किसने कहा, ‘जशोदाबेन की प्रार्थनाओं से पीएम बने मोदी’

खामोशी से जिंदगी गुज़ार रहीं जशोदा
Good Samaritan Mission was established in the year 1994. Bro. S Peter Paul Raj was with Mother Teresa’s Missionaries of Charity for 10 years. An inspiration during a religious retreat led Bro. Peter Paul Raj to believe that it was his calling, to work for the street children in Mumbai. Subsequently with Mother Teresa’s blessings, he set out in MAY 26th 1994 to fulfill his mission with just Rs.5000 (not unlike Mother Teresa herself who had setout with just Rs.5 over 50 years earlier).
उत्तरी गुजरात के ब्रह्मवाडी गांव में एक कमरे के मकान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पत्नी जशोदाबेन ख़ामोशी के साथ अपनी ज़िंदगी गुज़ार रही हैं। घर के बाहर पांच कमांडो उनकी सुरक्षा में तैनात हैं। बीते हफ्ते उनके घर कुछ अलग तरह के मेहमान आए हुए थे जिनके बारे में जानकर कई लोग चौंक सकते हैं।

ये कुछ दिनों पहले जोशादाबेन की मुंबई यात्रा के दौरान उनके दोस्त बने हैं। वे कहते हैं कि वे उनमें मदर टेरेसा की झलक देखते हैं और चाहते हैं कि वे मुंबई में उनके साथ रहें। जशोदाबेन 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान सुर्खियों में उस वक्त आई थीं जब नरेंद्र मोदी ने अपने हलफ़नामे में माना था कि वे उनकी पत्नी हैं।

उनकी शादी 1968 में हुई थी और तब जशोदाबेन 17 साल की थीं। वे दोनों कुछ रोज ही साथ रहे और मोदी ने जीवन के नए पड़ावों की तलाश में घर छोड़ दिया। टीचर की नौकरी से रिटायर हो चुकीं जशोदाबेन बीते साल नवंबर में अपने पारिवारिक दोस्त के यहां मुंबई गई हुई थीं, जहां उनकी मुलाक़ात ब्रदर एस पीटर पॉल राज से हुई थी।

ब्रदर पीटर पॉल कहते हैं, “मैंने उनकी प्रार्थनाओं और उनके अकेलेपन के बारे में सुना था। उनकी ज़िंदगी की दिल को छू लेने वाली कहानी ने मुझे प्रभावित किया। एक दिन अख़बार के ज़रिए पता चला कि वो मुंबई में हैं। मैंने उनका पता ठिकाना मालूम किया और अपने सहयोगियों के साथ उनसे मिलने गया।”

पीटर पॉल मुंबई में बेघर लोगों और अनाथ बच्चों के लिए काम करने वाली एक ग़ैर सरकारी संस्था गुड समैरिटन मिशन के प्रमुख हैं। वे बताते हैं, “उनसे मिलने के बाद मैंने उनमें मदर टेरेसा की झलक देखी। मैंने मदर के साथ दस सालों तक काम किया है। जशोदाबेन में भी वैसी ही सकारात्मकता और वैसा ही आभामंडल है। वे उन्हीं की तरह चलती हैं और वैसी ही सहृदयता के साथ बातें करती हैं। उनकी प्रार्थनाओं ने उनके पति को प्रधानमंत्री बना दिया।”

पीटर और उनकी टीम ने अपने मिशन की 11वीं सालगिरह समारोह के मौके पर जशोदाबेन को मुंबई आने का न्यौता भी दिया है।

मानवीय मक़सद

मानवीय मक़सद
इस न्यौते के बारे में पूछे जाने पर जशोदाबेन कहती हैं, “मैं वहां जाना चाहती हूं और उनके साथ रहना चाहती हूँ लेकिन इस पर मेरे परिवार के लोग फैसला लेंगे। मैं एक मक़सद के लिए काम करना चाहती हूँ।”

उन्होंने बताया, “मैं मोदी जी की आभारी हूं कि पत्नी के तौर पर मुझे स्वीकार करने के बाद ही लोगों ने मुझे जानना शुरू किया और मुझे सम्मान दिया। नहीं तो मुझे जानता ही कौन था? अब मैं अपनी बाक़ी ज़िंदगी ईश्वर की प्रार्थना में गुजारना चाहती हूं और मुमकिन है कि मैं किसी मानवीय मक़सद के लिए भी काम करूं।”

पीटर और उनके साथियों ने जशोदाबेन से अपने मिशन से जुड़ने की अपील भी की है। संगीता गौड़ा कभी बेघर हुआ करती थीं और अब पीटर की टीम की सदस्य हैं।

'मोदी जी मिलेंगे'
संगीता कहती हैं, “हम चाहते हैं कि वे हमारे साथ मुंबई आकर रहें और बेसहारा और अनाथ लोगों के लिए प्रार्थना करें। हम उम्मीद करते हैं कि मोदी जी एक दिन उनसे बात करेंगे और मिलेंगे, लेकिन हम ये भी चाहते भी हैं कि वे मदर टेरेसा की तरह बेसहारा लोगों के जीवन में मुस्कुराहट लाएं।”

संगीता, पीटर और अन्य दो लोगों के साथ मुंबई से जशोदाबेन से मिलने आई थीं और उनके साथ दो दिनों तक रहीं।

पीटर के साथी मानते हैं कि जशोदाबेन को अपनी टीम से जोड़ना एक मुश्किल काम है, लेकिन उन्हें भरोसा है कि एक बार वे सहमत हो जाएं तो चीजें दुरुस्त हो जाएंगी।

‘आज़ादी का एहसास’

'आज़ादी का एहसास'
पीटर कहते हैं, “धर्मांतरण को लेकर लोगों के कुछ संदेह हैं, लेकिन हम इस पर यक़ीन नहीं करते हैं क्योंकि ज़्यादातर बेसहारा लोग हिंदू या मुसलमान हैं। हम चाहते हैं कि वे बेसहारा लोगों को हिंदुओं की प्रार्थनाएं सिखाएं और उन्हें गीता और रामायण के बारे में बताएं और उनके लिए प्रार्थना करें क्योंकि उनकी प्रार्थना में शक्ति और ईश्वर उनके साथ है।”

उन्होंने आगे बताया कि जशोदाबेन जो जीवन जी रही हैं, वे उससे मुक्ति चाहती हैं, “वे एक कमरे के घर में रहती हैं और वे जहां भी जाती हैं, उनके पीछे पांच पुलिस वाले चलते हैं। हमारा मिशन उन्हें आज़ादी का एहसास दिलाना है।”

पीटर और उनकी टीम जब वहां से जा रहे थे तो जशोदाबेन ने उन्हें स्नेह के प्रतीक के तौर पर सौ रुपये भी दिए। हालांकि जशोदाबेन फिलहाल गुजरात की सरकार के साथ अपने सुरक्षा घेरे और अधिकारों के बारे में एक अलग ही लड़ाई लड़ रही हैं।

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