Read this important letter written by Bastar’s renowned independent journalist and social activist Lingaram Kodopi to the Supreme Court.  

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  ·सर्वोच्च न्यायालय को न्याय के लिये खुला पत्र।माननीय सर्वोच्च न्यायालयभारत सरकार, नई दिल्ली।विषय:- पीड़ित आदिवासीयों को न्याय दिलाने के लिए मदद करने पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दंड़ित करने पर।उपरोक्त विषय अनुसार सर्वोच्च न्यायालय ने जो पैसला पिड़ित आदिवासीयों के अपील कर्ता 1. हिमाशू कुमार के पंक्ष में सुनाया गया हैं वह पैसला बस्तर संभाग के सभी आदिवासी समुदाय के लिए निदंनीय हैं। पैसला में सर्वोच्च न्यायालय ने याचिका को खारिज करते हुए हिमाशु कुमार पर पाँच लाख रूपये का जुर्माना लगाया हैं। साथ ही फैसले में सुझाव दिया हैं कि छत्तीसगंढ राज्य / सीबीआई द्वारा याचिकाकर्ताओं के खिलाफ भारतीय दंड़ सहिता की अपराधिक साजिश रचने कि धारा और पुलिस व सुरक्षा बलों पर झूठा आरोप लगाने के लिए आगे की कार्वाई की जा सकती हैं, जिसमें अन्य धाराए भी शामिल करी जा सकती हैं।माननीय सर्वोच्च न्यायालय, हिमाशु कुमार एक गाँधीवीद विचारक व समाज सेवक हैं। छत्तीसगंढ़ राज्य के बंस्तर संभाग में हिमाशु कुमार ने अपने पूरे परिवार के साथ 18-20 साल आदिवीसीयों के बीच आदीवासीयों की सेवा करते हुए बिताया हैं। आज भी हिमाशु कुमार आदिवासीयों की मदद करने में पीछे नहीं रहते हैं।गोमपाड़ की घटना सन 2009 की हैं, सलवा जुड़ूम का दौर था आदिवासी आपस में लड़ रहे थे, एक दुसरे को काट रहे थे, इस हिंसा में उजड़े गाँवो को बसाने का काम हिमाशु कुमार कर रहे थे,इस कारण जिला प्रशासन व राज्य सरकार ने हिमाशु कुमार का आश्रम तोड़ दिया। आश्रम टूटने के बाद हिमाशु कुमार दंन्तेवाड़ा के पास कत्यारास में टेन्ट लगाकर रह रहे थे। उस दौरान राज्य शासन और केन्द्र शासन व जिला प्रशासन मिलकर आदिवासी युवक युवतीयों को बगैर नियम व कानून के नक्सलियों से लड़ने के नाम पर हत्यार दिये जा रहे थे। मुझे भी पुलिस द्वारा जबरदस्ती सलवा जुडूम में भर्ती किया गया था। उच्च न्यायालय की मदद से मैं पुलिस हिरासत से बाहर आया, पुलिस की बात न मानने पर पुलिस प्रशासन मेरे पिछे पड़ गई मै हिमाशु कुमार के पास पहुचाँ व मेरी मदद करने के लिए हिमाशु कुमार से अपील किया।हिमाशु कुमार ने मुझे न्यायालय व अहिंसा का रास्ता दिखाया और मैं न्यायालय की ओर आगे बड़ा, जब मैं हिमाशु कुमार से मदद मांग रहा था उस दौरान गोमपाड़ के लोग उस टेन्ट में मौजूद थे।

हिमाशु कुमार ने मुझे गोमपाड़ के ग्रामिणों से मिलवाया और कहाँ कि इन आदिवासीयों का भी कहना हैं कि इनके परिजनों को पुलिस व सलवा जुड़ूम के लोगों ने मारा हैं, आप मिल सकते हों मैं ग्रामीणों से मिला और पूछा कि आप लोगों के साथ क्या हुआँ हैं ग्रामीणों ने मुझसे गोड़ी भाषा में कहाँ ( पायका नू एस पी तोड मा नाक ना अज अवकतोड़) हिन्दी अर्थ – हमारे गाँव जाकर एस.पी.ओ. और पुलिस वालो ने जाकर हत्या किया हैं। मैं- इग बाड़ वत्तीड़? हिन्दी – यहाँ क्यों आये हो? ग्रामीण- हिमाशु गुरूजी नग मदद तलकानोन वत्तोम। हिन्दी – हिमाशु गुरूजी से मदद मागने आये हैं। इतनी बात-चीत के बाद मै हिमाशु जी से पूछा कि अब आगे क्या होगा सर, हिमाशु जी मुझसे बोले कि देखते है इन ग्रामीणों के लिए क्या कर सकते हैं। मैं हिमाशु जी से बोला कि मेरे पीछे पुलिस पड़ी है मैं हथिरा नहीं उठाना चाहता और न ही हिंसक बनना चाहता हूं मुझे कही भेज दिजिए? हिमाशु कुमार ने मुझे कहाँ कि तुम्हे बस्तर में पुलिस से बचाना मुश्किल हैं, तुम यहाँ जिन्दा नही रह सकते तुम दिल्ली चले जाओं। हम कुछ दिनों में दिल्ली पहुचते हैं। मैं दिल्ली चला गया।

कुछ दिनों बाद दिल्ली हिमाशु कुमार व गोमपाड़ के पिड़ित आदिवासी पहुचे। ग्रामिण व हिमाशु कुमार दिल्ली पहुचने के बाद दिल्ली के (प्रेस क्लब आँफ इंड़िया) भवन में एक प्रेस वार्ता हुई इस वार्ता में राजधानी दिल्ली के तमाम समाज सेवक, बुध्दीजीवी वर्ग, सर्वोच्च न्यायालय के जाने माने वकील शान्ति भुषण व सर्वोच्च न्यायालय के सेवा निर्वृत्त न्यायाधीश मौजूद थे। इन सभी के संमक्ष गोमपाड़ के ग्रामीणों ने घटना का विवरण बताया, उस वार्ता में मैंने भी अपनी व्यथा बतायी कि पुलिस आदीवासी युवको को कैसे जोर जबरद्स्ती करके (SPO) स्पेशल पुलिस आँफिसर बनाया जाता हैं।वार्ता होने के उपरान्त हिमाशु कुमार पीड़ित आदिवासी व मुझे लेकर वापस छत्तीसगंढ राज्य के बस्तर संभाग में वापस आ गये। गोमपाड़ के पिड़ित आदीवासीयों ने हिमाशु कुमार से कहाँ गोन्डी भाषा – ममकोन बातेय पुनोम गुरूजी, मा कोयतोड़ किन पुलिसतोड़ अवकतोड़ इन्जे बाले किनद निमेय उड़ा। अनुवाद हिन्दी – हम कुछ नही जानते हैं सर, हमारे परिजनों को पुलिसवालों ने मार दिया अब आगे क्या करना हैं आप किजिए। ग्रामीणों का कहने का अर्थ था कि आगे न्यायिक लड़ाई आप लड़िये हम आपके साथ हैं।हिमाशु कुमार व्यक्तित्व्न के धनी है, जो व्यक्ति किसी राज्य में हिंसा हो रही हो उस राज्य के क्षेत्र में रहकर अंहिसा, संत्य, न्याय व गाँधीवादी विचारो की बात, आदिवासी समुदायों को सिखाने कि बात करता हो उस व्यक्ति को भारत कि सर्वोच्च न्यायालय दंड़ित कैसे कर सकता हैं।

हिमाशु कुमार ने क्या सर्वोच्च न्यायलय से अपने लिए न्याय मागाँ है? पिड़ित आदिवासी हिमाशु कुमार से न्याय मागे, आदिवासीयों के न्याय मांगने पर हिमाशु कुमार ने सर्वोच्च न्यायलय का दरवाजा खटखटाया।माननीय सर्वोच्च न्यायलय, न्याय के लिये आदिवासीयों को आप तक पहुचने में लाखों रुपये लगते हैं। आदिवासी न्याय पाने के लिए आप तक कैसे पहुँचे आप बताईये? माननीय न्यायालय सामाजिक कार्यकर्ता, एनजीओ, सामाजिक संगठन गरीब आदीवासीयों को न्याय दिलाने में मददगार थे। आपने उस मदद को भी आदीवासीयों से छीन लिया। अब आदीवासी न्याय मांगने के लिए कहाँ जाये, किससे बोले कि हमारे साथ अन्याय हुआँ हैं, हमे न्याय दिलाने में हमारी मदद करिये। आदीवासीयों के पास धन नहीं हैं आदिवासीयों के पास केवल जल,जंगल,जमीन हैं।माननीय सर्वोच्च न्यायालय किसी भी जगह हो रहा अन्याय हर स्थान पर न्याय के लिए खतरा है। माननीय न्यायलय आपने गोमपाड़ के पीड़ित ग्रामीणों के पंक्ष में जो फैसला दिया हैं वह फैसला अनुकरणीय नहीं हैं। आपने किन सबुतो के आधार पर फैसला दिया हैं।

आदिवासीयों के पास सबुत के तौर पर बच्चे का कटा हुआँ हाथ हैं, उस बच्चे की माँ के टाग में लगी हुई गोली, समस्त ग्रामीणों का बयान। आपने फैसले में कहाँ है कि हिमाशु कुमार एक एनजीओं चलाते हैं। क्या एक एनजीओ चलाने वाला, गाँधीवादी विचारक आदिवासीयों के न्याय के लिए सर्वोच्च न्यायालय में अपीलकर्ता नहीं हो सकता? भारत देश के किस न्याय शास्त्र में लिखा है कि अन्याय होने पर समाज सेवक किसी के लिए न्याय नही मांग सकता? माननीय सर्वोच्च न्यायालय आदिवासीयों की एक आशा होती थी कि हमे सत्र न्यायालय ने न्याय नहीं दिया तो, दूसरा न्यायालय उच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय ने न्याय नहीं दिया तो हम सर्वोच्च न्यायालय से न्याय की अपील करेगें। माननीय न्यायालय ने पिड़ित आदीवासीयों से न्याय मागने का रास्ता, उम्मीद को ही समाप्त कर दिया।

आदिवासीयों को न्याय दिलाने मे युरोप के संगठन हस्तक्षेप करे तो न्यायपालिका, कार्यपालिका यह कहते नहीं थकते कि इनके पास सामान नागरिक सहिता की व्यवस्था हैं। याचिका में हत्याओं कि जाँच की मांग थी। माननीय सर्वोच्च न्यायालय हत्याओं की किसी राष्ट्रीय एजेसी से जाँच ही करा देते पिड़ीत आदिवासीयों पर सर्वोच्च न्यायालय की मेहरबानी होती।माननीय सर्वोच्च न्यायालय, भारत देश को आजादी मीले 75 साल हो गये। इतीहास गवाह हैं देश के मुलवासी (आदीवासीयों) को इन 75 सालो मे कितने बार भारत देश में न्याय मिला हैं। आदीवासी अर्थात देश के मूल नागरिक।माननीय सर्वोच्च न्यायालय के माननीय जज महोदय आपने 19 हत्याओं की बगैर जाँच किये न्याय मागने वाले अपीलकर्ता को ही अपराधी बना दिया। बंध कमरे मे बैठकर कुछ भी फैसला सुनाना आसान हैं।

जज साहब सही फैसला सुनाने से डर रहे हैं। पुलिस कितना झूठ बोलती हैं ये तो जाँच होती तो पता चलता जब जाँच ही नही हुआँ तो पता क्या चलेगा। फैसला सुनकर लगता हैं कि सर्वोच्च न्यायलय के जज साहब को छत्तीसगंढ़ राज्य कि पुलिस ने अपने आप को बचाने के लिये करोड़ो रूपये दिये होगे तबी तो बगैर जाँच के माननीय जज साहब ने फैसला सुनाया हैं।

माननीय हिमाशु जी सर्वोच्च न्यायालय को 5 लाख जुर्माना देने की कोई जरूरत नहीं हैं। सर्वोच्च न्यायलय को जेल भेजना हैं तो आपके साथ बस्तर संभाग के सभी आदिवासीयों को जेल भेज दे। मैं तब तक लिखता रहूगाँ जब तक कि पिड़ित आदिवासीयों को न्याय नही मिल जाता। मुझे रोकना है तो माननीय सर्वोच्च न्यायालय के जज साहब को मुझे भी जेल भेजना पड़ेगा, जेल या मौत से मै नही डरता, डर उसको लगता है जो गलत करता है मै जब गलत ही नहीं हूं तो लिखने से क्यों डरू।“

एक अन्यायपूर्ण कानून को न मानना एक व्यक्ति का मौलिक अधिकार हैं

”लिंगा राम कोड़ोपीजिला- दंन्तेवाड़ाआदीवासी ग्रामीण