिक, भाजपा शासित मध्य प्रदेश में हर दिन 64 बच्चों की मौत हो जाती है और इस मामले में मध्य प्रदेश की हालत अफ्रीकी देशों से बदतर है. मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री अर्चना चिटनीस ने विधानसभा में बताया कि राज्य में पिछले एक साल में पांच साल की उम्र से कम आयु वाले 25,440 बच्चों की मौत डायरिया और हैजा जैसी बीमारियों से हुई.
पूरे देश में गोरक्षा के ज़ोरशोर से चल रहे अभियान के बीच इंसानी दुर्दशा की अनदेखी हैरान करने वाली है. जिस देश में लाखों बच्चे हर साल खाए बिना मर जाते हों, उस देश में सरकारों का इस पर कोई अभियान न चलाकर पहले गाय के लिए एम्बुलेंस चलाना बहुत भयावह है. उस पर भी गोरक्षा अभियान में लगे गुंडों द्वारा पीट-पीटकर निर्दोष लोगों की हत्या जैसे कृत्य आम हो रहे हैं.
संयुक्त राष्ट्र का आकलन है कि भारत में प्रतिवर्ष कुपोषण के कारण मरने वाले पांच साल से कम उम्र के बच्चों की संख्या दस लाख से भी ज़्यादा है. पूरे दक्षिण एशिया में कुपोषण के मामले में सबसे ख़राब हालत भारत में है.

कुपोषण का एक प्रकार उम्र के हिसाब से वजन न बढ़ना है, भारत में अभी 35.7 प्रतिशत बच्चे कम वजन के हैं. (प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)
भारत में विश्व की 17.3 प्रतिशत आबादी रहती है, जबकि विश्व की कुल कुपोषित आबादी का 24.5 प्रतिशत भारत में है. 118 देशों के ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत का स्थान 97वां हैं.
बच्चों के लिए काम करने वाली संस्था क्राई के मुताबिक, 2011 की जनगणना के मुताबिक देश में 18 साल की उम्र के बच्चों की संख्या करीब 45 करोड़ है. स्कूल जाने की उम्र वाला हर चार में से एक बच्चा स्कूल से बाहर है. क़रीब 10 करोड़ बच्चे स्कूल से बाहर हैं, जिन्हें स्कूलों में होना चाहिए. 100 में से सिर्फ़ 32 बच्चे अपनी स्कूली शिक्षा पूरी कर पाते हैं. केवल दो प्रतिशत स्कूल ऐसे हैं जो क्लास एक से 12 तक की पूरी शिक्षा दे पाने की स्थिति में हैं.
जनगणना 2011 के आंकड़ों के मुताबिक, देश में 5 से 14 साल की उम्र के एक करोड़ से ज़्यादा बच्चे बाल मजदूरी और शोषण का शिकार हैं. 5 से 18 साल की उम्र वाले करीब साढ़े तीन करोड़ बच्चे ऐसे हैं जो बाल मजदूरी में लगे हैं. देश के विभिन्न इलाकों में लगभग आधे बच्चे श्रम में लगे हैं.
May 25, 2017 at 9:54 pm
The number of deaths of children due to malnutrition and diarrhoea is pathetic. The government should protect children from diseases by giving proper medical aid