किसने कहा, ‘जशोदाबेन की प्रार्थनाओं से पीएम बने मोदी’

ये कुछ दिनों पहले जोशादाबेन की मुंबई यात्रा के दौरान उनके दोस्त बने हैं। वे कहते हैं कि वे उनमें मदर टेरेसा की झलक देखते हैं और चाहते हैं कि वे मुंबई में उनके साथ रहें। जशोदाबेन 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान सुर्खियों में उस वक्त आई थीं जब नरेंद्र मोदी ने अपने हलफ़नामे में माना था कि वे उनकी पत्नी हैं।
उनकी शादी 1968 में हुई थी और तब जशोदाबेन 17 साल की थीं। वे दोनों कुछ रोज ही साथ रहे और मोदी ने जीवन के नए पड़ावों की तलाश में घर छोड़ दिया। टीचर की नौकरी से रिटायर हो चुकीं जशोदाबेन बीते साल नवंबर में अपने पारिवारिक दोस्त के यहां मुंबई गई हुई थीं, जहां उनकी मुलाक़ात ब्रदर एस पीटर पॉल राज से हुई थी।
पीटर पॉल मुंबई में बेघर लोगों और अनाथ बच्चों के लिए काम करने वाली एक ग़ैर सरकारी संस्था गुड समैरिटन मिशन के प्रमुख हैं। वे बताते हैं, “उनसे मिलने के बाद मैंने उनमें मदर टेरेसा की झलक देखी। मैंने मदर के साथ दस सालों तक काम किया है। जशोदाबेन में भी वैसी ही सकारात्मकता और वैसा ही आभामंडल है। वे उन्हीं की तरह चलती हैं और वैसी ही सहृदयता के साथ बातें करती हैं। उनकी प्रार्थनाओं ने उनके पति को प्रधानमंत्री बना दिया।”
पीटर और उनकी टीम ने अपने मिशन की 11वीं सालगिरह समारोह के मौके पर जशोदाबेन को मुंबई आने का न्यौता भी दिया है।
मानवीय मक़सद

उन्होंने बताया, “मैं मोदी जी की आभारी हूं कि पत्नी के तौर पर मुझे स्वीकार करने के बाद ही लोगों ने मुझे जानना शुरू किया और मुझे सम्मान दिया। नहीं तो मुझे जानता ही कौन था? अब मैं अपनी बाक़ी ज़िंदगी ईश्वर की प्रार्थना में गुजारना चाहती हूं और मुमकिन है कि मैं किसी मानवीय मक़सद के लिए भी काम करूं।”
पीटर और उनके साथियों ने जशोदाबेन से अपने मिशन से जुड़ने की अपील भी की है। संगीता गौड़ा कभी बेघर हुआ करती थीं और अब पीटर की टीम की सदस्य हैं।

संगीता, पीटर और अन्य दो लोगों के साथ मुंबई से जशोदाबेन से मिलने आई थीं और उनके साथ दो दिनों तक रहीं।
पीटर के साथी मानते हैं कि जशोदाबेन को अपनी टीम से जोड़ना एक मुश्किल काम है, लेकिन उन्हें भरोसा है कि एक बार वे सहमत हो जाएं तो चीजें दुरुस्त हो जाएंगी।
‘आज़ादी का एहसास’

उन्होंने आगे बताया कि जशोदाबेन जो जीवन जी रही हैं, वे उससे मुक्ति चाहती हैं, “वे एक कमरे के घर में रहती हैं और वे जहां भी जाती हैं, उनके पीछे पांच पुलिस वाले चलते हैं। हमारा मिशन उन्हें आज़ादी का एहसास दिलाना है।”
पीटर और उनकी टीम जब वहां से जा रहे थे तो जशोदाबेन ने उन्हें स्नेह के प्रतीक के तौर पर सौ रुपये भी दिए। हालांकि जशोदाबेन फिलहाल गुजरात की सरकार के साथ अपने सुरक्षा घेरे और अधिकारों के बारे में एक अलग ही लड़ाई लड़ रही हैं।
February 7, 2015 at 5:16 pm
shameless christians using relatives for political gains.