by-
दीपक कबीर
इन डबडबायी आँखों का ये, पैग़ाम देखिये
हर दिल मे उठ गया है वो, तूफान देखिये
तानाशाह से भिड़ गये हैं जो,इंसान देखिये
इन इंसानों की हताशा पे ये, सम्मान देखिये
कि अब जगती हुई आंखों का ये,जहान देखिये
ओर दिल्ली जो चल पड़ा है वो,कोहराम देखिये
देखिये उनको भी, जो सत्ता की चाटते हैं
वो फेक मीडिया, जो नफरत ही बाँटते हैं
हाँ, दो रुपये के ट्वीट करते,पावदान देखिये
अरबों के एड लेके- बिके , थूक-दान देखिये
अम्बानी के हैं दलाल..ये नमक-हराम देखिये
प्रभु, आपको भी ये करते हैं बदनाम, देखिये
इनका जवाब है ये, किसानों की एकता
जिसकी हिफाज़त में अब,हर गाँव दहकता
साजिशें रच के , जो कुचलने की थी सोची
रात ही रात में मिटा दोगे, हिम्मत ये समूची
सितम से,ज़ुल्म से, तुम इनको,डरा दोगे,रुला दोगे
भर्राए गले,आंखों की बेबसी का,तमाशा बना दोगे
तो अब डबडबायी आँखों का ये,पैग़ाम देखिये
हर दिल मे उठ गया है जो, तूफान देखिये
तानाशाह से भिड़ गये हैं वो इंसान देखिये
इन इंसानों की हताशा पे ये सम्मान देखिये
कि अब जगती हुई आंखों का ये जहान देखिये
दिल्ली जो चल पड़ा है वो ,कोहराम देखिये
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