आइये हम भी राजनीति करें
बहनों
हम औरतें एक दूसरे से अक्सर ये बातें करते हैं कि राजनीति से हमारा कुछ लेना-देना नहीं हैं, इसमें हमारी कोई रूचि नहीं है। लेकिन हम इससे लेना-देना रखें या न रखें, इसमें रूचि लंे या न लें, राजनीति हमें और हमारे पूरे जीवन को प्रभावित करती है। हमारे उपर होने वाले अत्याचार से लेकर घर के अन्दर हमारी रसोईं तक पर राजनीति का असर होता ही है। तो क्यों न हम इसमें रूचि लें और राजनीति की थोड़ी बात करें। इस समय इस लिहाज से मौका भी उचित है कि विधानसभा के चुनाव हमारे सामने है। और हम महिलाओं का वोट सभी चुनावी पार्टियों के लिए कितना महत्वपूर्ण है यह इसी से पता चलता है कि हमें रिझाने के लिए हर पार्टी महिलाओं के लिए एक से बढ़कर एक वादे कर रही है। यह समाज में हमारी मजबूत होती स्थिति को दर्शाती है। महिलायें आज स्वतन्त्र चेतना सम्पन्न और महत्वपूर्ण मतदाता के रूप् में चिन्हित की जा रहीं हैं। यह हमारी एक छोटी सी जीत है।
लेकिन बहनों चुनावी मौसम में सभी चुनावबाज पार्टियां जनता की हितैषी बनने का ही दिखावा करती हैं। इन लुभावने वादों के फेर में पड़ने की बजाय चुनाव में उतरी इन सभी चुनावी पार्टियों की महिलाओं के बारे में सोच को समझना देखना और उन्हें आईना दिखाकर अपनी बात कहना बेहद जरूरी है, क्योंकि यही वह समय है, जब वे हमारी बात सुनने की भूमिका में होते हैं। ये चुनावी पार्टियां महिलाओं के लिए भले ही बढ़-चढ़कर लुभावने वादे कर रहीं हैं, लेकिन महिलाओं के प्रति इनकी सोच क्या है, इसे इनके बयानों और कामों से समझा जा सकता है। महिला विरोधी बयान देने में सभी प्रमुख चुनावी पार्टियां एक-दूसरे से आगे हैं। याद कीजिये निर्भया की घटना के बाद जब संसद में जब महिला हिंसा के विरूद्ध कानून लाये जाने पर बहस चल रही थी, तो ज्यादातर सांसद महिलाओं से होने वाली बदतमीजी की घटना पर हंसी-मजाक कर रहे थे और चुटकुले सुना कर हंस रहे थे। संसद में महिला प्रतिनिधियों को 33 प्रतिशत आरक्षण देने के सवाल पर सभी चुनावी दल विरोध में खड़े हो जाते हैं। इससे भी इनकी पुरूषवादी मानसिकता का पता चल जाता है।
पिछले कुछ सालों में ही इन जनप्रतिनिधियों द्वारा दिये गये बयानों पर एक नजर डालें तो मौजूदा सत्तासीन पार्टी के भूतपूर्व मुखिया मुलायम सिंह यादव, आजम खान और अबू आजमी लगातार बलात्कार के लिए महिलाओं को ही जिम्मेदार ठहराने वाले बयान देते रहे हैं। वर्तमान सपा के मुखिया पति-पत्नी ने इन बयानों के खिलाफ एक शब्द नहीं कहा। यहां तक कि निर्भया के मामले में दोषियों के लिए फासी तक की मांग करने वाली और महिला अधिकारों के लिए एनजीओ चलाने वाली मुलायम सिंह की बहू, जो कि लखनउ कैण्ट से इस बार उम्मीदवार हैं, ने भी इन बयानों के खिलाफ कुछ नहीं कहा। इस सरकार के शासन काल में महिलाओं पर जो हिंसा बढ़ी, उसकी तो हम अभी बात ही नहीं कर रहे हैं, अभी तो हम महिलाओं के प्रति इन सभी के दृष्टिकोण की बात कर रहे हैं।
सपा बसपा भाजपा कांग्रेस या अन्य दूसरे चुनावी दल महिलाओं के मामले में सभी की सोच सामंती और पितृसत्तात्मक है। ये उस समय खुल कर सामने आ जाती है, जब ये आपस में झगड़े करते हैं। कुछ ही महीने पहले बसपा और भाजपा के बीच हुए झगड़े को याद कीजिये, जिसमें भाजपा के नेता….. ने मायावती को वो गाली दी जो महिलाओं को अपमानित करने के लिए उन्हें कमतर दिखाने के लिए दी जाती है दी, बदले में बसपा के नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने…… ककी मां-बहन को वही कह कर अपना बदला निकाला। इस लड़ाई में उन्होंने एक-दूसरे को नहीं बल्कि पूरे महिला समुदाय को अपमानित किया और जाहिर कर दिया कि महिलाओं को वे किस नजरिये से देखते हैं। महिलायें अपने संघर्ष से आगे बढ़ रही हैं, लेकिन समाज ही नहीं, हमारे नेता भी उन्हें प्रथम या बराबर नहीं बल्कि द्वितीय नागरिक ही मानते हैं। हाल ही मे भाजपा नेता विनय कटियार का दिया गया बयान याद कीजिये-‘‘हम प्रियंका-डिेपल से सुन्दर औरतों को प्रचार के लिए मैदान में उतारेंगे… हमारे पास स्मृति ईरानी है…’’ यानि उनकी पार्टी और राजनीति में औरतें बस एक मॉडल भर हैं, जिनका चेहरा दिखा कर वे वोट हासिल करना चाहते हैं, इसके साथ ही वे हमारी आपकी चेतना को भी इतना कम करके आंकते हैं कि हम केवल सुन्दर चेहरा देखकर वोट देते हैं। लेकिन कमाल की बात है कि उनके इस बयान पर उनकी पार्टी तो दूर खुद स्मृति ईरानी ने भी कोई आपत्ति दर्ज नहीं की। यानि इन पार्टियों के माध्यम से सत्ता तक पहुंच गयी महिलायें भी ऐसी ही सामंती और पितृसत्तात्मक सोच से लैस हो जाती हैं। इसके उदाहरण बार-बार देखने को मिलते हैं। इन चुनावी पार्टियों का महिलाओं के प्रति क्या दृष्टिकोण है, यह तब साफ-साफ समझ में आता है, जब दंगे होते हैं। एक समुदाय से बदला लेने के लिए ये उस समुदाय की महिलाओं से बलात्कार करते हैं क्योंकि महिलाओं का बलात्कार करना उस पूरे समुदाय की इज्जत पर हमला और अपमान माना जाता है, इसी राजनीति के कारण हाल ही में मुजफ्फरनगर के दंगों में महिलाओं पर वीभत्स हमले किये गये। ऐसी राजनीति करने वाले कौन लोग हैं ये कहने की जरूरत नहीं है। वास्तव में अपनी सोच में भाजपा मुखर रूप् से महिला विरोधी सोच रखती है। उसके द्वारा चलाया गया ‘लव जिहाद का अभियान इसी बात की खुली घोषणा है। यह सिर्फ एक धर्म के ही खिलाफ नहीं, बल्कि महिलाओं की आजादी के भी खिलाफ है। अब पढ़ी-लिखी लड़कियां और लड़के जाति धर्म की दीवार तोड़कर, दहेज की परम्परा को छोड़कर आपस में शादी-विवाह कर रहे हैं। ऐसी शादियों में लड़के-लड़की की जनवादी चेतना का बहुत महत्व है, जो लड़कियों को जकड़ने वाले ढेरों सामंती बंधनों को तोड़ता है, लेकिन भाजपा और उससे जुड़े संगठनों की राजनीति और उससे प्रेरित उनका यह अभियान लोगों की खासतौर पर हम महिलाओं की आजादी और जनवादी चेतना पर हमला है। उनकी पितृसत्तात्मक राजनीति को इससे भी समझा जा सकता है कि वे अपनी बेटी तो दूसरे धर्म वर्ण में देने के खिलाफ हैं, लेकिन दूसरे धर्म की बेटी को अपने वर्ण में ले आने की वकालत करते हैं। इसके पीछे यही पितृसत्तात्मक सोच है कि लड़की पहले पिता और अन्ततः पति के नाम से जानी जाती है। उसका अपना कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं हैं। इस तरह की सोच से लैस पार्टियां महिलाओं की सुरक्षा और आजादी के लिए भला क्या करेंगी सोचा जा सकता है।
भाजपा आज महिला मतदाता को रिझाने के नाम पर तीन तलाक का मामला जोर-शोर से उठा रही है। वास्तव में यह महिलाओं को सुरक्षा देने के लिए नहीं, एक धर्म पर प्रहार के लिए ज्यादा है। लेकिन हम महिलायें दो या अनेक धर्म नहीं एक समुदाय हैं, जो हर जगह पितृसत्तात्मक कानून, रीति-रिवाज, परम्परा, आचार-विचार से पीड़ित हैं। हर धर्म जाति में इससे लड़ते हुए हम एक हैं। हमारे सुख और दुख एक जैसे हैं, हमें धर्म और जाति में बांटने वाले ये सभी चनावी दल खुद हमारा शोषण करने वाली पुरूषवादी मानसिकता से लैस हैं, इनसे हम ज्यादा उम्मीद तो नहीं कर सकते, लेकिन इस चुनावी मौके पर अपने सवालों को इनके सामने रखकर हम इनसे मोल-तोल तो कर ही सकते हैं। आज जब कि हमारे उपर जुल्म बढ़ रहें हैं हम उन्हें याद दिला सकते हैं कि इनमें से जो भी जीत कर आये, वो महिलाओं को नजरअंदाज नहीं कर सकता। आइये हम भी राजनीति में रूचि लें, आइये चुनावी दलों को महिलाओं के प्रति संवेदनशील बनायंे, आइये चुनावों से आगे जाकर बराबरी के समाज के लिए हम भी राजनीति करें।
अभिवादन के साथ
हम हैं
यौन हिंसा और राजकीय दमन के खिलाफ महिलायें
WSS – Women Against Sexual Violence and State Repression
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February 12, 2017 at 12:24 pm
Election samay mein aurat ke haq yaad aatey hai …
Baad mein saab bhol jaatey hai .
Samasya vaise hi rahtey hai ….
Aur phir election aatey rahte hai ..