
प्रोफेसर सुनील वाघमारे 34 साल के नवजवान है ,जो महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के खोपोली कस्बे के के एम सी कॉलेज के कॉमर्स डिपार्टमेंट के हेड रहे है और इसी महाविद्यालय के वाईस प्रिंसीपल भी रहे है .
उत्साही ,ईमानदार और अपने काम के प्रति निष्ठावान . वे मूलतः नांदेड के रहने वाले है , वाणिज्य परास्नातक और बी एड करने के बाद वाघमारे ने वर्ष 2009 में बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर इस कॉलेज को ज्वाइन किया था .वर्ष 2012 तक तो सब कुछ ठीक चला , मगर जैसे ही वर्तमान प्राचार्य डॉ एन बी पवार ने प्रिंसिपल का दायित्व संभाला .प्रोफेसर वाघमारे के लिये मुश्किलों का दौर शुरू हो गया .
प्राचार्य पवार प्रोफेसर वाघमारे को अपमानित करने का कोई न कोई मौका ढूंढ लेते ,बिना बात कारण बताओ नोटिस देना तो प्रिंसिपल का शगल ही बन गया ,वाघमारे को औसतन हर दूसरे महीने मेमो पकड़ा दिया जाता ,उनके सहकर्मियों को उनके विरुद्ध करने की भी कोशिस डॉ पवार की तरफ से होती रहती .
इस अघोषित उत्पीडन का एक संभावित कारण प्रोफेसर वाघमारे का अम्बेडकरी मूवमेंट से जुड़े हुए होना तथा अपने स्वतंत्र व अलग विचार रखना था .संभवतः प्राचार्य डॉ पवार को यह भी ग्वारा नहीं था कि एक दलित प्रोफेसर उप प्राचार्य की हैसियत से उनके बराबर बैठे .इसका रास्ता यह निकाला गया कि वाघमारे को वायस प्रिंसिपल की ज़िम्मेदारी से मुक्त कर दिया गया तथा अपने वाणिज्य विभाग तक ही सीमित कर दिया गया .
प्रोफेसर सुनील वाघमारे महाराष्ट्र के दलित समुदाय मातंग से आते है .वे अपने कॉलेज में फुले ,अम्बेडकर और अन्ना भाऊ साठे के विचारों को प्रमुखता से रखते तथा बहुजन महापुरुषों की जयंतियों का आयोजन करते ,जिससे प्राचार्य खुश नहीं थे .देखा जाये तो वाघमारे और पवार के मध्य विचारधारा का मतभेद तो प्रारम्भ से ही रहा है . धीरे धीरे इस मतभेद ने उच्च शिक्षण संस्थाओं में व्याप्त जातिगत भेदभाव और उत्पीडन का स्वरुप धारण कर लिया और यह बढ़ता ही रहा .
प्रोफेसर वाघमारे ने अपने साथ हो रहे उत्पीडन की शिकायत अनुसूचित जाति आयोग से करनी चाही तो कॉलेज की प्रबंधन समिति ने उनको रोक लिया तथा उन्हें उनकी शिकायतों का निवारण करने हेतु आश्वस्त भी किया ,लेकिन शिकायत निवारण नहीं हुई ,उल्टे प्रिंसिपल ने इसे अपनी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया और मौके की तलाश में रहे ताकि दलित प्रोफेसर वाघमारे को सबक सिखाया जा सके .
मन में ग्रंथि पाले हुए ,खार खाए प्रिंसिपल पवार को यह मौका इस साल 15 मार्च को प्रोफेसर वाघमारे के एक व्हाट्सएप मैसेज फोरवर्ड से मिल गया .
दरअसल 15 मार्च 2017 की रात तक़रीबन पौने बारह बजे के एम सी कॉलेज के एक क्लोज्ड ग्रुप पर प्रोफेसर वाघमारे ने एक मैसेज फोरवर्ड किया ,जिसका सन्देश था कि “हम उन बातों को सिर्फ इसलिए क्यों मान ले कि वे किसी ने कही है .” साथ ही यह भी कि – ” तुम्हारे पिता की दो दो जयन्तियां क्यों मनाई जाती है ” कहा जाता है कि इसका संदर्भ शिवाजी महाराज की अलग अलग दो तिथियों पर जयंती समारोह मनाने को लेकर था .इस सन्देश पर ग्रुप में थोड़ी बहुत कहा सुनी हुई ,जो कि आम तौर पर हरेक ग्रुप में होती ही है .बाद में ग्रुप एडमिन प्रो अमोल नागरगोजे ने इस ग्रुप को ही डिलीट कर दिया .
बात आई गई हो गई क्योकि यह कॉलेज फेकल्टी का एक भीतरी समूह था जिसमे सिर्फ प्रोफेसर्स इत्यादि ही मेम्बर थे. लेकिन इसी दौरान प्राचार्य महोदय ने अपनी जातीय घृणा का इस्तेमाल कर लिया ,उन्होंने उस वक़्त इस सन्देश का स्क्रीन शॉट ले लिया जब ग्रुप में नागरगोजे तथा वाघमारे एवं प्रिंसिपल तीनों ही बचे थे .
प्राचार्य ने इस स्क्रीन शॉट को योजनाबद्ध तरीके से प्रचारित किया ,जन भावनाओं को भड़काने का कुत्सित कृत्य करते हुए प्रोफेसर वाघमारे के खिलाफ अपराधिक षड्यंत्र रचते हुये उनके विरुद्ध भीड़ को तैयार किया .इस सामान्य से व्हाट्सएप फोरवर्ड को शिवाजी का अपमान कहते हुए एक प्रिंसिपल ने अपनी ही कॉलेज के एक प्रोफेसर के खिलाफ जन उन्माद भड़काया तथा उन्मादी भीड़ को कॉलेज परिसर में आ कर प्रोफेसर वाघमारे पर हिंसक कार्यवाही करने का भी मौका दे दिया .इतना ही नहीं बल्कि भीड़ के कॉलेज में घुसने से पूर्व ही प्रिंसिपल बाहर चले गये और आश्चर्यजनक रूप से सारे सीसीटीवी कैमरे बंद कर दिए गये .
17 मार्च 2017 की दोपहर दर्जनों लोगों ने कॉलेज परिसर में प्रवेश किया तथा कॉलेज मेनेजमेंट के समक्ष प्रोफेसर वाघमारे की निर्मम पिटाई की ,उनको कुर्सी से उठा कर लोगों के कदमो के पास जमीन पर बैठने को मजबूर किया गया ,भद्दी गालियाँ दी गई ,मारते हुए जमीन पर पटक दिया और अधमरा करके जोशीले नारे चिल्लाने लगे . इस अप्रत्याशित हमले से वाघमारे बेहोश हो गये और उनके कानों से खून बहने लगा .बाद में पुलिस पंहुची जिसने लगभग घसीटते हुए वाघमारे को पुलिस जीप में डाला और थाने ले गये .थाने में ले जा कर पुलिस सुरक्षा देने के बजाय आनन फानन में वाघमारे पर ही प्रकरण दर्ज करते हुए उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और पुलिस अभिरक्षा में धकेल दिया गया .
दलित प्रोफेसर सुनिल वाघमारे के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 295 ( ए ) अधिरोपित की गई ,उन पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने शिवाजी का अपमान करते हुए लोगों की धार्मिक भावनाओं को भड़काया .ग्रुप एडमिन प्रोफेसर नागरगोजे की शिकायत पर केस दर्ज करवा कर वाघमारे को तुरंत गिरफ्तार कर हवालात में भेज दिया गया . बिना किसी प्रक्रिया को अपनाये कॉलेज प्रबन्धन समिति ने एक आपात बैठक बुला कर प्रोफेसर वाघमारे को उसी शाम तुरंत प्रभाव से निलम्बित करने का आदेश भी दे दिया . इससे भी जयादा शर्मनाक तथ्य यह है कि प्रोफसर वाघमारे को खोपोली छोड़ कर अपने परिवार सहित वापस नांदेड जाने को विवश किया गया .अब वे अपनी पत्नी ज्योत्स्ना और दो जुड़वा बेटियों के साथ लगभग गुमनाम जिंदगी जीने को मजबूर है .
कॉलेज प्रबंधन और प्राचार्य ने महाविद्यालय परिसर में घुस कर अपने ही एक प्रोफेसर पर किये गये हमले के विरुद्ध किसी प्रकार की कोई शिकायत अब तक दर्ज नहीं करवाई है ,जबकि संवाद मराठी नामक एक वेब चैनल पर हमले के फुटेज साफ देखे जा सकते है ,एक एक हमलावर साफ दिख रहा है ,मगर प्राचार्य मौन है ,वे हमलावरों के विरुद्ध कार्यवाही करने के बजाय वाघमारे के कैरियर और जीवन दोनों को नष्ट करने में अधिक उत्सुक नज़र आते है .
अगर व्हाट्सएप फोरवर्ड शिवाजी महाराज का अपमान था तो उस मैसेज का स्क्रीन शॉट ले कर पब्लिक में फैलाना क्या कानून सम्मत कहा जा सकता है ? कायदे से तो कार्यवाही ग्रुप एडमिन नागरगोजे और स्क्रीन शॉट लेकर उसे आम जन के बीच फ़ैलाने वाले प्राचार्य पवार के विरुद्ध भी होनी चाहिए ,मगर सिर्फ एक दलित प्रोफेसर को बलि का बकरा बनाया गया और उनके कैरियर ,सुरक्षा और गरिमा सब कुछ एक साज़िश के तहत खत्म कर दी गई है .
इस सुनियोजित षड्यंत्र के शिकार प्रोफेसर वाघमारे ने अपनी ओर से खोपोली पुलिस स्टेशन में 1 मई 2017 को प्राचार्य डॉ पवार के विरुद दलित अत्याचार अधिनियम सहित भादस की अन्य धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज करवाया है ,जिसके लिए भी उन्हें बहुत जोर लगाना पड़ा और अब कार्यवाही के नाम पर कुछ भी होता नज़र नहीं आ रहा है .
उच्च शिक्षा के इदारे में जातिगत भेदभाव और आपराधिक षड्यंत्र करते हुए एक दलित प्रोफेसर के जीवन और कैरियर को नष्ट करने के इतने भयंकर मामले को लेकर प्रतिरोध की जो आवाजें दलित बहुजन मूलनिवासी आन्दोलन की तरफ से उठनी चाहिए थी ,उनका नहीं उठना निहायत ही शर्मनाक बात है .पूरे देश के लोग महाराष्ट्र के फुले अम्बेडकरवादी संस्था ,संगठनो ,नेताओं से प्रेरणा लेते है और उन पर गर्व करते है ,मगर आज प्रोफेसर वाघमारे के साथ जो जुल्म हो रहा है ,उस पर महाराष्ट्र सहित देश भर के भीम मिशनरियों की चुप्पी अखरने वाली है .
आखिर वाघमारे के साथ हुए अन्याय को कैसे बर्दाश्त कर लिया गया ? छोटी छोटी बातों के लिए मोर्चे निकालने वाले लोग सड़कों पर क्यों नहीं आये ? सड़क तो छोड़िये प्रोफेसर वाघमारे से मिलने की भी जहमत नहीं उठाई गई . देश भर में कई नामचीन दलित संगठन सक्रिय है ,उनमें से एक आध को छोड़ कर बाकी को तो मालूम भी नहीं होगा कि एक दलित प्रोफसर की जिंदगी कैसे बर्बाद की जा रही है .
जुल्म का सिलसिला अभी भी रुका नहीं है .शारीरिक हिंसा और मानसिक प्रताड़ना के बाद अब प्रोफेसर वाघमारे की आर्थिक नाकाबंदी की जा रही है .नियमानुसार उन्हें निलम्बित रहने के दौरान आधी तनख्वाह मिलनी चाहिए ,मगर वह भी रोक ली गई है ,ताकि हर तरफ से टूट कर प्रोफेसर वाघमारे जैसा होनहार व्यक्ति एक दिन पंखे के लटक कर जान दे दें …और तब हम हाथों में मोमबत्तियां ले कर उदास चेहरों के साथ संघर्ष का आगाज करेंगे .कितनी विडम्बना की बात है कि एक इन्सान अपनी पूरी क्षमता के साथ अपने साथ हुए अन्याय के खिलाफ अकेला युद्धरत है ,तब साथ देने को हम तैयार नहीं है .शायद शर्मनाक हद तक हम सिर्फ सहानुभूति और शोक जताने में माहिर हो चुके है .
आज जरुरत है प्रोफेसर सुनिल वाघमारे के साथ खड़े होने की ,उनके साथ जो साज़िश की गई ,उसका पर्दाफाश करने की ,लम्बे समय से जातिगत प्रताड़ना के विरुद्ध उनके द्वारा लड़ी जा रही लडाई को पहचानने तथा केएमसी कॉलेज के प्रिंसिपल की कारगुजारियों को सबके सामने ला कर उसे कानूनन सजा दिलाने की .
यह तटस्थ रहने का वक्त नहीं है .यह महाराष्ट्र में जारी मराठा मूक मोर्चों से डरने का समय नहीं है ,यह देश पर हावी हो रही जातिवादी मनुवादी ताकतों के सामने घुटने टेकने का समय नहीं है ,यह समय जंग का है ,न्याय के लिए संघर्ष का समय है . सिर्फ भाषणवीर बन कर फर्जी अम्बेडकरवादी बनने के बजाय सडक पर उतर कर हर जुल्म ज्यादती का मुकाबला करने की आज सर्वाधिक जरुरत है .
बाद में मोमबतियां जलाने से बेहतर है कि हम जीते जी प्रोफेसर वाघमारे के साथ संघर्ष में शामिल हो जायें. मुझे पक्का भरोसा है वाघमारे ना डरेंगे और ना ही पीछे हटेंगे ,उनकी आँखों में न्याय के लिए लड़ने की चमक साफ देखी जा सकती है .बस इस वक़्त उन्हें हमारी थोड़ी सी मदद की जरुरत है .
– भंवर मेघवंशी
( लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्त्ता है ,जिनसे [email protected] पर संपर्क किया जा सकता है )
पुनश्च – नीचे संवाद मराठी youtyub चैनल का वह वीडियो है ,जिसमे भीड़ का हमला साफ साफ देखा जा सकता है
May 21, 2017 at 4:17 pm
The endless exploitation of the dalit professor and humiliation reflects the pent up apathy of upper castes and the rulers carelessness towards lower castes. His sufferings have continued long and the matter should be probed immediately