उत्तराखण्ड और केरल की त्रासदी में बडे बांधों के अ-नियमन का हिस्सा।
नर्मदा के बांधों के लाभ दर्शन में फर्जीवाडा। पुनर्वास पर्याव्रण की शर्तों का उल्लंघन सरदार सरोवर के लोकार्पण के बाद 1 साल में पोलखोल।
     इंदोर,   दिनाक 30 सितबर 2018 , बांधों पर बहस कार्यक्रम में आज इन्दौर में पधारे विशेष जाणकार और अनुभवी अभ्यास को ने सवाल उठाया, लाभ कितना और किसका, हानि कितनी और किसकी? इस बहस का आयोजन उत्तराखंड के माटू जनसंगठन, बर्गी बांध विस्थापित संघ एवम् नर्मदा बचाओ आंदोलन ने मिलकर किया था।
      बहस में शरीक उत्तराखं डमें सक्रिय विमल भाई ने गंगा-भागीरथी पर बनाये बांधों को हिमालयीन क्षेत्र में 2013 में आयी अभूत आपदा के लिए दोषी ठहराया और केरल के पर्यावरणविद श्री जीओ जोस ने वहां की बाढ की विपदा भी मात्र बडे बारिश से नही ंतो बांधों के पानी रोकने, सांठा करने, छोडने की व्यवस्था का पूर्ण अभाव से निर्मित बतायी। उन्होने बहुत सारे सुझाव सामने रखते हुए मांग की कि केरल शासन मंजूर नहीं करती तो नागरी सामाजिक संगठनों ने मिलाकर यह करवाना जरूरी हैं। केरल के बाढ की निष्पक्ष उच्च स्तरीय जांच होना चाहिये।
       बांध और विकास की अवधारणा पर चर्चा में चिन्मय मिश्रजी, वरिष्ठ पत्रकार ने कहा, एक और धर्म या जाति के सवाल, अस्मिता और आरक्षण पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है लेकिन दूसरी ओर नदी, जंगल और उपजाउ खेती भी नष्ट हो रही है। इस हालात पर अगर चिंतित नहीं होंगे हम तो आनेवाली पीढीयों का भविष्य खत्म हो जाएगा।
        मेधा पाटकर ने बांधों के सामाजिक, पर्यावरणीय और आर्थिक असर को भी न आंकते, न नापते हुए, न जांचते हुए कैसे अ-जनतांत्रिक, अवैज्ञानिक तरीके से आगे धकेला जाता है यह विविध उदाहरणों से उजागर किया। नर्मदा पर बने सरदार सरोवर बांध का सिंचाई क्षेत्र, बांध पूरा होने पर भी एक तिहाई भी खरा नहीं उतरा है और बिजली घर पिछले साल से आज तक बंद पडा है यह कहकर बताया कि कच्छ के नाम पर बने बांध की 21000 कि.मी. लम्बाई की छोटी नहरों का निर्माण नहीं हुआ है, विशेषतः कच्छ में तो अधूरा छोड दिया है।
      देवराम कनेरा, कैलाश अवास्या, दिनेश भिलाला ने सरदार सरोवर, जोबट बांध के विस्थापितों की कीमत पर किस तरह उन्हें फसाया गया है और लाभों का हिसाब आम लोगांे के सामने रखना जरूरी है।
      राजकुमार सिंन्हा बर्गी बांध विस्थापित संघ की ओर से अपनी बात रखते हुए कहा की 28 साल बाद भी बर्गी बांध के घोषित लाभ पूरे नहीं हुए है। आज भी मात्रा 70000 हेक्टर पूरे प्रस्तावित 43700 हेक्टर सिंचित का विकास हो पाया है। मतलब मात्र 16 प्रतिशत कनेाल नेटर्वक बनाए गये है। 90 एमडब्यू बिजली बनाने की बात थी वह भी पूरी नहीं हुई। आज बर्गी पूरी तरह से सरदार सरोवर का फीडर बांध बनकर रह गया है। आज उसका पूरा पानी सिंचाई नहीं बल्कि पावर प्लाॅट और अन्य, औद्योगिक परियोजना को दी जा रही है और साथ ही शहरों को पानी।
       रेहमत भाई मंथन अध्ययन केन्द्र ने अपनी शोध की रिपोर्ट में खुलासा करते हुआ कहा कि मध्यप्रदेश में सिंचाई के नाम पर झूठ फरेब और भ्रष्टाचार का जाल विद्युत है। सरकारी आंकडे जहां 48-50 प्रतिशत सिंचित योजना की सफलता बनाते है वही जमीन पर हकीकत बिल्कुल उल्टी दिखाती है। शिवराजसिंह चैहान ने 2012 ने 20 लाख तालाब बनाने का दावा किया था, 20 तालाब प्रत्येक गांव में, हकीकत तो हम सबको मालूम है। छोटी परियोजनाओं में तो फर्जीवाडा और बडा है। सिंचाई और जल प्रबंधन के नाम पर सरकार किसानों पर खुशहाली कर, सिंचाई लेती, बाढ नियंत्रण कर आदि लगाकर का कर्ज का बोझ बढारची। लिंक और लिफ्ट परियोजनाएं, तकनीक के नाम पर किसानों और खेती पर निवेश का बोल ही बढेगा।
       सभा के अंत में जलप्रंबधन में बांधो की भूमिका और विकल्प सत्र में वरिष्ठ पत्रकार और चिंतक राकेश दीवान ने पारंपरिक श्रोता जनवादी तरीके पारंपरिक बात आदि से सिंचाई बिजली और अन्य जरूरते पूरी हो सकती है लेकिन दरअसल यह विकल्प नहीं बल्कि मूल है। विकल्प तो सकार ने विकास के नाम पर सरकार ने बनाएं जो आज विध्वंस के प्रतीक बन हमारे सामने खडे है। बांध चाहे वह हीराकुंड मारवडा या नर्मदा पे बने हुए सभी एक मात्र जीडीपी बढाते के यंत्र रहे ना की समाज और प्रकृति को आखे बढाने के। चोरी डकेती, झूठ, फोरक का विकल्प समाज नहीं दे सकता। विकास के नाम पर बनी यह परियोजनाएं समाज के साथ धोखा है।
       विनीत तिवारी, राष्ट्रीय सचिव, अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ ने इसी सत्र में इंदिरा सागर बांध को हताला देते हुए कहा कि 140000 हेक्टर्स जमीन को डूबो और दलदली करके 110000 हेक्टर्स में सिचाई के लिए तैयार करना यही दिखाता है कि सिंचाई तो बहाना दे बांध बनाने के लिए। क्योकि इनका मकसद है काॅरर्पोरटी लूट बढानान ा की देश की खाद्याय सुरक्षा निश्चित करना। विकल्प संभव तभी है जब समाज मिलकर काम करें। क्योकि विकल्प की कल्पना तो आसान है पर चुनौतियाॅ बहुत। प्रमावित लोगों की चुनौती और प्रश्न एक मुददा बना सकते है लेकिन विकल्पों को सही नाम ने तभी खरे होंगे अगर हमस ब साथ होंगे और उसमें लाभार्थी क्षेत्रों को नी आगे आना होगा।
       नर्मदा बचाओ आंदोलन के साथी कमला यादव, जगदीश पटेल, राहुल यादव अन्य साथी व सेचुरी के साथी राजकुमार दुबे, संजय चैहान, श्याम भदारे इत्यादि लोगों ने कार्यक्रम में भागीदारी ली गई थी।
       इंदौर के प्रमोद बागाडी जी ने यह कार्यक्रम करने का कार्य किया गया है, इसका अभार व्यक्ति करते है।