
रवीश कुमार
फेसबुक और ट्विटर पर कल रात से बहुत से हत्यारे बजबजाने लगे हैं. हत्या के समर्थन में भी लोग आ सकते हैं, अब हमारे सहिष्णु समाज में दिख रहा है. हम सिर्फ जिसकी हत्या होती है उसे ही देखते हैं, उसकी हत्या नहीं देखते जो हत्या करने आता है. पहली हत्या हत्यारे की होती है, तभी वह किसी की जान लेने लायक बनता है. फेक़ न्यूज़ और प्रोपेगैंडा की राजनीति ने सोशल मीडिया के समाज में हत्यारों की फौज खड़ी कर दी है. ये नकली नहीं हैं. असली लोग हैं. भारत की मौजूदा राजनीति को सोशल मीडिया पर ऐसे बहुत से हत्यारों की जरूरत है. उन्हें तैयार किया जा रहा है. तैयार करने वाले को पता है कि सरकारों की संभावनाएं खोखली हो चुकी हैं. संसाधनों का खोखला होना बाकी है. तब तक राज करने के लिए सनकियों की फौज की जरूरत है.
बेंगलुरु की पत्रकार गौरी लंकेश को माओवादी ने मारा या हिन्दुत्ववादियों ने, इस बहस में उलझाकर हत्या के प्रति करुणा की हर संभावना को कुचला जा रहा है. ताकि हत्यारों में बदले गए लाखों लोग दूसरी तरफ न झुक सकें. सोशल मीडिया पर हत्या का जश्न हत्या के विरोधियों को चिढ़ाने के लिए नहीं है, बल्कि बड़ी मुश्किल से पिछले तीन साल में तैयार किए गए सामाजिक हत्यारों को हत्यारा बने रहने के लिए मनाया जा रहा है. कोई इसमें कश्मीरी पंडितों का सवाल ठेल रहा है तो कोई केरल में हो रही राजनीतिक हिंसा का सवाल घुसा रहा है. कोई इसमें कांग्रेस सरकार की जवाबदेही भी ठेल रहा है. इसके पहले कि कोई हत्यारा या हत्या की विचारधारा तक पहुंचे सके, रास्ते में तरह-तरह के स्पीड ब्रेकर बनाए जा रहे हैं. सोशल मीडिया की ताकत से किसी भी घटना पर, लूट पर, नाकामी पर, हत्या पर धूल-मिट्टी डालकर नई सतह बना देने का आत्मविश्वास बढ़ता जा रहा है.
जब कलबुर्गी के हत्यारों का आज तक पता नहीं चला तो साप्ताहिक पत्रिका गौरी लंकेश की संपादक की हत्या का भी कुछ पता नहीं चलेगा. हमारी पुलिस किसी को फर्ज़ी मुकदमे में फंसाने और हुकूमत का जूता उठाने में बेहतर है. आपने देखा कि भाजपा सांसद आरके सिंह को, कैसे कांग्रेस के जमाने में गृह सचिव के पद से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व सदस्यों को आतंकवादी बताते रहे, कैसे अब आरएसएस की मेहनत से बनी सरकार में मंत्री बने बैठे हैं. इस तरह के पुलिस तंत्र से इंसाफ की उम्मीद मत कीजिए. अपवाद के तौर पर अफसरों के नाम पर बाकी मक्कार अफसर मौज करते हैं. कर्नाटक की पुलिस भी वही है जो महाराष्ट्र की है जो बिहार की है और जो उत्तर प्रदेश या हरियाणा की है.
2016 में यूपी में मथुरा के एसपी मुकुल द्विवेदी की हत्या हो गई है. 2017 में सहारनपुर में एसएसपी के घर में एक सांसद भीड़ लिए घुस गया. क्या हुआ, कुछ हुआ? जब ये पुलिस अपने लिए नेताओं के गुलाम सिस्टम से नहीं लड़ पाती तो इससे उम्मीद ही क्यों करें कि ये गौरी लंकेश या कलबुर्गी या दाभोलकर के हत्यारों का पता लगा देगी. कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया कलबुर्गी के हत्यारों को नहीं पकड़ पाए. उनमें राजनीतिक साहस नहीं है कि वे ऐसे संगठनों को कुचल सकें जहां से कलबुर्गी के हत्यारे निकलते हैं. इसके बदले में वे भी हिन्दुत्व की राजनीति करने लगे. खुद को राम कहने लगे. जिन्हें लगता है कि कहीं हत्या का सुराग उनकी विचारधारा तक न पहुंच जाए. वे इस बात से खुश हैं कि हत्या कांग्रेस की सरकार में हुई है. जरूर कांग्रेस की सरकार में हुई है, बिल्कुल जवाबदेही वहां है, मगर वहां भी है जहां से हत्यारे निकलकर गौरी लंकेश के घर तक आए हैं.
हमारे देश में बहुत कुछ बदल गया है. कुछ तो नहीं हुआ है जिसे ढंकने के लिए झूठ और नफरत का इतना बड़ा जंजाल फैलाया जा रहा है. प्रोपेगैंडा ही एकमात्र एजेंडा है. यह कैसा समाज है जो न एक महिला के लिए खड़ा हो रहा है न एक पत्रकार के लिए. आज तक किसी बड़े नेता ने राम रहीम को चुनौती देने वाली दो लड़कियों का समर्थन नहीं किया है. क्या इसलिए राम रहीम की गोद में वे कभी जाकर बैठे थे. किसने उनके साहस को सलाम भेजा है? क्या आप बता सकते हैं. प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री, कोई केंद्रीय मंत्री, महिला विकास मंत्री, महिला आयोग की अध्यक्षा, किसने?
गोदी मीडिया हुजूर की गुलामी में सलाम बजा रहा है. हर जगह तथ्य कम हैं, झूठ ज्यादा है. टीवी पर रात दिन वही चलता है जो हमें लगातार हिन्दू बनाम मुस्लिम जैसी बहसों में उलझाए रखता है. न्यूज एंकर सरकारी गुंडे लगते हैं. वे लगातार मानव हत्या का माहौल रचे जा रहे हैं. आप नासमझ लोग, बिना इस खेल को समझे, मीडिया के नाम पर इसे पत्रकारिता मान देखे जा रहे हैं. अपने लिए नहीं तो अपने बच्चों के लिए तो सोचिए, कि ये कैसा हिन्दुस्तान है जहां किसी महिला पत्रकार की हत्या पर लोग जश्न मना रहे हैं. क्या हिन्दुस्तान की मांओं ने इसी हिन्दुस्तान के लिए अपने बेटों को गोद में लिए रात रात भर जागा है? क्या माओं को पता है कि उनके बेटे हत्यारों के झुंड में शामिल हो चुके हैं?
नहीं पता है तो आप उन्हें हम जैसों के फेसबुक और ट्विटर की टाइम लाइन पर ले आइए. यहां उनके ही बच्चे हैं जो हत्या के समर्थन में जहर उगल रहे हैं. आपके बच्चे हत्या का समर्थन कर रहे हैं. याद रखिएगा, पहली हत्या हत्यारे की होती है. ये वही बच्चे हैं जो लॉग आउट करके आपके पहलू में आते हैं मगर चुपके-चुपके अपने जहन में जहर भर रहे हैं. जागृति शुक्ला सिर्फ पत्रकार नहीं हैं जिसने गौरी लंकेश की हत्या को जायज ठहराया है. कोई मां-बाप नहीं चाहता कि उसके बच्चे हत्यारे बनें. हत्या का समर्थन करने चौक चौराहे पर जाएं. माओं को पता नहीं है. पिताओं को समझ नहीं है. जागृति शुक्ला का ट्वीट कि कौमी लंकेश की निर्मम हत्या हो ही गई. आपके कर्म एक न एक दिन आपका हिसाब मांगते हैं. मैं हिन्दुस्तान की मांओं से पूछना चाहता हूं कि क्या आपने अपने बच्चों को ऐसी बात कहने की इजाजत दी है? क्या आप भी हत्या की मानसिकता का समाज बनाने में शामिल हैं?
निखिल दाधीच जैसे लोग क्या अपनी मांओं को बताते होंगे, पिताओं को बताते होंगे, बहनों को बताते होंगे कि उन्होंने गौरी लंकेश को लिखा है कि “एक कुतिया कुत्ते की मौत क्या मरी, सारे पिल्ले एक सुर में बिलबिला रहे हैं.“ यह बंदा खुद को हिंदुत्व राष्ट्रवादी कहता है. क्या यही है हिदुत्व का राष्ट्रवाद? किसी की हत्या पर ऐसी भाषा का इस्तमाल किया जाए. क्या हम किसी के अंतिम संस्कार में यह कहते हुए जाते हैं? क्या आप अब भी हैरान नहीं होंगे कि इस व्यक्ति को हमारे आदरणीय प्रधानमंत्री ट्विटर पर फॉलो करते हैं? उसने ट्विटर पर लिखा है कि प्रधानमंत्री फॉलो करते हैं. क्या हमारे प्रधानमंत्री को राज करने के लिए ऐसी मानसिकता की जरूरत है?
जागृति और निखिल ही दो नहीं हैं. इसलिए कहता हूं कि हिन्दुस्तान की मांओं, आओ देखो, टाइमलाइन पर तुम्हारे बच्चे क्या लिख रहे हैं. वे पागल हो चुके हैं. वे इस लेख के समर्थन में भी मेरी मां के कुछ नाम लिख देंगे. कुछ समय पहले यही लोग मेरी मां को गालियां दिया करते थे. ये आपके बच्चे हैं. ये किसी की खूनी राजनीति का इस्तमाल हो रहे हैं. इसके लिए आपने इन्हें गोद में नहीं खिलाया है. आपके घरों में हत्यारा होगा तो एक दिन खून वहां भी गिरेगा.
अकेले गौरी लंकेश नहीं मारी गई है. मारा गया है हमारा समाज. उसकी संवेदना. उसकी करुणा की हत्या हुई है. आप बेशक निंदा न करें. कम से कम नाचना तो बंद कर दें. इतना तो आप मांएं अपने बच्चों से कह सकती हैं न. मैं यह लेख गौरी लंकेश के लिए नहीं लिख रहा. आपके लिए लिख रहा हूं. उन बच्चों के लिए जिसे आपने कई साल लगाए इंसान बनाने के लिए, जिन्हें राजनीति ने सिर्फ तीन साल में हैवान बना दिया है. मेरी टाइम लाइन पर खून के छींटे पड़े हैं. वे मेरे नहीं हैं. आपके बच्चों के हैं. जो खुशियां हैं वो आपके बच्चों की नहीं हैं, राज करने वालों की हैं. जिनका मंसूबा कामयाब हो रहा है.
(लेखक मशहूर टीवी पत्रकार हैं)
https://hindi.sabrangindia.in/article/smriti-irani-tweet-on-gauri-lankesh
September 8, 2017 at 7:27 am
thanks for writing Raveesh. I still dont know how to type in Hindi so writing in English. The government of India has bombarded my nationalism and I really dont know what can save my country from getting converted into a north korea
September 8, 2017 at 3:14 pm
वाह रवीश जी, काफी कुछ सही लिखा है, खेद है कि आज भी आप ने हर बार की तरह ही लिखा है। आपकी ईमानदार लेखनी और प्रखर पत्रकारिता पिछले 15 वर्षों में सो रही थी? जब जब हमारे देश को सुनियोजित ढंग से बर्बाद कर देने की साजिशें चल रही थीं?
कश्मीर से विस्थापन की रिपोर्ट सिर्फ किसी बरसी पे? उनके लिए आप के आंसू सूख क्यों गए थे?
देश को जब पूरी तल्लीनता से लूट जा रहा था तब आप की आत्मा ने आप को क्यों नही कचोटा था?
देश को जब जाट और धर्म की अफीम चटाई जा रही थी तुष्टिकरण के द्वारा तो आप काहे नही जगे थे? तब तो आप ” कौन जात हो” वाले जुमले दे रहे थे।
आप काहे सोये हुए थे जब विश्व, और मानवता के सबसे बड़े स्तंभ सनातन धर्म पर प्रहार पर प्रहार किए जा रहे थे? कुछ प्रहार तो आप ने भी किये थे।
याद रखें आप की हिंदुस्तान हिंदुस्तान तब तक है जब तक सनातन धर्मी यहां बहुसंख्यक हैं। तो कृपा करके हिंदुस्तान को हिंदुस्तान बना रहने दें।
माफ़ करें, जमाना बीत गया जब आपकी बिरादरी या जात वालों ने हमारा सौदा किया था, आपके जात वालों की दुकानें धीरे धीरे ही सही बंद होती जा रही हैं। शायद यही दुख आपको भी है। अब तो मामला जरा दूसरा मोड़ ले चुका है, तो बरदाश्त करें और इस सत्य को भी समझें कि आप से इतर भी दुनिया है जो बहुत खूबसूरत और खुशहाल है, थी और रहेगी।
माफ करें आप हमेशा की तरह गलत हैं ।
मुझे भी हत्या, हिंसा नही पसंद, जैसे आपको (वाकई) भी नही पसंद , परंतु लंकेश की हत्या पे दुख नही हुआ। वैसे उनके भाई ने तो JNU के जात वालों (नक्सलियों और कामी-वामी) पे आशंका जताई है।