BY -अल्लाम अशरफ़

महक उट्ठा मेरा वतन इस ख़बर पे,

जी॰डी॰पी॰ चल पड़ी है माइनस के सफ़र पे.


धर्म की राह हम सब चल पड़े हैं,

विकास को बेलगाम छोड़ा गिरती डगर पे.


सुना है नींव मंदिर की पड़ चुकी है,

एक जयीफ़ मस्जिद की क़बर पे.

नफ़रतों के बीज जो बोये थे तुमने,

फल लगने लगे हैं उस कँटीले शजर पे.


जो वादे अच्छे दिनों के कर रहे थे,

अब वो चोट करते हैं हमारी कमर पे.


हमारी बेरोज़गारी का कोई आलम न पूछे

,रोज़गार ढूँढता हूँ बैठ कर अपने ही घर पे.

है ये फ़रमान के कोई बाहर न निकले,

न मिलिए, न जुलिए,

न कहिए क़िस्से मुख़्तसर से.


नए निज़ाम में न पूछा जाए कोई भी सवाल,

एक तानाशाह निकला जम्हूरियत के पैरहन से.

चुनाव वक़्त पे होते रहें बस,

कैम्पेन की बू आती रहे सारी ख़बर से.


सच लिखता हूँ तो वो तिलमिला उठते हैं

अशरफ़,पुलिस देती है दस्तक हमारे दर पे.-