अल्लाम अशरफ़
सच बात जो कहूँ और मेरा सिर न फोड़ा जाए,
आओ कुछ यूँ करें दिलों को जोड़ा जाए,
मोमिन का घर बिखरे तो महेश को बुलाओ,
नरेश का घर बनाने अब्दुल बुलाया जाए.
मांस न खाओ कह रहे हैं भक्त राम के,
इनको गले लगा के शीर-ख़ोरमा परोसा जाए.
मंच जो मिला तो लगे ज़हर उगलने,
शर्बत में इनके थोड़ा शहद और दिया जाए.
अशरफ़ को सोता देख जब जागे है एक सुशांत,
आव्या की किलकारियों से अल्लाम खील सा जाए.
आँखों में भाभी मेघा के जो बेलाग सा है प्यार,
क्या कोई तोहफ़ा है जो ये क़र्ज़ दे चुकाए.
दुख दर्द में जो साथ रहे कहिए उसे अपना,
रिश्ते फ़क़त हैं नाम के क्या क्या दे हम गिनाए…।
انسانی نسل
آؤ کچھ یوں کریں کہ دلوں کو جوڑا جائے
مومن کا گھر بکھرے تو مہیش کو بلاؤ
نریش کا گھر بنانے عبدل بلایا جائے
ماس نہ کھاؤ کہہ رہے ہیں بھکت رام کے
ان کو گلے لگا کر شیر قورمہ پروسا جائے
منچ جو ملا تو لگے زہر اگلنے
شربت میں ان کے تھوڑا شہد اور دیا جائے
اشرف کو سوتا دیکھ جب جاگے ایک سوشانت
آویا کی کلکاریوں سے اللام کھیل سا جائے
آنکھوں میں بھابھی میگھا کے جو بلاگ سا ہیں پیار
کیا کوئی تحفہ ہے جو یہ قرض چکائے
دھوکہ درد میں جو ساتھ رہے کہیے اسے اپنا
رشتے فقط ہیں نام کے کیا کیا دے ہم گنائے
July 26, 2020 at 12:02 pm
Bahot khub bhau
July 27, 2020 at 1:38 am
अति सुंदर विचार अशरफ जी