Skirt Se Unchi Meri Awaaz Hai
मेरी स्सक्रट से उँची मेरी आवाज़ है !
माँगे जो पीने को पानी कभी ,
भाग जाते हो दिल्ली, से लंडन तभी ,
सारी जनता को रो कर तब दिखाते हो ,
आज भर भर के पानी की तोप चलाई ,
बताओ अब पानी “कहाँ” से लाते हो? …
मेरी स्सक्रट से उँची मेरी आवाज़ है ,
माना की सर पे तेरे ही ताज़ है ,
नारी हूँ , मिट्टी इसी की मैं भी ,
बता दूँगी दिल मेरे मे ” क्या आज है” …
मेरी स्सक्रट से उँची मेरी आवाज़ है ,
क्या दिखता है “तुझको” , टॅंगो का चमडा,
हैवान , तुझ मे “हवस” का राज है ,
क्या दिखता है , जब “काली” को तू देखता है ? .
क्या तब भी हवस से खुद को सेकता है ?
मेरी स्सक्रट से उँची मेरी आवाज़ है ,
कानो को तेरे हिला दूँगी आज ,
वो गंदी नज़र को जला दूँगी आज ,
उस क्रांति मे तर्पण होगा तेरा ,
अब तेरे “तर्पण” मन हल्का होगा मेरा …
चेत जाओ . ओ , नेता, ओ वेता सभी,
मैं , नारी हूँ , यह जान लो ,
मेरी रग रग को पहचान लो ,
फिर यह जान लो …
मेरी स्सक्रट से उँची मेरी आवाज़ है .
By- Rahul Yogi Deveshwar
December 26, 2012 at 2:45 pm
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