80 हजार के लिए शव को बनाया बंधक

 

80 हजार के लिए शव को बनाया बंधक
Raigarh, Sat Mar 29 2014, 08:33 AM

 यगढ़। सीएसआर मद से बनाए गए जिंदल के फोर्टिस हास्पिटल प्रबंधन ने 80 हजार रूपए जमा नहीं करने पर मरीज की लाश को ही बंधक बना लिया। पीडित परिवार के द्वारा अस्पताल प्रबंधन से काफी मिन्नत की गई कि मानवता के नाते लाश को उन्हें सौंप दिया जाए, ताकि वे उसका अंतिम संस्कार कर सके, लेकिन अस्पताल प्रबंधन बकाया बिल की वसूली के लिए अड़ा रहा। ऎसे में पीडित परिजन लाश को अस्पताल के कब्जे से छुड़वाने के लिए कलक्टर से गुहार लगाने पहुंचे थे। कलक्टर ने सीएचएमओ को जांच के लिए कहा है।

इस संबंध में कलेक्टरेट पहुंचे श्यामलाल चौहान ने बताया कि वह जांजगीर-चांपा के सक्ती विकास खंड अंतर्गत छपोरा गांव निवासी हैं। उसके बड़े भाई गोरे लाल की तबियत अचानक खराब हो गई। ऎसे में उनका स्थानीय अस्पताल में उपचार कराया गया। यहां तबियत में सुधार नहीं होने पर वह बीमार बड़े भाई को लेकर शहर के पतरापाली स्थित जिंदल के सीएसआर मद से बनाए गए अस्पताल पहुंचा। यहां उसे 21 मार्च को भर्ती कराया गया।

श्याम लाल चौहान का कहना था कि जिस दिन उसके भाई को भर्ती किया गया, उसी दिन अस्पताल प्रबंधन ने कैश काउंटर पर 80 हजार रूपए जमा करवाने की बात कही। अस्पताल प्रबंधन की मांग के अनुसार पैसे कम थे। ऎसे में उसने रिश्ते-नातेदारों से कर्ज लेकर पैसा जमा करवाया। इसके बाद उपचार शुरू हुआ। उपचार के दौरान 27 मार्च को उसकी मृत्यु हो गई। इसके बाद उससे फिर 80 हजार रूपए की मांग की गई। इसे देने में जब श्याम लाल ने असमर्थता जताई तो उसके बड़े भाई की लाश को देने से इंकार कर दिया गया।

रूपए नहीं तो ईलाज नहीं
श्याम लाल चौहान ने अस्पताल प्रबंधन पर यह भी आरोप लगाया है कि भर्ती करने के दिन 80 हजार रूपए जमा करवाया गया था। इसके बाद उपचार के बीच में फिर से 80 हजार जमा करवाने की बात कही गई। पैसा जमा नहीं करने पर उपचार नहीं किए जाने की बात कही गई। उसका आरोप है कि दूसरे किश्त के 80 हजार रूपए जमा नहीं करवाने पर अस्पताल प्रबंधन के द्वारा उपचार बंद कर दिया गया। इसकी वजह से उसके भाई की मृत्यु हो गई।

पहले भी ऎसा बर्ताव
सीएसआर मद से बनवाए इस अस्पताल में इससे पहले भी रूपए नहीं देने पर लाश को बंधक बना लिया गया था। इसके बाद तत्कालीन कलक्टर अमित कटारिया को इस मामले में हस्तक्षेप करना पड़ा था। इसी तरह एक माह पहले भी अस्पताल प्रबंधन के द्वारा संजीवनी सहायता कोष से एक पीडित का उपचार करने से इंकार कर दिया गया था।

 

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