मिटा दी गई दुष्यंत कुमार की आखिरी निशानी, संग्रहालय भी गिन रहा अंतिम दिन
ETV MP/Chhattisgarh
Updated: September 1, 2017, 5:53 PM IST
कवि दुष्यंत कुमार की सालगिरह है आज. हिन्दुस्तान के आम आदमी की आवाज़ बने इस शख़्स की सालगिरह पर होना तो ये चाहिए था कि उन्हें मध्य प्रदेश जश्न के साथ याद करता. जहां उन्होंने उम्र का बड़ा हिस्सा गुज़ारा. लेकिन इस सालगिरह पर उन्हें ऐसी सौगात मिली कि उनकी याद की आख़िरी निशानी भी मिटा दी गई है.

भोपाल के जिस सरकारी मकान में दुष्यन्त ने अंतिम सांस ली उस सरकारी मकान को ढहा दिया गया और जिस दुष्यंत कुमार संग्रहालय के रहते इस अजीम शायर का नाम नई पीढ़ी तक ज़िन्दा रह सकता था. सरकार तीन महीने के भीतर उस संग्रहालय को भी तोड़ने की तैयारी में है.

– भोपाल में दुष्यंत ने गुज़ारा था लंबा वक़्त
– इसी घर में लिखी चर्चित क़िताब ‘साए में धूप’


– स्मार्ट सिटी की बलि चढ़ा दुष्यंत का घर
– अब दुष्यंत कुमार राज्य संग्रहालय की बारी
– संग्रहालय को ख़ाली करने का सरकारी नोटिस
– संग्रहालय में नामचीन साहित्यकारों की स्मृतियां शेष

69/8 वो सरकारी मकान की जिसकी पहचान दुष्यंत कुमार के घर के तौर पर होती रही. ये वो सरकारी मकान है, मध्यप्रदेश के राजभाषा विभाग में नौकरी करते हुए दुष्यंत ने जहां अपनी उम्र का बड़ा हिस्सा गुजारा था.

खंडहर में तब्दील हुआ दुष्यंत कुमार का मकान

दुष्यंत कुमार के नाम पर साहित्यकारों की स्मृतियों को सहेजने वाला संग्रहालय भी नोटिस पीरियड पर अपने अंतिम दिन गिन रहा है. इस संग्रहालय में दुष्यन्त कुमार की वो पूरी ग़जल मौजूद है कि नेताओं की पीढियां जिसके शेर सुना कर सत्ता की सीढियां चढती रही हैं.

दुष्यंत कुमार की कविताओं उनकी गजलों की कैफियत ये थी कि उसमें आम आदमी को आवाज मिलती थी. सरकारी नौकरी में रहते हुए भी. दुष्यंत की कलम जब चली व्यवस्था के खिलाफ चली, तो क्या ये मान लें कि दुष्यंत जी की चौरासवीं सालगिरह का ये तोहफा. उसी का सदका है.

(भोपाल से शिफाली पांडे)

गजल को हर जुबां तक पहुंचाने वाले दुष्‍यंत कुमार को सलाम

Poet Dushyant Kumar Poet Dushyant Kumar

 

‘कल नुमाइश में मिला वो चीथड़े पहने हुए, मैनें पूछा नाम तो बोला कि हिन्दुस्तान है’ वो एक ऐसे कवि थे, जिनके अंदाज पर आज भी फिदा हैं देश और दुनिया के तमाम लेखक और कवि. हम बात कर रहे हैं महान कवि दुष्यंत कुमार की जिनका जन्म 1 सितंबर 1933 को हुआ.

उन्हें भारत के प्रथम हिंदी गजल लेखक के रूप में जाना जाता है. उन्‍हें 20वीं सदी के सबसे महत्वपूर्ण हिन्दुस्तानी कवियों में से एक के रूप में मान्यता प्राप्त है. साये में दूब, कैफ भोपाली, गजानन माधव मुक्तिबोध, अज्ञेय की साहित्यिक खुमारी के दौर में जब आम लोगों की बोलचाल की भाषा में कविताएं लाकर दुष्यंत ने तेजी से लोगों के जेहन में जगह बना ली थी.

जानते हैं उनकी जिंदगी के बारे में

दुष्यंत कुमार का जन्म बिजनौर जनपद (उत्तर प्रदेश) के ग्राम राजपुर नवादा में 1 सितम्बर, 1933 को हुआ था. उनका पूरा नाम दुष्यंत कुमार त्यागी था.

वाणी, भोपाल में असिस्टेंट प्रोड्यूसर रहे.

अपनी कविता से सभी को मंत्रमुग्‍ध करने वाले दुष्यंत वास्तविक जीवन में बहुत, सहज और मनमौजी व्यक्ति थे.

उनकी कृतियां

‘एक कंठ विषपायी’, ‘सूर्य का स्वागत’, ‘आवाज़ों के घेरे’, ‘जलते हुए वन का बसंत’, ‘छोटे-छोटे सवाल’ और दूसरी गद्य और कविता की किताबों की रचना की.

गौरतलब है कि जिस समय दुष्यंत कुमार ने साहित्य की दुनिया में अपने कदम रखे उस समय भोपाल के दो प्रगतिशील शायरों, ताज भोपाली तथा कैफ भोपाली का गजलों की दुनिया पर राज था.

 

जब महानायक अमिताभ बच्चन को लिखा पत्र

दुष्यंत कुमार ने बॉलीवुड महानायक अमिताभ बच्चन को उनकी फिल्म ‘दीवार’ के बाद पत्र लिखकर उनके अभिनय की तारीफ की थी और कहा था कि वे उनके ‘फैन’ हो गए हैं.‘दीवार’ फिल्म में उन्होंने अमिताभ की तुलना तब के सुपर स्टार्स शशि कपूर और शत्रुघ्न सिन्हा से भी की थी.

हिन्दी के इस महान साहित्यकार की धरोहरें ‘दुष्यंत कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय’ में सहेजी गई हैं. इन्हें देखकर ऐसा लगता है कि साहित्य का एक युग यहां पर जीवित है. बता दें दुष्यंत कुमार का वर्ष 1975 में निधन हो गया था और उसी साल उन्होंने यह पत्र अमिताभ को लिखा था.

उनके काव्यसंग्रह

सूर्य का स्वागत

आवाजों के घेरे

जलते हुए वन का वसन्त

… एक सुपरहीरो जिसने बनाया मकड़ी के जाल को अपनी ताकत

उपन्यास

छोटे-छोटे सवाल

आंगन में एक वृक्ष

दुहरी जिंदगी

उनकी कविका कोश की एक खास कविता

सूने घर में किस तरह सहेजूं मन को

पहले तो लगा कि अब आईं तुम, आकर

अब हंसी की लहरें कांपी दीवारों पर

खिड़कियां खुलीं अब लिये किसी आनन को

पर कोई आया गया न कोई बोला

खुद मैंने ही घर का दरवाजा खोला

आदतवश आवाजें दीं सूनेपन को

फिर घर की खामोशी भर आई मन में

चूड़ियां खनकती नहीं कहीं आंगन में

उच्छ्वास छोड़कर ताका शून्य गगन को

पूरा घर अंधियारा, गुमसुम साए हैं

कमरे के कोने पास खिसक आए हैं

सूने घर में किस तरह सहेजूं मन को