
विशिष्ट पहचान संख्या परियोजना के लागू होने के एक दिन पहले जिस बात को देश के 17 गणमान्य नागरिकों ने (28 सितंबर, 2010) प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में एक संवाददातासम्मलेन के दौरान उठाया था, उसे मीडिया ने पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया था। अबसुप्रीम कोर्ट की नौ जजों वाली संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से उसी बात पर मुहर लगा दी है।
24 अगस्त, 2017 को इस बाबत सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है। स्मरण रहे कि पूर्व न्यायाधीशअजित प्रकाश शाह, प्रोफेसर उमा चक्रवर्ती, उपेंद्र बख्शी आदि ने सितंबर, 2010 के संवाददातासम्मलेन में इस परियोजना से होने वाले दुष्परिणाम का ब्यौरा दिया था। उन्होंने स्पष्ट रूप से बताया थाकि इससे निजता के अधिकार का उल्लंघन होगा। तब इस योजना पर तत्काल रोक लगाने की मांगकी गई थी।
कोर्ट के इस फैसले से पहले वित्त की संसदीय स्थायी समिति ने भी इस परियोजना संबंधी विधेयक पर13 दिसंबर, 2011 को एक रिपोर्ट संसद के दोनों सदनों में पेश की थी। रिपोर्ट में कहा गया था किइस परियोजना से निजता की सुरक्षा को गंभीर खतरा है। संसदीय समिति की रिपोर्ट के बाद यहविधेयक 3 मार्च, 2016 तक राज्यसभा में लंबित रहा।
तीन मार्च को ही आधार संबंधी विधेयक वापस लिया गया। फिर इसे लोकसभा में धन विधेयक के रूपमें पास करा लिया गया। राज्यसभा के सुझावों को नजरअंदाज कर आधार कानून 2016 का जन्महुआ। गौर करने वाली बात यह है कि यह परियोजना 2007 के पहले से लागू थी। परियोजना औरकानून में निजता के अधिकार की अनदेखी यह कह कर की गई कि निजता मौलिक अधिकार नहीं है।
अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद एक अन्य पीठ यूआईडी/आधार की संवैधानिकता को लेकरफैसला करेगी। अदालत ने बारह अंकीय बायोमेट्रिक प्रणाली ‘आधार संख्या परियोजना‘ संबंधी मामलेमें फैसला देते हुए कहा है कि, ”निजता का अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत जीवन एवं स्वतंत्रता केअधिकार के अंतर्निहित अंग के रूप में संरक्षित है और भारत के संविधान के भाग तीन द्वारा प्रत्याभूतस्वतंत्रताओं का हिस्सा है।”
अदालत ने भारत सरकार के अटॉर्नी जनरल के इस तर्क को नकार दिया कि भारत का संविधान”निजता के अधिकार” का संरक्षण नहीं करता। इस तर्क का इस्तेमाल करके ही भारतीयों कोयूआईडी/आधार संख्या के तहत पंजीकृत होने पर विवश किया गया। यूआईडी/आधार संख्या जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, चीन, फ्रांस, ब्रिटेन और अमेरिका जैसे देशों में नामंजूर की जा चुकी है। यह फैसलाआधार एक्ट, 2016 पर गंभीर प्रभाव डालेगा, जिसके तहत सरकार को भारतीयों की यूआईडी/आधार संख्याओं को उनकी सहमति लिए बिना डी–एक्टिवेट करने का अधिकार है।
यह संभव है कि अदालत इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि यूआईडी/आधार संख्या की केंद्रीय पहचान डाटारिपोजिटरी (सीआईडीआर) और आधार एक्ट से नागरिकों के निजता के अधिकार का उल्लंघन होताहै। अन्यायी और अनुचित कानून को कानून की मान्यता नहीं दी जा सकती। संविधान पीठ के रुख सेलगता है कि जैसे ‘आधार कानून 2016′ एक अनुचित कानून और काला कानून है।
अदालत के फैसले से भारत का पक्ष अभी जारी ‘विश्व व्यापार संगठन‘ की वार्ता बैठक में मजबूतहोगा। अर्जेंटीना कि राजधानी में 10-13 दिसंबर, 2017 के दौरान होने वाली 11वीं मंत्री स्तरीय वार्तामें ई–कॉमर्स भी एजेंडा में शामिल है, जिसके तहत आकड़ों की सुरक्षा और निजता का अधिकार केमामले में भारत को अपना रुख स्पष्ट करना होगा।
अदालत के फैसले का इस संबंध में सकारात्मक प्रभाव होगा। मुक्त व्यापार और ई–कॉमर्स के नामपर विकसित देशों कि मांग है कि उन्हें तमाम नागरिकों के आकड़े और डाटा मुफ्त में और आसानी सेउपलब्ध होनी चाहिए।
यह दौर ऐसा है, जब सेवाओं का ‘उबेर‘ करण और ‘ओला‘ करण हो रहा है। ऐसे प्रयास हो रहे हैं, जिनसे वस्तुओं और सेवाओं को नए सिरे से परिभाषित किया जा सके। ‘वस्तु‘ को भी ‘सेवा‘ कीपरिभाषा के अंतर्गत लाया जाए। नागरिकों के डाटा तक पहुंच की यह मांग ”विश्व व्यापार संगठन” कीकार्यवाही के दौरान उठी है।
शंघाई में 1-2 अगस्त, 2017 के दौरान हुए ब्रिक्स देशों के व्यापार मंत्रियों की सातवीं बैठक में ब्रिक्सदेशों के बीच ई–कॉमर्स सहयोग पर पहल की गई। इस सम्मलेन में निर्मला सीतारमण के नेतृत्व मेंछह सदस्यीय प्रतिनिधि मंडल शामिल हुआ, जिसमें विश्व व्यापार संगठन में भारत के जन–संपर्कअधिकारी और राजदूत जेएस. दीपक भी शामिल थे।
निर्मला सीतारमण के मंत्रालय को चाहिए की भारत सरकार के रुख में देश हित में ऐसी एकरूपता होजिससे भारत, चीन आदि देशों की यूआईडी/आधार संख्या परियोजना बायोमेट्रिक और खुफियाटेक्नोलॉजी कंपनियां के चंगुल से देशवासी मुक्त हो सकें। यानी फ्रांस की साफ्रन ग्रुप, अमेरिका कीएक्सेंचर और ब्रिटेन की अनर्स्ट एंड यंग आदि से दूरी रखे। ये कंपनियां प्रति पंजीकरण 2.75 रुपएवसूल रही हैं और 130 करोड़ वर्तमान और भावी भारतीयों का पंजीकरण होना है।
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अदालत ने भारत सरकार के अटॉर्नी जनरल के इस तर्क को नकार दिया कि भारत का
संविधान ”निजता के अधिकार” का संरक्षण नहीं करता। इस तर्कका इस्तेमाल करके ही
भारतीयों को यूआईडी/आधार संख्या के तहत पंजीकृत होने परविवश किया गया।
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विदेशी प्रभाव के चलते केंद्र सरकार का रुख शुरू से ही कपटतापूर्ण रहा है। आज तक इसपरियोजना के कुल अनुमानित बजट को जाहिर नहीं किया गया है। जब तक इस परियोजना का कुलअनुमानित बजट नहीं बताया जाता है, तब तक इससे होने वाले तमाम दावों को संदेह की दृष्टि से हीदेखा जाएगा।
अदालत ने स्पष्ट कर दिया है कि ‘निजता का अधिकार‘ जीवन जीने और स्वतंत्रता के अधिकार मेंअंतर्निहित है। संविधान सभा में निजता को लेकर जो रुख अपनाया गया था, तब सभा के सदस्यडिजिटल दुनिया, ई–कॉमर्स और साइबर डाटा संरक्षण की हकीकत से रू–ब–रू नहीं थे। ध्यान रहेनिजता संविधान के आधारभूत ढांचे में गरिमापूर्ण जीवन के तहत भी शामिल है। अदालत ने‘असंवैधानिक स्थिति‘ में निषेध के सिद्धांत को लागू किया है, जिसका अर्थ हुआ कि सरकार की कोईमदद पाने के लिए लाभान्वित को प्राप्त कुछ संवैधानिक अधिकारों का परित्याग का निषेध है।
फैसले से यह प्रतीत होता है कि यूआईडी/आधार का क्रियान्वयन ऐसी कवायद है, जिसे हमारासंविधान वर्जित करार देता है। अदालत के पूर्व में पारित आदेशों को अनदेखा करते हुए और 9 जून, 2017 को न्यायमूर्ति एके सीकरी की अध्यक्षता वाली पीठ के फैसले से अनभिज्ञ यूआईडी/आधारप्रवर्तक वैधानिक रूप दोषपूर्ण सर्कुलरों, विज्ञापनों और एसएमएस के जरिए इस परियोजना केकार्यान्वयन में जुटे हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे ही संबद्ध मामले (यूआईडीएआई बनाम सीबीआई) में 24 मार्च, 2014 को एकआदेश पारित किया था– ‘किसी पात्र/योग्य व्यक्ति को आधार संख्या न होने की सूरत में किसी सेवा सेवंचित नहीं किया जा सकता। सभी प्राधिकरणों को निर्देश देते हैं कि अपने फॉर्म/सर्कुलर/लाइक्स कोसंशोधित कर लें, ताकि अदालत के अंतरिम आदेश के पालना के मद्देनजर भविष्य में आधार संख्याकी अनिवार्यता न रहने पाए।‘ असंवैधानिक स्थितियां सरकार को अपने नागरिकों को लाभों से वंचितरखने के उस स्थिति में निषिद्ध करती हैं, किसी लाभ तक पहुंच के लिए नागरिक को अपने किसी मूलअधिकार से वंचित होना पड़ जाता हो।
स्मरण रहे कि न्यायाधीश जे. चेलमेश्वर की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ के यूआईडी/आधारसंख्या मामले में 11 अगस्त, 2015 को पारित आदेश पर सात सौ से ज्यादा दिनों के पश्चात 18 जुलाई, 2017 को नौ जजों वाले संविधान पीठ का गठन हुआ। वादी और प्रतिवादी का पक्ष सुनने केउपरांत संविधान पीठ ने आदेश पारित किया।
अदालत ने सितंबर, 2013 से 27 जून, 2017 के बीच जारी अपने तमाम आदेशों में स्पष्ट किया हैकि यूआईडी/आधार संख्या स्वैच्छिक है, इसलिए किसी को किसी कार्य के लिए यूआईडी/आधारसंख्या प्रस्तुत करने को नहीं कहा जा सकता। आधार एक्ट, 2016 के तहत भी ऐसा किया जानाअनिवार्य नहीं है। 24 अगस्त और 7 जून के आदेश को साथ–साथ पढ़ा जाए तो यह स्पष्ट है किआधार कानून और परियोजना दोनों असंवैधानिक हैं।
निजता के मायने
निजता का अर्थ है किसी व्यक्ति का यह तय करने का उचित अधिकार कि वह किस हद तक अपनेआपको दूसरों के साथ बांटेगा। ‘निजता का अधिकार‘ यह तय करता है कि कोई स्वयं को सबसेअलग कर ले तथा किसी को उसकी निजी जिदंगी में ताकने–झांकने का अधिकार न हो।
‘निजता‘ दरअसल ऐसे ही मामलों में होती है, जिसकी रक्षा की जानी चाहिए। इस अधिकार की रक्षाइसलिए भी जरूरी है, क्योंकि राज्य निरंकुश न हो जाए। साइबर व बायोमेट्रिक युग में ‘निजता केअधिकार‘ राष्ट्रीय सुरक्षा और संप्रभुता से जुड़ा है। भविष्य के फौजियों सहित सांसदों, मंत्रियों और अन्यअधिकारियों के आकड़े विदेशों में अदूरदर्शी तरीके से भेजा जा रहा है।
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विदेशी प्रभाव के चलते केंद्र सरकार का रुख शुरू से ही कपटतापूर्ण रहा है।
आज तक इस परियोजना के कुल अनुमानित बजट को जाहिर नहीं किया गया है।
जब तक इस परियोजना का कुल अनुमानित बजट नहीं बताया जाता है, तब तक
इससे होने वाले तमाम दावों को संदेह की दृष्टि से ही देखा जाएगा।
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सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार प्रति आधार पंजीकरण 2.75 पैसे भारतवासीविशिष्ट पहचान प्राधिकरण के साथ अनुबंधित विदेशी कंपनियों को दे रहे हैं। ऐसा प्रतीत होता है किभारत सूचना और आंकड़ा खनन कंपनियों के चंगुल में फंसता जा रहा है। अनुबंध के अनुसार वेभारतवासियों की संवेदनशील जानकारी को सात सालों तक रख सकता है। साइबर युग में इसका अर्थहै– हमेश के लिए।
इस तरह से तो भारत के सभी भावी मंत्रियों, सांसदों, जजों, फौजियों, खुफिया अधिकारयों औरनागरिकों की संवेदनशील निजी आंकड़ों को विदेशी रणनीतिक स्मृति में शामिल करके भारत औरभारतीयों की संप्रभुता के साथ सौदा किया जा रहा है।
ऐसा न हो कि अदालत का आधार संबंधी फैसला आते–आते आज के देशवासी और भविष्य केनागरिक और उनके नुमाइंदे साइबर–बायोमेट्रिक युद्ध के जंगल के अनजाने जंजाल में उलझ कर रहजाएं। सियासी दल यह समझने में विफल हैं कि यह योजना देश के संघीय ढांचे के भी खिलाफ है।
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